ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 7/ मन्त्र 19
इ॒मा उ॑ वः सुदानवो घृ॒तं न पि॒प्युषी॒रिष॑: । वर्धा॑न्का॒ण्वस्य॒ मन्म॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒माः । ऊँ॒म् । वः॒ । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । घृ॒तम् । न । पि॒ष्युषीः॑ । इषः॑ । वर्धा॑न् । का॒ण्वस्य॑ । मन्म॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमा उ वः सुदानवो घृतं न पिप्युषीरिष: । वर्धान्काण्वस्य मन्मभिः ॥
स्वर रहित पद पाठइमाः । ऊँम् । वः । सुऽदानवः । घृतम् । न । पिष्युषीः । इषः । वर्धान् । काण्वस्य । मन्मऽभिः ॥ ८.७.१९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 7; मन्त्र » 19
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 21; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(सुदानवः) हे शोभनदानाः ! (काण्वस्य, मन्मभिः) विदुषां समुदायस्य ज्ञानैः (घृतं, न, पिप्युषीः) घृतमिव पोषकाः (इमाः, वः, इषः) इमं युष्माकमैश्वर्यपदार्थाः (वर्धान्, उ) वर्धन्ताम्, “उ” पूरणः ॥१९॥
विषयः
अन्नैः प्राणवृद्धिर्भवतीति दर्शयति ।
पदार्थः
हे सुदानवः=शोभनदानाः प्राणाः । घृतं न=घृतमिव । पिप्युषीः=वर्धयित्र्यः । इमाः । इषः=अद्यमानानि अन्नानि । वः+उ=युष्मान्+उ । काण्वस्य=जीवस्य । मन्मभिः=मननैः सह । वर्धान्=वर्धयन्तु ॥१९ ॥
हिन्दी (2)
पदार्थ
(सुदानवः) हे शोभन दानवाले ! (काण्वस्य, मन्मभिः) विद्वानों के समूह के ज्ञानों द्वारा (घृतम्, न, पिप्युषीः) घृत के समान पोषक (इमाः, वः, इषः) यह आपके ऐश्वर्यपदार्थ (वर्धान्) बढ़ें ॥१९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में यह उपदेश किया है कि हे विद्वान् पुरुषो ! आप घृतादि पुष्टिप्रद पदार्थों को बढ़ायें अर्थात् उनकी रक्षा करें, जिससे बल-वीर्य्य की पुष्टि तथा वृद्धि द्वारा नीरोग रहकर ब्रह्मविद्या तथा ऐश्वर्य्य की वृद्धि करने में यत्नवान् हों ॥१९॥
विषय
अन्नों से प्राणों की वृद्धि होती है, यह दिखलाते हैं ।
पदार्थ
(सुदानवः) हे शोभनदानदाता प्राणो ! (घृतम्+न) घृत के समान (पिप्युषीः) शरीर के पुष्टि करनेवाले (इषः) अन्न (काण्वस्य+मन्मभिः) आत्मा के मनन के द्वारा (वः+उ) तुमको (वर्धान्) बढ़ावें ॥१९ ॥
भावार्थ
यह स्वाभाविक वर्णन है । प्राणों की पुष्टि अन्नों से होती है, यह प्रत्यक्ष है । आत्मा के योग के द्वारा सकल कार्य होना चाहिये, तब ही लाभ होता है । अतः मन्त्र में (काण्वस्य मन्मभिः) पद आया है ॥१९ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O warriors of charity and generosity, we pray that these animations, inspirations and exhortations of ours which, like ghrta, feed the fire of life and rise in flames, may, exalt you by the thoughts and prayers of the wise sage.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात हा उपदेश केलेला आहे, की हे विद्वान पुरुषांनो, तुम्ही घृत इत्यादी पुष्टिप्रद पदार्थ वाढवा. अर्थात त्यांचे रक्षण करा. ज्यामुळे बल, वीर्य, पुष्टी व वृद्धीद्वारे निरोगी बनून ब्रह्मविद्या व ऐश्वर्याची वृद्धी करण्यात प्रयत्नशील असावे ॥१९॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Dhiman
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal