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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 87/ मन्त्र 5
    ऋषिः - उशनाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒ते सोमा॑ अ॒भि ग॒व्या स॒हस्रा॑ म॒हे वाजा॑या॒मृता॑य॒ श्रवां॑सि । प॒वित्रे॑भि॒: पव॑माना असृग्रञ्छ्रव॒स्यवो॒ न पृ॑त॒नाजो॒ अत्या॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒ते । सोमाः॑ । अ॒भि । ग॒व्या । स॒हस्रा॑ । म॒हे । वाजा॑य । अ॒मृता॑य । श्रवां॑सि । प॒वित्रे॑भिः । पव॑मानाः । अ॒सृ॒ग्र॒न् । श्र॒व॒स्यवः॑ । न । पृ॒त॒नाजः॑ । अत्याः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एते सोमा अभि गव्या सहस्रा महे वाजायामृताय श्रवांसि । पवित्रेभि: पवमाना असृग्रञ्छ्रवस्यवो न पृतनाजो अत्या: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एते । सोमाः । अभि । गव्या । सहस्रा । महे । वाजाय । अमृताय । श्रवांसि । पवित्रेभिः । पवमानाः । असृग्रन् । श्रवस्यवः । न । पृतनाजः । अत्याः ॥ ९.८७.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 87; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (एते) पूर्वोक्ताः (सोमाः) परमात्मनः सौम्यस्वभावाः (गव्या) गतिशीलाय (सहस्रा) सहस्रशक्तिमते (महे) महते (वाजाय, अमृताय) यज्ञाय (श्रवांसि) ये ऐश्वर्य्यरूपाः (पवित्रेभिः) पूतान्तःकरणैः ये (पवमानाः) पावकाश्च सन्ति, उक्तस्वभावानां (श्रवस्यवः) यशस इच्छव उपासकाः (पृतनाजः) ये युद्धेषु जयमिच्छन्ति ते (अत्याः, न) शीघ्रगामिन्या विद्युतः शक्तय इव (अभि, असृग्रन्) दधतु ॥५॥

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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (एते) पूर्वोक्त (सोमाः) परमात्मा के सौम्यस्वभाव (गव्या) गतिशील (सहस्रा) सहस्र शक्तियोंवाले (महे) बड़े (वाजाय, अमृताय) यज्ञ के लिये जो (श्रवांसि) ऐश्वर्यरूप हैं (पवित्रेभिः) पवित्र अन्तःकरणों से जो (पवमानाः) पवित्रतावाले हैं, वे उक्तस्वभावों को (श्रवस्यवः) यश की इच्छा करनेवाले उपासक लोग (पृतनाजः) जो युद्धों में जेता बनने की इच्छा करते हैं, वे (अत्याः न) शीघ्रगामिनी विद्युत् की शक्तियों के समान (अभ्यसृग्रन्) धारण करें ॥५॥

    भावार्थ

    जो लोग संसार में विजेता बनना चाहें, वे परमात्मा के विचित्र भावों को धारण करें। जिस प्रकार सत्पुरुष के भावों को धारण करने से पुरुष सत्पुरुष बन सकता है, इसी प्रकार उस आदिपुरुष परमात्मा के गुणों के धारण करने से उपासक सत्पुरुष महापुरुष बन सकता है, इसका नाम परमात्मयोग है ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The soma showers heading to the earth, like mighty warriors rushing to battle for victory and immortal fame, bearing a thousand forms of strength, sustenance and advancement, enshrined in purity of the soul vibrate and flow for the holy seeker’s imperishable attainment of immortality over the state of mortality.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक जगात विजेता बनू इच्छितात त्यांनी परमेश्वराच्या नानाविध भावांना धारण करावे. ज्याप्रकारे सत्पुरुषांचे भाव धारण करण्याने सत्पुरुष बनू शकतो. त्याच प्रकारे त्या त्या आदिपुरुष परमात्म्याच्या गुणांना धारण करून उपासक सत्पुरुष महापुरुष बनू शकतो. याचेच नाव परमात्म योग आहे. ॥५॥

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