ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 9
ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
परि॑ प्रि॒यः क॒लशे॑ दे॒ववा॑त॒ इन्द्रा॑य॒ सोमो॒ रण्यो॒ मदा॑य । स॒हस्र॑धारः श॒तवा॑ज॒ इन्दु॑र्वा॒जी न सप्ति॒: सम॑ना जिगाति ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ । प्रि॒यः । क॒लशे॑ । दे॒वऽवा॑तः । इन्द्रा॑य । सोमः॑ । रण्यः॑ । मदा॑य । स॒हस्र॑ऽधारः । श॒तऽवा॑जः । इन्दुः॑ । वा॒जी । न । सप्तिः॑ । सम॑ना । जि॒गा॒ति॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि प्रियः कलशे देववात इन्द्राय सोमो रण्यो मदाय । सहस्रधारः शतवाज इन्दुर्वाजी न सप्ति: समना जिगाति ॥
स्वर रहित पद पाठपरि । प्रियः । कलशे । देवऽवातः । इन्द्राय । सोमः । रण्यः । मदाय । सहस्रऽधारः । शतऽवाजः । इन्दुः । वाजी । न । सप्तिः । समना । जिगाति ॥ ९.९६.९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 9
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(प्रियः) सर्वप्रियः परमात्मा (देववातः) विदुषां सुगमः (सोमः) सर्वोत्पादकः (रण्यः) रम्यः (इन्द्राय, मदाय) कर्मयोग्याह्लादाय (सहस्रधारः) अनन्तशक्तिसम्पन्नः (शतवाजः) बहुविधबलसम्पन्नः (इन्दुः) परमैश्वर्यसम्पन्नः स (सप्तिः, न) विद्युच्छक्तिरिव (वाजी) बलरूपः (समना, परि, जिगाति) आध्यात्मिकयज्ञेषु (कलशे) विद्वज्जनान्तःकरणे विराजते ॥९॥
हिन्दी (1)
पदार्थ
(प्रियः) सर्वप्रिय परमात्मा (देववातः) जो विद्वानों से सुगम है, वह (सोमः) सर्वोत्पादक (रण्यः) रमणीक (इन्द्राय मदाय) कर्मयोगी के आह्लाद के लिये (सहस्रधारः) जो अनन्त प्रकार की शक्ति से सम्पन्न और (शतवाजः) अनन्तप्रकार के बल से सम्पन्न है, वह (इन्दुः) परमैश्वर्य्यशाली (सप्तिर्न) विद्युत् की शक्ति के समान (वाजी) बलरूप परमात्मा (समना, परिजिगाति) आध्यात्मिक यज्ञों में (कलशे) “कलाः शेरते अस्मिन् इति कलशम्” नि. ।१।१२ अन्तःकरण में, जिसमें परमात्मा अपनी कलाओं के द्वारा विराजमान हो, उसका नाम यहाँ कलश है, विद्वानों के अन्तःकरण में आकर उपस्थित होता है ॥९॥
भावार्थ
जो लोग ब्रह्मविद्या द्वारा परमात्मा के तत्त्व का चिन्तन करते हैं, परमात्मा अवश्यमेव उनके ज्ञान का विषय होता है ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, spirit of peace, beauty and joy, dearest favourite of all, inspirer and worshipped of divinities and nobilities, beatific shower of joy in a thousand streams, commanding a hundred forms and orders of energy and power, all bliss at heart, radiates like the spirit of energy itself, moves, vibrates and blesses the pure heart core of the soul for its joy, honour and excellence.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक ब्रह्मविद्येद्वारे परमेश्वराच्या तत्त्वाचे चिंतन करतात परमेश्वर त्यांच्या ज्ञानाचा अवश्य विषय असतो. ॥९॥
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