ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 9
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒वा पु॑ना॒न इ॑न्द्र॒युर्मदं॑ मदिष्ठ वी॒तये॑ । गुहा॑ चिद्दधिषे॒ गिर॑: ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । पु॒ना॒नः । इ॒न्द्र॒ऽयुः । मद॑म् । म॒दि॒ष्ठ॒ । वी॒तये॑ । गुहा॑ । चि॒त् । द॒धि॒षे॒ । गिरः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा पुनान इन्द्रयुर्मदं मदिष्ठ वीतये । गुहा चिद्दधिषे गिर: ॥
स्वर रहित पद पाठएव । पुनानः । इन्द्रऽयुः । मदम् । मदिष्ठ । वीतये । गुहा । चित् । दधिषे । गिरः ॥ ९.६.९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 6; मन्त्र » 9
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (गुहा) भवान् स्वज्ञानमय्यां गुहायां (गिरः) वेदवाचः (दधिषे) धारयति (चित्) यतः (इन्द्रयुः) भवान् ऐश्वर्यमभिलाषायुक्तः अतः (वीतये) ऐश्वर्याय ताभिः (मदम्मदिष्ट) आनन्दं वर्द्धयतु ॥९॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (गुहा) आपने अपनी ज्ञानरूपी गुहा में (गिरः) वेदरूपी वाणियों को (दधिषे) धारण किया है (चित्) क्योंकि (इन्द्रयुः) आप ऐश्वर्य के चाहनेवाले हैं, इसलिये (वीतये) ऐश्वर्य के लिये (मदम्मदिष्ट) उनके द्वारा हमारे आनन्द को बढ़ाइये ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lover of Indra, the soul of humanity, most joyous spirit, pure and purifying thus, exalt and edify the beauty and ecstasy of life for the peace and ultimate freedom of the soul since, after all, you hold the sacred voice of divinity in the cave of the heart.
मराठी (1)
भावार्थ
वेद परमेश्वराच्या ज्ञानात सदैव असतात. आदिसृष्टीत परमेश्वर लोकोपकारासाठी ते प्रकट करतो. या अभिप्रायाने येथे काव्य अर्थात वेदाला प्रत्न (प्राचीन) अर्थात सनातन हे विशेषण दिलेले आहे. वेदांना नित्य मानण्याचाच हा प्रकार आहे. प्रत्येक सर्गाच्या सुरुवातीस परमात्मा आपले ज्ञानरूप वेद प्रकट करतो व प्रलय काळात परमात्म्यात ज्ञानरूपाने वेद विराजमान असतात. ॥९॥
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