ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 24/ मन्त्र 11
नू अ॒न्यत्रा॑ चिदद्रिव॒स्त्वन्नो॑ जग्मुरा॒शस॑: । मघ॑वञ्छ॒ग्धि तव॒ तन्न॑ ऊ॒तिभि॑: ॥
स्वर सहित पद पाठनु । अ॒न्यत्र॑ । चि॒त् । अ॒द्रि॒ऽवः॒ । त्वत् । नः॑ । ज॒ग्मुः॒ । आ॒ऽशसः॑ । मघ॑ऽवन् । श॒ग्धि । तव॑ । तत् । नः॒ । ऊ॒तिऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नू अन्यत्रा चिदद्रिवस्त्वन्नो जग्मुराशस: । मघवञ्छग्धि तव तन्न ऊतिभि: ॥
स्वर रहित पद पाठनु । अन्यत्र । चित् । अद्रिऽवः । त्वत् । नः । जग्मुः । आऽशसः । मघऽवन् । शग्धि । तव । तत् । नः । ऊतिऽभिः ॥ ८.२४.११
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 24; मन्त्र » 11
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of glory, wielder of the thunderbolt of justice and retribution, our hopes and prayers have never wandered elsewhere, to anyone other than you. Pray strengthen our will and action with your modes of protection and promotion for advancement.
मराठी (1)
भावार्थ
जर मनाने परमेश्वराची स्तुती केली तर तोच आम्हाला सर्व कार्यात समर्थ करू शकतो. ॥११॥
संस्कृत (1)
विषयः
स एव स्तुत्य इति दर्शयति ।
पदार्थः
हे अद्रिवः=हे संसारधारक ! हे मघवन् ! नः=अस्माकम् । आशसः=आशंसनानि=स्तोत्राणि । अभिलाषा वा । त्वत्=त्वत्तः । अन्यत्र+चित्=अन्येषु देवेषु । नू=नहि कदापि । जग्मुः=गच्छन्ति । तत्तस्मात् । तव । ऊतिभिः=रक्षाभिः । नोऽस्मान् । शग्धि=शक्तान् कुरु ॥११ ॥
हिन्दी (3)
विषय
वही स्तुत्य है यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(अद्रिवः) हे संसारधारक (मघवन्) हे सर्वधनसम्पन्न ! (नः+आशसः) हमारे स्तोत्र और अभिलाष (त्वत्+अन्यत्र+चित्) तुझको छोड़कर अन्य किन्हीं देवों में (नू+जग्मुः) कदापि न गये न जाते हैं (तत्) इसलिये (तव+ऊतिभिः) तू अपनी रक्षा और सहायता से (नः+शग्धि) हमको सब प्रकार सामर्थ्ययुक्त कर ॥११ ॥
भावार्थ
वही हमको सर्व कार्य में समर्थ कर सकता है, यदि मन से उसकी स्तुति करें ॥११ ॥
विषय
उसकी नाना प्रकार से उपासनाएं वा भक्तिप्रदर्शन और स्तुति ।
भावार्थ
हे ( अद्रिवः ) अखण्ड शक्ति के स्वामिन् ! ( नः आशसः ) हमारी आशाएं ( त्वत् अन्यत्र चित् जग्मुः ) तुझ से अन्य में भला क्योंकर जावें। हे ( मघवन् ) ऐश्वर्यवन् ! ( तव ऊतिभिः ) तेरी रक्षाकारिणी शक्तियों से तू (नः तत् शग्धि) हमें वही आशाएं या कामनाएं प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वमना वैयश्व ऋषिः॥ १—२७ इन्द्रः। २८—३० वरोः सौषाम्णस्य दानस्तुतिर्देवता॥ छन्दः–१, ६, ११, १३, २०, २३, २४ निचृदुष्णिक्। २—५, ७, ८, १०, १६, २५—२७ उष्णिक्। ९, १२, १८, २२, २८ २९ विराडुष्णिक्। १४, १५, १७, २१ पादनिचृदुष्णिक्। १९ आर्ची स्वराडुष्णिक्। ३० निचुदनुष्टुप्॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
प्रभु से ही याचना
पदार्थ
[१] हे (अद्रिवः) = आदरणीय प्रभो ! (नः आशसः) = हमारी कामनायें, आशंसन, अभिलाषायें (त्वत्) = आप से (अन्यत्र) = और जगह (नू चित्) = नहीं ही (जग्मुः) = जायें। अर्थात् हम अपनी सब अभिलाषायें आप के सामने ही प्रकट करें। [२] हे (मघवन्) = ऐश्वर्यशालिन् प्रभो ! आप (नः) = हमारे लिये (ऊतिभिः) = रक्षणों के साथ (तव) = आपके (तत्) = उस ऐश्वर्य को (शग्धि) = दीजिये [देहि] ।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु से ही याचना करें। प्रभु रक्षणों के साथ हमें सब ऐश्वर्यों को प्राप्त करायेंगे।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal