ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 8/ मन्त्र 15
ऋषिः - सध्वंशः काण्वः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
यो वां॑ नासत्या॒वृषि॑र्गी॒र्भिर्व॒त्सो अवी॑वृधत् । तस्मै॑ स॒हस्र॑निर्णिज॒मिषं॑ धत्तं घृत॒श्चुत॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठयः । वा॒म् । ना॒स॒त्यौ॒ । ऋषिः॑ । गीः॒ऽभिः । व॒त्सः । अवी॑वृधत् । तस्मै॑ । स॒हस्र॑ऽनिर्निज॑म् । इष॑म् । ध॒त्त॒म् । घृ॒त॒ऽश्चुत॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो वां नासत्यावृषिर्गीर्भिर्वत्सो अवीवृधत् । तस्मै सहस्रनिर्णिजमिषं धत्तं घृतश्चुतम् ॥
स्वर रहित पद पाठयः । वाम् । नासत्यौ । ऋषिः । गीःऽभिः । वत्सः । अवीवृधत् । तस्मै । सहस्रऽनिर्निजम् । इषम् । धत्तम् । घृतऽश्चुतम् ॥ ८.८.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 8; मन्त्र » 15
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(नासत्यौ) हे सत्यवचनौ ! (यः, वत्सः, ऋषिः) यो भवत्पुत्रतुल्यो विद्वान् (वाम्) युवाम् (गीर्भिः) स्तुतिवाग्भिः (अवीवृधत्) वर्धयति (तस्मै) तस्मा ऋषये (घृतश्चुतम्) स्नेहवर्धकम् (सहस्रनिर्णिजम्) बहुविधम् (इषम्) इष्यमाणं धनमन्नं वा (धत्तम्) दत्तम् ॥१५॥
विषयः
पुनस्तमेवार्थमाह ।
पदार्थः
हे नासत्यौ ! वाम्=युवाम् युवयोर्यशांसि । यो वत्सो=गोवत्सवत् प्रियोऽनुकम्पनीयः । ऋषिः=कविः । गीर्भिः=वचनैः । अवीवृधत् ! तस्मै । सहस्रनिर्णिजम्= अनेकरूपम् । घृतश्च्युतम्=घृतसंयुतम् । इषमभीष्टं धनम् । धत्तम्=प्रयच्छतम् ॥१५ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(नासत्यौ) हे सत्यवादियो ! (यः, वत्सः, ऋषिः) जो आपके पुत्रसदृश विद्वान् (वाम्) आपको (गीर्भिः) स्तुति-वाणियों द्वारा (अवीवृधत्) बढ़ाएँ (तस्मै) उसके लिये (घृतश्चुतम्) स्नेहवर्धक (सहस्रनिर्णिजम्) अनेक प्रकार के (इषम्) अन्न वा धन को (धत्तम्) उत्पन्न करें ॥१५॥
भावार्थ
हे सत्यवादी सभाध्यक्ष तथा सेनाध्यक्षो ! जो पुत्रसदृश विद्वान् आपका स्तवन करते हुए आपको विख्यात करते हैं, वे आपको अपने यज्ञ में आह्वान कर रहे हैं। आप यज्ञ को प्राप्त होकर अन्न तथा धन के दान द्वारा उनको कृतकृत्य करें ॥१५॥
विषय
पुनः उसी अर्थ को कहते हैं ।
पदार्थ
(नासत्यौ) हे असत्यरहित राजा और अमात्यदेव ! (वाम्) आप दोनों के सुयशों को (यः) जो (वत्सः) पुत्रवत् अनुकम्पनीय (ऋषिः) कविगण (गीर्भिः) स्ववचनों से (अवीवृधत्) बढ़ाते हैं, (तस्मै) उन स्तुतिकर्त्ता ऋषियों के (सहस्रनिर्णिजम्) अनेकरूप यद्वा सहस्रों प्रकार के अलङ्करणों से युत और (घृतश्च्युतम्) घृतयुत (इषम्) अभीष्ट अन्न (धत्तम्) देवें ॥१५ ॥
भावार्थ
राज्यसम्बन्धी इतिहासों के लेखक राजा से पोषणीय हैं, यह शिक्षा इससे देते हैं ॥१५ ॥
