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यजुर्वेद अध्याय - 13

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  • यजुर्वेद - अध्याय 13/ मन्त्र 13
    ऋषिः - वामदेव ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदार्ष्यनुस्टुप् स्वरः - निषादः
    147

    ऊ॒र्ध्वो भ॑व॒ प्रति॑वि॒ध्याध्य॒स्मदा॒विष्कृ॑णुष्व॒ दैव्या॑न्यग्ने। अव॑ स्थि॒रा त॑नुहि यातु॒जूनां॑ जा॒मिमजा॑मिं॒ प्रमृ॑णीहि॒ शत्रू॑न्। अ॒ग्नेष्ट्वा॒ तेज॑सा सादयामि॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्ध्वः। भ॒व॒। प्रति॑। वि॒ध्य॒। अधि॑। अ॒स्मत्। आ॒विः। कृ॒णु॒ष्व॒। दैव्या॑नि। अ॒ग्ने॒। अव॑। स्थि॒रा। त॒नु॒हि॒। या॒तु॒जूना॒मिति॑ यातु॒ऽजूना॑म्। जा॒मिम्। अजा॑मिम्। प्र। मृ॒णी॒हि॒। शत्रू॑न्। अ॒ग्नेः। त्वा॒। तेज॑सा। सा॒द॒या॒मि॒ ॥१३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्ध्वा भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृणुष्व दैव्यान्यग्ने । अव स्थिरा तनुहि यातुजूनाञ्जामिमजामिम्प्र मृणीहि शत्रून् । अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्ध्वः। भव। प्रति। विध्य। अधि। अस्मत्। आविः। कृणुष्व। दैव्यानि। अग्ने। अव। स्थिरा। तनुहि। यातुजूनामिति यातुऽजूनाम्। जामिम्। अजामिम्। प्र। मृणीहि। शत्रून्। अग्नेः। त्वा। तेजसा। सादयामि॥१३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 13; मन्त्र » 13
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृशो भवेदित्याह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने विद्वन् राजन्! यतस्त्वमूर्ध्वो भव, शत्रून् प्रति विध्यास्मत् स्थिरा दैव्यान्याविष्कृणुष्व, सुखानि तनुहि, यातुजूनां जामिमजामिमवतनुहि विनाशय, शत्रून् प्रमृणीहि। तस्मादहं त्वाग्नेस्तेजसाधि-सादयामि॥१३॥

    पदार्थः

    (ऊर्ध्वः) उत्कृष्टः (भव) (प्रति) (विध्य) ताडय (अधि) (अस्मत्) (आविः) प्राकट्ये (कृणुष्व) (दैव्यानि) देवैर्विद्वद्भिर्निवृत्तानि वस्तूनि (अग्ने) (अव) (स्थिरा) निश्चलानि (तनुहि) विस्तृणुहि (यातुजूनाम्) ये यान्ति ये च जवन्ते तेषाम् (जामिम्) भोजनयुक्तम् (अजामिम्) भोजनरहितं स्थानम्। अत्र जमुधातोर्वपादिभ्य इतीञ् (प्र) (मृणीहि) हिन्धि (शत्रून्) अरीन् (अग्नेः) पावकस्य (त्वा) त्वाम् (तेजसा) प्रकाशेन सह (सादयामि) स्थापयामि। [अयं मन्त्रः शत॰७.४.१.४१ व्याख्यातः]॥१३॥

    भावार्थः

    मनुष्या राज्यैश्वर्य्यं प्राप्योत्तमगुणकर्मस्वभावा भवेयुः, प्रजाभ्यो दरिद्रेभ्यश्च सततं सुखं दद्युः। धर्मे स्थिराः सन्तो दुष्टाधर्माचारिणो मनुष्यान् सततं शिक्षयेयुः, सर्वोत्कृष्टं सभापतिं च मन्येरन्॥१३॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर वह राजा किस प्रकार का हो, इस का विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) तेजस्विन् विद्वान् पुरुष! जिसलिये आप (ऊर्ध्वः) उत्तम (भव) हूजिये, धर्म के (प्रति) अनुकूल होके (विध्य) दुष्ट शत्रुओं को ताड़ना दीजिये, (अस्मत्) हमारे (स्थिरा) निश्चल (दैव्यानि) विद्वानों के रचे पदार्थों को (आविः) प्रकट (कृणुष्व) कीजिये, सुखों को (तनुहि) विस्तारिये, (यातुजूनाम्) परपदार्थों को प्राप्त होने और वेग वाले शत्रुजनों के (जामिम्) भोजन के और (अजामिम्) अन्य व्यवहार के स्थान को (अव) अच्छे प्रकार विस्तारपूर्वक नष्ट कीजिये और (शत्रून्) शत्रुओं को (प्रमृणीहि) बल के साथ मारिये, इसिलिये मैं (त्वा) आपको (अग्नेः) अग्नि के (तेजसा) प्रकाश के (अधि) सम्मुख (सादयामि) स्थापन करता हूं॥१३॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि राज्य के ऐश्वर्य्य को पाके उत्तम गुण, कर्म और स्वभावों से युक्त होवें, प्रजाओं और और दरिद्रों को निरन्तर सुख देवें। दुष्ट अधर्माचारी मनुष्यों को निरन्तर शिक्षा करें और सबसे उत्तम पुरुष को सभापति मानें॥१३॥

