ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 90/ मन्त्र 3
रा॒ये नु यं ज॒ज्ञतू॒ रोद॑सी॒मे रा॒ये दे॒वी धि॒षणा॑ धाति दे॒वम् । अध॑ वा॒युं नि॒युत॑: सश्चत॒ स्वा उ॒त श्वे॒तं वसु॑धितिं निरे॒के ॥
स्वर सहित पद पाठरा॒ये । नु । यम् । ज॒ज्ञतुः॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । इ॒मे इति॑ । रा॒ये । दे॒वी । धि॒षणा॑ । धा॒ति॒ । दे॒वम् । अध॑ । वा॒युम् । नि॒ऽयुतः॑ । स॒श्च॒त॒ । स्वाः । उ॒त । श्वे॒तम् । वसु॑ऽधितिम् । नि॒रे॒के ॥
स्वर रहित मन्त्र
राये नु यं जज्ञतू रोदसीमे राये देवी धिषणा धाति देवम् । अध वायुं नियुत: सश्चत स्वा उत श्वेतं वसुधितिं निरेके ॥
स्वर रहित पद पाठराये । नु । यम् । जज्ञतुः । रोदसी इति । इमे इति । राये । देवी । धिषणा । धाति । देवम् । अध । वायुम् । निऽयुतः । सश्चत । स्वाः । उत । श्वेतम् । वसुऽधितिम् । निरेके ॥ ७.९०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 90; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
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अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यम्) पदार्थविद्यावेत्तारं यं पुरुषं (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (राये) ऐश्वर्याय (जज्ञतुः) उत्पादयामासतुः, तथा (देवम्) दिव्यशक्तिसम्पन्नं पुरुषं (धिषणा) स्तुतिरूपा (देवी) दिव्यशक्तिः (धाति) धारयति (वायुम्) तं पदार्थविद्यावेत्तारं (नियुतः) यो हि तद्विद्यायां नियुक्तः, तं (सश्चत) सेवतां (उत) तथा (निरेके) दरिद्रं विनाशयितुं (अध) तथा (श्वेतम्) पवित्रं (वसुधितिम्) धनं च लब्धुं (स्वाः) आत्मभूतं तं विद्वांसमुत्पादयितुं यतस्व ॥३॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(यम्) जिस पदार्थविद्यावेत्ता पुरुष को (रोदसी) द्युलोक और पृथ्वीलोक ने (राये) ऐश्वर्य्य के लिये उत्पन्न किया है और (देवं) जिस दिव्यशक्तिसम्पन्न पुरुष को (धिषणा) स्तुतिरूप (देवी) दिव्यशक्ति (धाति) धारण करती है, (वायुं) उस पदार्थविद्यावेत्ता विद्वान् को (नियुतः) जो पदार्थविद्या के लिये नियुक्त किया गया है, (सश्चत) तुम सेवन करो (उत) और (निरेके) दरिद्र के दूर करने के लिये (अध) और (श्वेतं) पवित्र (वसुधितिं) धन को (स्वाः) उस आत्मभूत विद्वान् के लिये तुम उत्पन्न करने का यत्न करो ॥३॥
भावार्थ
स्वभावोक्ति अलङ्कार द्वारा इस मन्त्र में परमात्मा यह उपदेश करते हैं कि मानो प्रकृति ने ही ऐसे पुरुष को उत्पन्न किया है, जो संसार के दरिद्र का नाश करता है। ऐसा पुरुष जिस देश में उत्पन्न होता है, उस देश में अनैश्वर्य और दरिद्रता का गन्ध भी नहीं रहता ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Vayu is the brilliant and generous power of energy which the heaven and earth generate for the production of wealth, the light of which the divine voice of omniscience, Veda, holds and bears for the knowledge of humanity. This pure and brilliant power, treasure hold of wealth and prosperity, Vayu, its own companion forces serve, and bear it to fight out want and poverty where they prevail.
मराठी (1)
भावार्थ
स्वभावोक्ती अलंकाराद्वारे या मंत्रात परमात्मा उपदेश करतो, की जणू प्रकृतीनेच अशा पुरुषाला उत्पन्न केलेले आहे. जो जगाच्या दारिद्र्याचा नाश करतो. असा (पदार्थविद्यावेत्ता) पुरुष ज्या देशात उत्पन्न होतो त्या देशात ऐश्वर्यहीनता व दरिद्रता यांचा गंध ही नसतो ॥३॥
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