विषय
ब्रह्मचारी ब्रह्मचारिणी जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे ( नासत्या ) कभी असत्य व्यवहार न करने वाले, सत्य धर्म के व्यवस्थापक और नासिकावत् प्रमुख पदों पर स्थित जनो ! ( यः ) जो ( वत्सः ऋषिः ) उत्तम उपदेष्टा, मन्त्रज्ञ पुरुष ( वां अवीवृधत् ) आप दोनों को वृद्धि प्रदान करता है (तस्मै ) उसके आदरार्थ, वा रक्षार्थ आप दोनों ( घृतश्चुतम् इषम् ) घृतयुक्त नाना रूप अन्न के समान ही ( सहस्रनिर्णिजं) बहुत रूपों का, हज़ारों पुरुषों से बना, (घृतश्चुतम्) तेजोयुक्त पद, ( इषं ) सैन्य, वा नाना प्रकार की स्नेह से युक्त इच्छा को ( धत्तम् ) धारण करो । इति सप्तविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सध्वंसः काण्व ऋषिः। अश्विनौ देवते ॥ छन्द:– १, २, ३, ५, ९, १२, १४, १५, १८—२०, २२ निचुदनुष्टुप्। ४, ७, ८, १०, ११, १३, १७, २१, २३ आर्षी विराडनुष्टुप्। ६, १६ अनुष्टुप् ॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
विषय
सहस्त्रनिर्णिजं धृतश्चुतम्
पदार्थ
[१] हे (नासत्यो) = सब असत्यों को दूर करनेवाले प्राणापानो ! (यः) = जो (ऋषिः) = तत्त्वद्रष्टा (वत्सः) = वेदवाणियों का उच्चारण करनेवाला पुरुष (गीर्भिः) = ज्ञानपूर्वक उच्चरित स्तुतिवाणियों के द्वारा (वाम्) = आपका (अवीवृधत्) = वर्धन करते हैं। (तस्मै) = उसके लिये आप (इषम्) = प्रभु की उस प्रेरणा का (धत्तम्) = धारण करते हो, जो (सहस्त्रनिर्णिजम्) = हजारों प्रकार से हमारा शोधन करनेवाली है तथा (घृतश्चतम्) = ज्ञानदीप्ति को हमारे में क्षरित करनेवाली है। [२] जब एक व्यक्ति प्राणसाधना द्वारा अपने हृदय को शुद्ध करता है, तो वहाँ हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा सुनाई पड़ती है। यह प्रेरणा हमारे जीवनों का शोधन करती है [सहस्रनिर्णिजम् ] और हमारे ज्ञान को बढ़ाती है।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्राणसाधना द्वारा शुद्ध हुए हुए हृदय में प्रभु प्रेरणा को सुनें। यह प्रेरणा हमारे जीवन का शोधन करती है और हमारे ज्ञान को बढ़ाती है।
इंग्लिश (1)
Meaning
Ever true and relentless observers of the laws of divinity, to the poet sage, your darling celebrant who exalts you with his words of song, bear and bring food, energy and vision of wisdom vibrating with divine illumination and grace.
मराठी (1)
भावार्थ
हे सत्यवादी सभाध्यक्षा व सेनाध्यक्षा, जे पुत्रासारखे विद्वान तुमचे स्तवन करत तुम्हाला प्रसिद्ध करतात ते तुम्हाला यज्ञात आमंत्रित करतात. तुम्ही यज्ञात सहभागी होऊन अन्न व धनाचे दान करून त्यांना कृतकृत्य करा. ॥१५॥
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