यजुर्वेद - अध्याय 36/ मन्त्र 12
ऋषिः - दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिः
देवता - आपो देवताः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
329
शन्नो॑ दे॒वीर॒भिष्ट॑य॒ऽआपो॑ भवन्तु पी॒तये॑।शंयोर॒भि स्र॑वन्तु नः॥१२॥
स्वर सहित पद पाठशम्। नः॒। दे॒वीः। अ॒भिष्ट॑ये। आपः॑। भ॒व॒न्तु॒। पी॒तये॑ ॥ शंयोः। अ॒भि। स्र॒व॒न्तु॒। नः॒ ॥१२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शँयोरभि स्रवन्तु नः ॥
स्वर रहित पद पाठ
शम्। नः। देवीः। अभिष्टये। आपः। भवन्तु। पीतये॥ शंयोः। अभि। स्रवन्तु। नः॥१२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
कीदृशा जनाः सुखसम्पन्ना भवन्तीत्याह॥
अन्वयः
हे जगदीश्वर विद्वन्वा! यथाऽभिष्टये पीतये देवीरापो नः शं भवन्तु, नः शंयोर्वृष्टिमभिस्रवन्तु, तथोपदिशतम्॥१२॥
पदार्थः
(शम्) (नः) अस्मभ्यम् (देवीः) दिव्याः (अभिष्टये) इष्टसुखसिद्धये (आपः) जलानि (भवन्तु) (पीतये) पानाय (शंयोः) सुखस्य (अभि) सर्वतः (स्रवन्तु) वर्षन्तु (नः) अस्मभ्यम्॥१२॥
भावार्थः
ये यज्ञादिना शुद्धान् जलादिपदार्थान् सेवन्ते, तेषामुपरि सुखामृतस्य वृष्टिः सततं भवति॥१२॥
हिन्दी (1)
विषय
कैसे मनुष्य सुखों से युक्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे जगदीश्वर वा विद्वन्! जैसे (अभिष्टये) इष्ट सुख की सिद्धि के लिये (पीतये) पीने के अर्थ (देवीः) दिव्य उत्तम (आपः) जल (नः) हमको (शम्) सुखकारी (भवन्तु) होवें (नः) हमारे लिये (शंयोः) सुख की वृष्टि (अभि, स्रवन्तु) सब ओर से करें, वैसे उपदेश करो॥१२॥
भावार्थ
जो मनुष्य यज्ञादि से शुद्ध जलादि पदार्थों का सेवन करते हैं, उन पर सुखरूप अमृत की वर्षा निरन्तर होती है॥१२॥
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे यज्ञ करून जल वगैरे पदार्थ शुद्ध करून त्यांचा स्वीकार करतात. त्यांच्यावर सदैव सुखरूपी अमृताची वृष्टी होते.
इंग्लिश (2)
Meaning
May days pass pleasantly for us. May nights draw near delightfully. May lightning and fire, with their aids, bring us happiness May the Sun and rain givers of joy, comfort us.
Meaning
May the heavenly waters be full of soothing sweetness and give us the pleasure of desired bliss. May they bring us generous showers of profound peace and joy.
बंगाली (1)
विषय
কীদৃশা জনাঃ সুখসম্পন্না ভবন্তীত্যাহ ॥
কেমন মনুষ্য সুখের সঙ্গে যুক্ত হয়, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে জগদীশ্বর বা বিদ্বন্ ! যেমন (অভিষ্টয়ে) ইষ্ট সুখের সিদ্ধি হেতু (পীতয়ে) পান করিবার জন্য (দেবীঃ) দিব্য উত্তম (আপঃ) জল (নঃ) আমাদেরকে (শম্) সুখকারী (ভবন্তু) হউক (নঃ) আমাদের জন্য (শংয়োঃ) সুখের বৃষ্টি (অভি, স্রবন্তু) সব দিক দিয়া করুক সেইরূপ উপদেশ কর ॥ ১২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য যজ্ঞাদি দ্বারা শুদ্ধ জলাদি পদার্থের সেবন করে তাহাদের উপর সুখরূপী অমৃতের বর্ষা নিরন্তর হইতে থাকে ॥ ১২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
শং নো॑ দে॒বীর॒ভিষ্ট॑য়॒ऽআপো॑ ভবন্তু পী॒তয়ে॑ ।
শংয়োর॒ভি স্র॑বন্তু নঃ ॥ ১২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
শং নো দেবীরিত্যস্য দধ্যঙ্ঙাথর্বণ ঋষিঃ । আপো দেবতাঃ । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
ষড্জঃ স্বরঃ ॥
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