ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 24/ मन्त्र 3
स न॒: स्तवा॑न॒ आ भ॑र र॒यिं चि॒त्रश्र॑वस्तमम् । नि॒रे॒के चि॒द्यो ह॑रिवो॒ वसु॑र्द॒दिः ॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । स्तवा॑नः । आ । भ॒र॒ । र॒यिम् । चि॒त्रश्र॑वःऽतमम् । नि॒रे॒के । चि॒त् । यः । ह॒रि॒ऽवः॒ । वसुः॑ । द॒दिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
स न: स्तवान आ भर रयिं चित्रश्रवस्तमम् । निरेके चिद्यो हरिवो वसुर्ददिः ॥
स्वर रहित पद पाठसः । नः । स्तवानः । आ । भर । रयिम् । चित्रश्रवःऽतमम् । निरेके । चित् । यः । हरिऽवः । वसुः । ददिः ॥ ८.२४.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 24; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
English (1)
Meaning
Such as you are, O lord of glory and magnanimity, sung and celebrated for your munificence, bear and bring us wealth and honour of the highest renowned order of excellence since, O ruler and controller of the dynamics of life, you are the sole giver of wealth and peace and prosperity in a state of good life beyond all doubt and question, suspicion and fear.
मराठी (1)
भावार्थ
विविध संपत्तीच्या प्राप्तीसाठी तोच प्रार्थनीय आहे. ॥३॥
संस्कृत (1)
विषयः
सम्पत्त्यर्थं स एव प्रार्थनीय इति दर्शयति ।
पदार्थः
हे इन्द्र ! स त्वम् । स्तवानः=स्तूयमानः सन् । नोऽस्मभ्यम् । चित्रश्रवस्तमम्=अतिशयेन विविधयशोयुक्तम् । रयिम्= सम्पत्तिम् । आभर=देहि । निरेके+चित्=अभ्युदये स्थापय । हे हरिवः=हे संसाररक्षक ! यस्त्वम् । वसु=वासकः । ददिश्च=दाता च ॥३ ॥
हिन्दी (1)
विषय
धन के लिये वही प्रार्थनीय है, यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(इन्द्र) हे इन्द्र ! (सः) वह तू (स्तवानः) सकल जगत् से और हम लोगों से स्तूयमान होकर (नः) हमको (चित्रश्रवस्तमम्) अतिशय विविधयशोयुक्त (रयिम्) अभ्युदय और सम्पत्ति (आभर) दे और (निरेके+चित्) अभ्युदय के ऊपर स्थापित कर (हरिवः) हे संसाररक्षक ! (यः+वसु+ददिः) जो तू जगद्वासक और दायक है ॥३ ॥
भावार्थ
विविध सम्पत्तियों की प्राप्ति के लिये वही प्रार्थनीय है ॥३ ॥
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