ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 83/ मन्त्र 8
ऋषिः - कुसीदी काण्वः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र भ्रा॑तृ॒त्वं सु॑दान॒वोऽध॑ द्वि॒ता स॑मा॒न्या । मा॒तुर्गर्भे॑ भरामहे ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । भ्रा॒तृ॒त्ऽवम् । सु॒ऽदा॒न॒वः॒ । अध॑ । द्वि॒ता । स॒मा॒न्या । मा॒तुः । गर्भे॑ । भ॒रा॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र भ्रातृत्वं सुदानवोऽध द्विता समान्या । मातुर्गर्भे भरामहे ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । भ्रातृत्ऽवम् । सुऽदानवः । अध । द्विता । समान्या । मातुः । गर्भे । भरामहे ॥ ८.८३.८
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 83; मन्त्र » 8
अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 4; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Brotherliness and similarity as well as duality and dissimilarity, O generous Vishvedevas, we acquire in mother Prakrti’s womb and bear from there.
मराठी (1)
भावार्थ
सर्व दिव्य गुणी लोकांचा परस्पर भ्रातृत्वभाव असतो; परंतु त्यांच्यात द्वित्वही असते. त्यामुळे ते परस्परांना मान देतात. गुणांच्या भिन्नतेमुळे त्यांच्यात द्वेषभावना नसते; परंतु ‘द्विता’ असूनही त्यांच्यात भ्रातृत्व असते. ते एकमेकांचे पालक असतात व त्यांच्यात आपापसात सौहार्द असते. या भ्रातृत्वाचे कारण हे आहे की, सर्वजण एक माता प्रकृतीची संताने आहेत. तिच्याच गर्भात राहत आलेले आहेत. ॥८॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
हे (सुदानवः) सुदाता दिव्यजनो! (भ्रातृत्वम्) भ्रातृत्व भाव अर्थात् हिस्सा बँटाने व परस्पर पालक होने का गुण (अधा) और साथ ही (समान्या) आदरयुक्त (द्विता) द्वित्वस्वरूप ये दोनों गुण हम (मातुः) प्रकृति के गर्भे आन्तरिक भाग में ही (प्रभरामहे) धारण करते हैं।॥८॥
भावार्थ
सभी दिव्यगुणियों का आपस में भ्रातृत्व तो है ही, पर उनमें द्वित्व भी है जिसका वे परस्पर आदर करते हैं; गुणों की भिन्नता से उनमें परस्पर द्वेष भावना नहीं; अपितु उनकी 'द्विता' होते हुए भी उनमें भ्रातृत्व है; वे एक-दूसरे के पालक हैं। इस भ्रातृत्व का कारण यही है कि सभी प्रकृति माता की सन्तान हैं, उसी के गर्भ में निवास कर रहे हैं॥८॥
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