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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 95 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 95/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - सरस्वती छन्दः - आर्षीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    इ॒मा जुह्वा॑ना यु॒ष्मदा नमो॑भि॒: प्रति॒ स्तोमं॑ सरस्वति जुषस्व । तव॒ शर्म॑न्प्रि॒यत॑मे॒ दधा॑ना॒ उप॑ स्थेयाम शर॒णं न वृ॒क्षम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मा । जुह्वा॑नाः । यु॒ष्मत् । आ । नमः॑ऽभिः । प्रति॑ । स्तोम॑म् । स॒र॒स्व॒ति॒ । जु॒ष॒स्व॒ । तव॑ । शर्म॑न् । प्रि॒यऽत॑मे । दधा॑नाः । उप॑ । स्थे॒या॒म॒ । श॒र॒णम् । न । वृ॒क्षम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा जुह्वाना युष्मदा नमोभि: प्रति स्तोमं सरस्वति जुषस्व । तव शर्मन्प्रियतमे दधाना उप स्थेयाम शरणं न वृक्षम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमा । जुह्वानाः । युष्मत् । आ । नमःऽभिः । प्रति । स्तोमम् । सरस्वति । जुषस्व । तव । शर्मन् । प्रियऽतमे । दधानाः । उप । स्थेयाम । शरणम् । न । वृक्षम् ॥ ७.९५.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 95; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (इमा) इमे याज्ञिकाः (जुह्वानाः) हवनं कुर्वन्तः (नमोभिः) नमोवाग्भिः (युष्मदा) त्वामाह्वयन्ति (सरस्वति) हे विद्ये ! (प्रतिस्तोमम्) प्रतियज्ञं (जुषस्व) प्रियतां (प्रियतमे) हे हितकारिणि ! (वृक्षम्, न) वृक्षमिव (तव, शरणम्) भवतीम्, शरणं (स्थेयाम) याम (शर्मन्) सुखं च (उप दधानाः) भुञ्जन्तः ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (इमा) ये याज्ञिक लोग (जुह्वाना) हवन करते हुए (युष्मदा) तुम्हारी प्राप्ति में रत (नमोभिः) नम्र वाणियों के द्वारा तुम्हारा आवाहन करते हैं। (सरस्वति) हे विद्ये ! (प्रतिस्तोमं) इनके प्रत्येक यज्ञ को (जुषस्व) सेवन कर। हे विद्ये ! (तव, प्रियतमे) तुम्हारे प्रियपन में (शर्म्मन्) सुख को (दधानाः) धारण करते हुए (उप) निरन्तर (स्थेयाम) सदैव तुम्हारी (शरणं) शरण (वृक्षः, न) आधार के समान हमको आश्रयण करे ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि, हे याज्ञिक पुरुषो ! तुम इस प्रकार विद्यारूप कल्पवृक्ष का सेवन करो, जिस प्रकार धूप से संतप्त पक्षिगण आकर छायाप्रद वृक्ष का आश्रयण करते हैं एवं आप इस सरस्वती विद्या का सब प्रकार से आश्रयण करें ॥५॥

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    विषय

    स्त्री को उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (सरस्वति ) उत्तम ज्ञान से युक्त विदुषि ! हे सरस्वति ज्ञानमय प्रभो ! तू ( स्तोमं प्रति जुषस्व ) उत्तम स्तुत्यवचन को प्रेम से स्वीकार कर । हम ( नमोभिः ) विनय युक्त वचनों, अन्नों सहित ( युष्मत् आजुह्वाना ) तुम से नाना ग्राह्य पदार्थ स्वीकार करते हुए ( तव प्रियतमे शर्मन् ) तेरे प्रियतम गृह में अपने को ( दधानाः ) रखते हुए ( वृक्षं न शरणं ) वृक्ष के समान शरण देने वाले ( उप स्थेयाम ) तेरे निकट उपस्थित हों, तेरी शरण होवें।

    टिप्पणी

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    विषय

    स्त्री के कर्त्तव्य ४

    पदार्थ

    पदार्थ- हे (सरस्वति) = ज्ञान युक्त विदुषी ! ज्ञानमय प्रभो ! तू (स्तोमं प्रति जुषस्व) = स्तुत्यवचन को प्रेम से स्वीकार कर। हम (नमोभिः) = विनय-वचनों सहित (युष्मत् आजुह्वाना) = तुमसे ग्राह्य पदार्थ लेते हुए (तव प्रियतमे शर्मन्) = तेरे प्रियतम गृह में स्वयं को (दधानाः) = रखते हुए (वृक्षं न शरणं) = वृक्ष तुल्य शरण दायक (उप रथेयाम) = तेरे पास आयें।

    भावार्थ

    भावार्थ- विदुषी स्त्री परिजनों के वचनों को ध्यान से सुने। घर में आए हुए अतिथि या भिक्षुकों का मीठे वचनों से सत्कार करते हुए उनके लिए आवश्यक पदार्थों का दान करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Sarasvati, eternal stream of the waters of life, these adorations presented to you with homage and reverence, we pray, accept and cherish at every yajna.$Enjoying your gift of peace and a happy home, let us abide under your divine shelter and sustenance as birds nestle on the tree.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो, की हे याज्ञिक पुरुषांनो! ज्याप्रमाणे उन्हामुळे त्रस्त झालेले पक्षी छाया देणाऱ्या वृक्षांचा आश्रय घेतात त्याप्रमाणे तुम्ही विद्यारूपी कल्पवृक्षाचे ग्रहण करा. तुम्ही या सरस्वती विद्येचा सर्व प्रकारे आश्रय घ्या. ॥५॥

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