ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
सना॒ दक्ष॑मु॒त क्रतु॒मप॑ सोम॒ मृधो॑ जहि । अथा॑ नो॒ वस्य॑सस्कृधि ॥
स्वर सहित पद पाठसना॑ । दक्ष॑म् । उ॒त । क्रतु॑म् । अप॑ । सो॒म॒ । मृधः॑ । ज॒हि॒ । अथ॑ । नः॒ । वस्य॑सः । कृ॒धि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सना दक्षमुत क्रतुमप सोम मृधो जहि । अथा नो वस्यसस्कृधि ॥
स्वर रहित पद पाठसना । दक्षम् । उत । क्रतुम् । अप । सोम । मृधः । जहि । अथ । नः । वस्यसः । कृधि ॥ ९.४.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (क्रतुम्) अस्मच्छुभकर्माणि (सन) रक्षतु (अथ) किञ्च (मृधः) पापकर्म्माणि (अप, जहि) अस्मत्तोऽपनय (उत) अथ (दक्षम्) सुनीतिं (वस्यसः) मुक्तिं (कृधि) कुरु ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (क्रतुम्) हमारे शुभ कर्म्मों की आप (सन) रक्षा करें (अथ) और (मृधः) पाप कर्म्मों को (अप जहि) हमसे दूर करें (उत) और (दक्षम्) सुनीति और (वस्यसः) मुक्ति सदा (कृधि) करो ॥३॥
भावार्थ
जो पुरुष शुद्धभाव से परमात्मपरायण होते हैं, परमात्मा उनके पापकर्म्मों को हर लेता है और नाना प्रकार के चातुर्य्य उनको प्रदान करता है ॥३॥
विषय
दक्ष- क्रतु [बल व ज्ञान]
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (दक्षं सन) = हमें बल दे । (उत) = और (क्रतुम्) = प्रज्ञान को भी प्राप्त करा । सोम के रक्षण से हम बल व प्रज्ञान से सम्पन्न हों। हमारे क्षत्र व ब्रह्म का विकास होकर हमारा जीवन श्रेष्ठ बने । [२] हे (सोम) = वीर्य ! तू (मृधः) = हिंसक शत्रुओं को (अपजहि) = सुदूर विनष्ट कर । वासनाएँ ही हमारे हिंसक शत्रु हैं। बल व प्रज्ञान के विकास से वासनाओं का विनाश होता है । (अथा) = अब इस वासना विनाश को करके (नः) = हमें (वस्यसः कृधि) = उत्कृष्ट जीवनवाला कर ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारे बल व ज्ञान का विकास करके, नानारूप शत्रुओं का नाश करता है।
विषय
राजा वा शासक के कर्त्तव्य, प्रजा के बल की वृद्धि, ज्ञानवृद्धि और दुष्ट दमन।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन्! प्रभो ! तू (नः) हमें (दक्षम् सन) बल, ज्ञान दे। (क्रतुम् सन) कर्म सामर्थ्य दे। (उत) और (मृधः जहि) हमारे हिंसाकारी दुष्टों को दण्ड दे। (अथ) और (नः) हमें (वस्य सः कृधि) उत्तम श्रेष्ठ धन का स्वामी बना।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
हिरण्यस्तूप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ४, १० गायत्री। २, ५, ८, ९ निचृद् गायत्री। ६, ७ विराड् गायत्री ॥ दशर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of peace and excellence, give us strength and efficiency, protect and promote our noble actions, and ward off all sin, violence and evil forces, and thus make us happy and successful, more and ever more.
मराठी (1)
भावार्थ
जे पुरुष शुद्धभावाने परमात्मपरायण असतात. परमात्मा त्यांना पापकर्मापासून दूर करतो व नाना प्रकारचे चातुर्य त्यांना प्रदान करतो ॥३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal