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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 6
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं गोभि॒र्वृष॑णं॒ रसं॒ मदा॑य दे॒ववी॑तये । सु॒तं भरा॑य॒ सं सृ॑ज ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । गोभिः॑ । वृष॑णम् । रस॑म् । मदा॑य । दे॒वऽवी॑तये । सु॒तम् । भरा॑य । सम् । सृ॒ज॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं गोभिर्वृषणं रसं मदाय देववीतये । सुतं भराय सं सृज ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । गोभिः । वृषणम् । रसम् । मदाय । देवऽवीतये । सुतम् । भराय । सम् । सृज ॥ ९.६.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 6; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (तम्) पूर्वोक्तं परमात्मानं (वृषणम्) कामपूरकम् (मदाय) आह्लादाय (रसम्) रसरूपम् (देववीतये) ऐश्वर्यमुत्पादयितुं (भराय) धारयितुं (सुतम्) स्वतःसिद्धं (संसृज) ध्यानविषयीकुरुत ॥६॥

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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (तम्) उक्त परमात्मा को (वृषणम्) जो कामनाओं का देनेवाला है (मदाय) आह्लाद के लिये (रसम्) रसरूप है (देववीतये) ऐश्वर्य उत्पन्न करने के लिये (भराय) धारण करने के लिये (सुतम्) स्वतःसिद्ध उस परमात्मा को (संसृज) ध्यान का विषय बनाओ ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करता है कि हे जीव तू सर्वोपरि ब्रह्मानन्द के देनेवाले ब्रह्मा को एकमात्र लक्ष्य बनाकर उस के साथ तू अपनी चित्तवृत्तियों का योग कर, इसका नाम आध्यात्मिक योग है। रस के अर्थ यहाँ ब्रह्मा के हैं, किसी रसविशेष के नहीं, क्योंकि “रसो वै सः रसं ह्येवायं लब्ध्वा आनन्दी भवति” तै० २। ७। अर्थात् वह ब्रह्मा आनन्दस्वरूप है और उसके आनन्द को लाभ करके जीव आनन्दित होता है ॥६॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    That exuberant ecstasy distilled through sense, mind and intelligence for the love and worship of divinity, O man, further create and develop through communion with the spirit of peace and beatitude for joyous victory in the battle of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की हे जीवा! तू सर्वोत्कृष्ट ब्रह्मानंद देणाऱ्या ब्रह्माला एकमात्र लक्ष्य बनवून त्याच्याबरोबर आपल्या चित्तवृतींचा योग कर. याचे नाव आध्यात्मिक योग आहे. रसाचा अर्थ येथे ब्रह्म आहे. एखादा रस विशेष नाही. कारण ‘‘रसो वै स: रसं ह्मेवायं लब्ध्वा आनंदी भवति’’

    टिप्पणी

    तै. २।७ $ अर्थात तो ब्रह्म आनंदस्वरूप आहे व त्याच्या आनंदाचा लाभ घेऊन जीव आनंदित होतो ॥६॥

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