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    विषय

    दिव्यास्त्रों का निर्माण तथा शत्रुओं के रसद की रोक का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे अग्ने ! तेजस्विन् राजन् ! तू ( ऊर्ध्वः ) सब से ऊंचा हो कर ( भव ) रह । ( दैव्यानि ) दिव्य पदार्थों सेबने विद्वान् पुरुषों के बनाये अस्त्रों को ( आचिः कृणुष्व ) प्रकट कर | ( स्थिरा ) स्थिर,दृढ़ धनुषों को ( अब तनुहि । नमा | ( यातुजूनाम् ) वेग से चढ़ाई करने वाले शत्रुओं के ( जामिम् ) सम्बन्धी और ( अजामिम् ) असम्बन्धी अथवा( यातुजूनां जामिम् अजामिम् ) आक्रमण के वेग में आनेवाले शत्रुओं के भोजन द्रव्य, तथा उससे अतिरिक्त द्रव्य को अपने वश करके ( शत्रून् प्रमृणीहि ) शत्रुओं का नाश कर । हे राजन् ! हे वज्र ! (त्वा ) तुमको ( अग्नेः )अग्नि के ( तेजसा ) तेज से ( सादयामि ) स्थापित करता हूं .. शत०७।४।१।७॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः । अग्निर्देवता । निचृदार्ष्यतिजगती । निषादः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    माणसांनी राज्याचे ऐश्वर्य प्राप्त करून उत्तम गुण, कर्म स्वभावयुक्त बनावे. प्रजा व दरिद्री लोकांना सतत सुख द्यावे. दुष्ट व अधर्माचे आचरण करणाऱ्या माणसांना नेहमी शिक्षा करावी व उत्तम पुरुषाला राजा करावे.

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    विषय

    राजा कसा असावा, पुढील मंत्रात याविषयी कथन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) तेजस्वी विद्यावान राजा, आपण (ऊर्ध्व:) उत्कृष्ट (भव) व्हा, श्रेष्ठ व्हा. धर्माविषयी (प्रति) अनुकूल व्हा (समृद्धीचे व धार्मिकजनांचे साह्यकारी व्हा) आणि (विध्य) दुर्जनांना, दुष्ट शत्रूंना ताडन करा. (अस्मत्‌) आम्ही विद्वज्जनांनी रचलेल्या (स्थिरा) दैव्यानि) उपयोगी, स्थायी पदार्थांना (आवि.) प्रकट (कृणुष्व) करा (विद्वान वैज्ञानिकांनी शोधून काढलेल्या यंत्रादीच्या उपयोग घ्या) आमच्यासाठी सुखसोयी (तनुहि) वाढवा. (यावुजूनाम्‌) परधन, परपदार्थ बळकावणाऱ्या आणि आक्रमणकारी शत्रूंच्या (जामिम्‌) भोजनाला आणि (अजामिम्‌) त्यांचे राहण्याचे आदीचे जे अन्य गुप्त स्थान आहेत. यांना (अव) पूर्णपणे नष्ट करा. (राजाने शत्रुपक्षाच्या जल, अन्नादींचा पुरवठा तोडावा व स्थान उध्वस्त करावेत) आणि (शत्रून) शत्रूंना (प्रमृणीहि) पूर्णशक्तीनिशी नष्ट करा. या कार्याच्या पूर्ततेसाठी मी (एक विद्वान) (त्वा) आपणास (अग्ने:) अग्नीच्या (तेजसा) तेज व प्रकाश यांच्या (अधि) सम्मुख (सादयमि) उपस्थित करतो (अग्नीसारखे तेजोयुक्त व्हा, असा आशीर्वाद देतो) ॥13॥

    भावार्थ

    भावार्थ - मनुष्यांनी (प्रजाजनांनी) राज्याद्वारे ऐश्‍वर्य प्राप्त केल्यानंतर (शासकीय मदत, अनुदान आदी मिळाल्यानंतर) गुण, कर्म आणि स्वभाव उत्तम ठेवावेत. (भ्रष्टाचार वा गैरवापर करून नये). समाजातील इतरजनांना, तसेच निर्धनांना सदा सुख-समाधान द्यावे आणि दुष्ट अधर्माचारी माणसांना सदैव दंडित करावे. याशिवाय प्रजाजनांनी सर्वांपेक्षा उत्तम श्रेष्ठ मनुष्यालाच राज्याचा सभापती (राजा) करावे. ॥13॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, rise high, punish the wicked foes righteously, manifest the objects prepared by our steady scholars, enhance pleasures. Destroy the kitchens and other places of plundering of the vigorous enemies. Kill the foes. I settle thee with fires ardour.

