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यजुर्वेद अध्याय - 11

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  • यजुर्वेद - अध्याय 11/ मन्त्र 13
    ऋषिः - कुश्रिर्ऋषिः देवता - वाजी देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    82

    यु॒ञ्जाथा॒ रास॑भं यु॒वम॒स्मिन् यामे॑ वृषण्वसू। अ॒ग्निं भर॑न्तमस्म॒युम्॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒ञ्जाथा॑म्। रास॑भम्। यु॒वम्। अ॒स्मिन्। यामे॑। वृ॒ष॒ण्व॒सू॒ इति॑ वृषण्ऽवसू। अ॒ग्निम्। भर॑न्तम्। अ॒स्म॒युमित्य॑स्म॒ऽयुम् ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जाथाँ रासभँयुवमस्मिन्यामे वृषण्वसू । अग्निम्भरन्तमस्मयुम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जाथाम्। रासभम्। युवम्। अस्मिन्। यामे। वृषण्वसू इति वृषण्ऽवसू। अग्निम्। भरन्तम्। अस्मयुमित्यस्मऽयुम्॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 11; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यैः किं क्व योजनीयमित्याह॥

    अन्वयः

    हे वृषण्वसू सूर्य्यवायू इव शिल्पिनौ! युवमस्मिन् यामे रासभमस्मयुं भरन्तमग्निं युञ्जाथाम्॥१३॥

    पदार्थः

    (युञ्जाथाम्) (रासभम्) जलाग्न्योर्वेगगुणाख्यमश्वम् (युवम्) युवां शिल्पितत्स्वामिनौ (अस्मिन्) (यामे) यान्ति येन यानेन तस्मिन् (वृषण्वसू) वर्षकौ वसन्तौ च (अग्निम्) प्रसिद्धं विद्युतं वा (भरन्तम्) धरन्तम् (अस्मयुम्) अस्मान् यापयितारम्। अत्रास्मदुपपदाद्याधातोरौणादिकः कुः, छान्दसो वर्णलोपो वेति (महा॰८.२.२५) दलोपः। [अयं मन्त्रः शत॰६.३.२.३ व्याख्यातः]॥१३॥

    भावार्थः

    यैर्मनुष्यैर्यस्मिन् याने यन्त्रकलाजलाग्निप्रयोगाः क्रियन्ते, ते सुखेन देशान्तरं गन्तुं शक्नुवन्ति॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यों को क्या कहां जोड़ना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (वृषण्वसू) सूर्य्य और वायु के समान सुख वर्षाने वा सुख में बसने हारे कारीगर तथा उसके स्वामी लोगो! (युवम्) तुम दोनों (अस्मिन्) इस (यामे) यान में (रासभम्) जल और अग्नि के वेगगुणरूप अश्व तथा (अस्मयुम्) हम को ले चलने तथा (भरन्तम्) धारण करने हारे (अग्निम्) प्रसिद्ध वा बिजुली रूप अग्नि को (युञ्जाथाम्) युक्त करो॥१३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य इस विमान आदि यान में यन्त्र, कला, जल और अग्नि के प्रयोग करते हैं, वे सुख से दूसरे देशों में जाने को समर्थ होते हैं॥१३॥

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    विषय

    रासभ-योग

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र की भावना के अनुसार जो पति-पत्नी प्रभु को अपने जीवन का केन्द्र बनाते हैं वे ( वृषण्वसू ) = शक्तिशाली अथवा सुखों के वर्षक प्रभुरूप धनवाले होते हैं। इन पति-पत्नी से कहते हैं कि— २. ( युवम् ) = तुम दोनों ( अस्मिन् यामे ) = इस जीवन-मार्ग में ( रासभम् ) =  [ रास् शब्दे ] हृदयस्थ होकर सदा ज्ञान के शब्दों का उच्चारण करनेवाले उस प्रभु को ( युञ्जाथाम् ) = अपने साथ युक्त करने का प्रयत्न करो। तुम्हारा मन उस प्रभु में लगे और तुम उस प्रभु की वाणी को सुनने के लिए यत्नशील होओ। 

    ३. वे प्रभु ( अग्निं भरन्तम् ) = हमारे अन्दर अग्नि का भरण करनेवाले हैं—हमारे जीवन में उत्साह का सञ्चार करनेवाले हैं और ( अस्मयुम् ) = [ अस्मान् कामयमानम्—उ० ] सदा हमारा हित चाहनेवाले हैं, अतः प्रभु की वाणी को सुनने से अवश्य हमारा भला ही होगा और हमें जीवन में कभी निराशा न होगी। हम सदा सोत्साह बने रहेंगे। ३ वे प्रभु प्रस्तुत मन्त्र में ‘रासभ’ कहे गये हैं—वे [ रास् शब्दे ] हृदयस्थरूपेण सब विद्याओं का उपदेश देते रहते हैं। इन विद्याओं का उपदेश देने से ही वे ‘कु’ [ कौति सर्वा विद्याः ] कवि हैं। उनकी [ श्रि सेवायाम् ] उपासना करने से प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि ‘कु-श्रि’ है। यह इस कु = कवि की काव्यमय वाणियों में उत्साह व हित देखता है। उसी का उपासन, मनन करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ — हम अपनी जीवन-यात्रा में प्रभु को अपने से युक्त करके चलें। उस प्रभु की वाणियाँ हमारे जीवन में अग्नि = उष्णता व उत्साह का सञ्चार करेंगी।

