ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 100/ मन्त्र 9
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
त्वं द्यां च॑ महिव्रत पृथि॒वीं चाति॑ जभ्रिषे । प्रति॑ द्रा॒पिम॑मुञ्चथा॒: पव॑मान महित्व॒ना ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । द्याम् । च॒ । म॒हि॒ऽव्र॒त॒ । पृ॒थि॒वीम् । च॒ । अति॑ । ज॒भ्रि॒षे॒ । प्रति॑ । द्रा॒पिम् । अ॒मु॒ञ्च॒थाः॒ । पव॑मान । म॒हि॒ऽत्व॒नास् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं द्यां च महिव्रत पृथिवीं चाति जभ्रिषे । प्रति द्रापिममुञ्चथा: पवमान महित्वना ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । द्याम् । च । महिऽव्रत । पृथिवीम् । च । अति । जभ्रिषे । प्रति । द्रापिम् । अमुञ्चथाः । पवमान । महिऽत्वनास् ॥ ९.१००.९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 100; मन्त्र » 9
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(महिव्रत) हे महाव्रत परमात्मन् ! (त्वं) भवान् (द्याम्) द्युलोकं (पृथिवीं) पृथ्वीलोकं च (अति जभ्रिषे) महैश्वर्ययुक्तं करोति (पवमान) हे पावयितः ! (महित्वना) स्वमहत्त्वेन (द्रापिं) रक्षारूपतनुत्राणेन (प्रति अमुञ्चथाः) आच्छादयति ॥९॥ इति शततमं सूक्तम् अष्टाविंशतितमो वर्गश्च समाप्तः ॥ इति श्रीमदार्य्यमुनिनोपनिबद्धे ऋक्संहिताभाष्ये सप्तमाष्टके नवमे मण्डले चतुर्थोऽध्यायः समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(महिव्रत) हे बड़े व्रतवाले परमात्मन् ! (त्वं) आप (द्यां) द्युलोक (च) और (पृथिवीं) पृथिवीलोक को (अति जभ्रिषे) अत्यन्त ऐश्वर्यसम्पन्न बनाते हो। (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (महित्वना) अपने महत्त्व से (द्रापिं) रक्षारूपी कवच से (प्रत्यमुञ्चथाः) आच्छादित करते हो ॥९॥
भावार्थ
परमात्मा ने द्युलोक और पृथिवीलोक को ऐश्वर्यशाली बनाकर उसे अपने रक्षारूप कवच से आच्छादित किया। ऐसी विचित्र रचना से इस ब्रह्माण्ड को रचा है कि उसके महत्त्व को कोई नहीं पा सकता ॥९॥ यह १०० वाँ सूक्त और २८ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, universal soul of high commitment of Dharma, pure and purifying energy of omnipresent divine flow, you wear the armour of omnipotence, bear, sustain and edify the heaven and earth by your majesty and transcend.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराने द्युलोक व पृथ्वीलोकाला ऐश्वर्यवान बनवून त्याला आपल्या रक्षणरूप कवचाने आच्छादित केलेले असून अशा विविध रचनांनी या ब्रह्मांडाला निर्माण केलेले आहे की त्याचे महत्त्व कोणी नाकारू शकत नाही. ॥९॥
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