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    Meaning

    Agni, lord of light and power, leader of humanity, rise and stay on top. Counter and ward off the enemies of mankind. Develop the best things which our saints and scholars have discovered and invented. Resist and reduce the strength of the opponents to nil. Eliminate the natural, traditional and customary enemies of society. I instal you in your seat with the baptism of light and fire.

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    Translation

    Rise up O divine fire ! Chastise those, who overpower us. Manifest your divine energies. Slacken the strong bowstrings (i. e. the threatening weapons) of malignant foes. Destroy those, who are hostile, whether friends or alien. (1) I charge you with the tremendous initiative of the adorable Lord. (2)

    Notes

    Ürdhvo bhava, be above others; reach higher than others. Be superior. Adhyasmat, those who are above us; those who lord it over us, i. e. our enemies. Yatujünam, यातुधानां, of those who are cause of pain and distress to others; wicked persons or enemies. Jāmim ajāmim, closely related or unrelated strangers. Jāmi means а brother or a sister and relatives of brothers and ER Uvata gives another meaning to these words : जामिशब्द: पुनरुक्तवचन: पुनरुक्तं अपुनरुक्तं कृत्वा, Jami, means repetition, othe the repeated as unrepeated, i. e. hitting again and again and still counting him as unhit. Dayünanda gives quite different meaning भोजनयुक्तं स्थानं and भोजनरहितं स्थानम्, a place well provided with food and a place with no food. Туа, Mahidhara suggests that a wooden spoon is addressed to here.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কীদৃশো ভবেদিত্যাহ ॥
    পুনঃ সে রাজা কী প্রকারের হইবে, এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অগ্নে) তেজস্বিন্ বিদ্বান্ পুরুষ ! যেহেতু আপনি (ঊর্ধ্বঃ) উত্তম (ভব) হউন, ধর্মের (প্রতি) অনুকূল হইয়া (বিধ্য) দুষ্ট শত্রুদিগকে তাড়না করুন (অস্মৎ) আমাদের (স্থিরা) নিশ্চল (দৈব্যানি) বিদ্বান্দিগের রচিত পদার্থগুলিকে (আবিঃ) প্রকট (কৃণুস্ব) করুন, সুখকে (তনুহি) বিস্তার করুন (য়াতুজূনাম্) পরপদার্থ প্রাপ্ত হইবার এবং বেগযুক্ত শত্রুদিগের (জামিম্) ভোজনের এবং (অজামিম্) অন্য ব্যবহারের স্থানকে (অব) সম্যক্ ভাবে বিস্তারপূর্বক নষ্ট করুন এবং (শত্রূণ্) শত্রুদিগকে (প্রমৃণীহি) বলপূর্বক বধ করুন এইজন্য আমি (ত্বা) আপনাকে (অগ্নেঃ) অগ্নির (তেজসা) প্রকাশের (অধি) সম্মুখে (সাদয়ামি) স্থাপন করি ॥ ১৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- মনুষ্যদিগের উচিত যে, রাজ্যের ঐশ্বর্য্য লাভ করিয়া উত্তম গুণ, কর্ম ও স্বভাব যুক্ত হইবে, প্রজা ও দরিদ্রগণকে নিরন্তর সুখ প্রদান করিবে । ধর্মে স্থির হইয়া দুষ্ট অধর্মাচারী মনুষ্যদিগকে নিরন্তর শিক্ষা প্রদান করিবে এবং সর্বাপেক্ষা উত্তম পুরুষকে সভাপতি মানিবে ॥ ১৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ঊ॒র্ধ্বো ভ॑ব॒ প্রতি॑ বি॒ধ্যাধ্য॒স্মদা॒বিষ্কৃ॑ণুষ্ব॒ দৈব্যা॑ন্যগ্নে ।
    অব॑ স্থি॒রা ত॑নুহি য়াতু॒জূনাং॑ জা॒মিমজা॑মিং॒ প্র মৃ॑ণীহি॒ শত্রূ॑ন্ ।
    অ॒গ্নেষ্ট্বা॒ তেজ॑সা সাদয়ামি ॥ ১৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ঊর্ধ্বো ভবেত্যস্য বামদেব ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদার্ষ্যতিজগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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