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    विषय

    दो उत्तम अधिकारियों का योग्य विद्वान् पुरुष को नियुक्त करना ।

    भावार्थ

    हे ( वृषण्वसू ) समस्त सुखों के वर्षक और सबको बसाने वाले स्त्री पुरुषो या विद्वान् गणो ! ( युवम् ) तुम दोनों ( याने ) गमन करने में समर्थ रथ में जिस प्रकार ( रासभम् ) शब्द और दीप्त से युक्त अग्नि का शिल्पी लोग प्रयोग करते हैं उसी प्रकार, हे ( वृषण्वसू ) प्रजा पर सुख वर्षण करनेहारे वीर पुरुषो और हे वसो ! वासशील प्रजाजन ( युवं ) आप लोग ( अस्मिन् यामे ) इस राज्य की नियम व्यवस्था में ( स्मयुम् ) हमें मुख्य उद्देश्य तक पहुंचाने में समर्थ या हमें चाहने वाले हमारे प्रिय हितैषी, ( भरन्तम् ) राष्ट्र के भरणपोषणकारी या कार्य संचालन करनेहारे ( रासभम् ) विज्ञानोपदेश से प्रकाशमान, ( अग्निं ) ज्ञानवान् पुरुष को ( युञ्जाथाम् ) उत्तम पदपर नियुक्त करो। अथवा (अग्निं भरन्तम् = हरन्तं )अग्नि के समान तेजस्वी विजिगीषु राजा को और सन्मार्ग पर लेजानेहारे विद्वान् पुरुष को नियुक्त करो ॥ शत० ६ ।३ ।२ ।३॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुक्षिरृषिः । रासभो देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे विमान इत्यादींमध्ये तंत्रज्ञानाद्वारे जल व अग्नी वगैरेचा प्रयोग करतात ती सहजपणे दुसऱ्या देशात जाण्यायेण्यास समर्थ ठरतात.

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    विषय

    यानंतर पुढील मंत्रात हे सांगितले आहे की मनुष्यांनी कुठे कुठे कशाकशाचा संग्रह करावा.

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - सूर्य आणि वायूप्रमाणे सुखाची वृष्टी करणार्‍या अथवा सुखातच निवास करणार्‍या हे शिल्पीजनहो (कारागीर, यांत्रिक, अभियंता आदी लोक हो) आणि त्यांचे स्वामीजनहो (कारखानदार व उद्योगपती), (युवम्) तुम्ही दोघे (अस्मिन्) या (यामे) यानामधे (रासभम्) जल आणि अग्नीच्या वेगगुणरुप अश्वाला जुपणारे आणि (अस्मुयुम्) आम्हा (नागरिकांना) त्या यानातून घेऊन जाणारे तसेच (भरन्तम्) आमचे धारण-पोषण करणारे व्हा. आणि त्यासाठी यानामध्ये (अग्निम्) भौतिक अग्नीचा आणि विद्युतरुप अग्नीचा (युज्जाथाम्) उपयोग करा. (राष्ट्रातील सर्वांसाठी विमानादी यानांची निर्मिती करा व त्यात अग्नी, जल, विद्युत या शक्तींचा कौशल्यपूर्ण उपयोग करा) ॥13॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक विमान आदी यानांत यंत्र, जल आणि अग्नीचा उपयोग करतात, तेच दुसर्‍या देशांचा प्रवास करण्यात (वा येणे-जाणे करिता) समर्थ होतात. ॥13॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O artisan and his master, ye both, the bestowers of happiness like the sun and air, harness electricity in this aeroplane, possessing the speed of fire and water, seating and taking us afar.

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    Meaning

    Man of science and man of technology, both of you creators of a shower of wealth, yoke this horse¬ power of fire/electricity to this carriage bearing and taking us to our destination.

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    Translation

    In this course of sacrifice, may both of you, showerers of wealth, harness the quick moving fire, who fulfils us and favours us. (1)

    Notes

    Again, rásabham could not be translated as an ass. It will not be compatible with the wordings of the mantra. But Uvata and Mahidhara have mentioned it as gardabha devatà gayatri. Rasabham, derived from rabhas; quick-moving (fire). Vrsanvasü, showerers of wealth. Uvata has translated it as वृषा सोक्ता गर्दभ: स ययोर्वसु धनं तौ, impregnator ass is whose wealth, such both of you, the priest and the sacrificer. This interpretation has not appealed to us at all. Asmayum, that which fulfils us or favours us.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনর্মনুষ্যৈঃ কিং ক্ব য়োজনীয়মিত্যাহ ॥
    পুনঃ মনুষ্যদিগকে কী, কোথায় যুক্ত করা উচিত এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (বৃষণ্বসু) সূর্য্য ও বায়ুসদৃশ সুখ বর্ষণকারী এবং সুখে বাসকারী শিল্পী তথা তাহার প্রভুগণ ! (য়ুবম্) তোমরা উভয়ে (অস্মিন্) এই (য়ামে) যানে (রাসভম্) জল ও অগ্নির বেগগুণরূপ অশ্ব তথা (অস্ময়ুম্) আমাদিগকে লইয়া যাইতে তথা (ভরন্তম্) ধারণকারী (অগ্নিম্) প্রসিদ্ধ বা বিদ্যুৎ রূপ অগ্নিকে (য়ুঞ্জাথাম্) যুক্ত কর ॥ ১৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে মনুষ্য এই বিমানাদি যানে যন্ত্র কলা জল ও অগ্নির প্রয়োগ করেন তাহারা সুখপূর্বক অন্য দেশে গমন করিতে সমর্থ হন ॥ ১৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ু॒ঞ্জাথা॒ᳬं রাস॑ভং য়ু॒বম॒স্মিন্ য়ামে॑ বৃষণ্বসূ ।
    অ॒গ্নিং ভর॑ন্তমস্ম॒য়ুম্ ॥ ১৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়ুঞ্জাথামিত্যস্য কুশ্রির্ঋষিঃ । বাজী দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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