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अथर्ववेद के काण्ड - 1 के सूक्त 11 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 11/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - पूषादयो मन्त्रोक्ताः छन्दः - पङ्क्तिः सूक्तम् - नारीसुखप्रसूति सूक्त
    97

    वष॑ट्ते पूषन्न॒स्मिन्त्सूता॑वर्य॒मा होता॑ कृणोतु वे॒धाः। सिस्र॑तां॒ नार्यृ॒तप्र॑जाता॒ वि पर्वा॑णि जिहतां सूत॒वा उ॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वष॑ट् । ते॒ । पू॒ष॒न् । अ॒स्मिन् । सूतौ॑ । अ॒र्य॒मा । होता॑ । कृ॒णो॒तु॒ । वे॒धा: । सिस्र॑ताम् । नारी॑ । ऋ॒तऽप्र॑जाता । वि । पर्वा॑णि । जि॒ह॒ता॒म् । सूत॒वै । ऊं इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वषट्ते पूषन्नस्मिन्त्सूतावर्यमा होता कृणोतु वेधाः। सिस्रतां नार्यृतप्रजाता वि पर्वाणि जिहतां सूतवा उ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वषट् । ते । पूषन् । अस्मिन् । सूतौ । अर्यमा । होता । कृणोतु । वेधा: । सिस्रताम् । नारी । ऋतऽप्रजाता । वि । पर्वाणि । जिहताम् । सूतवै । ऊं इति ॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 1; सूक्त » 11; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    सृष्टिविद्या का वर्णन।

    पदार्थ

    (पूषन्) हे सर्वपोषक, परमेश्वर ! (ते) तेरे लिये (वषट्) यह आहुति [भक्ति] है। (अस्मिन्) इस समय पर (सूतौ) सन्तान के जन्म को (अर्यमा) न्यायकारी, (होता) दाता, (वेधाः) सबका रचनेवाला ईश्वर (कृणोतु) करे। (ऋतप्रजाता) पूरे गर्भवाली (नारी) नर का हित करनेहारी स्त्री (सिस्रताम्) सावधान रहे, (पर्वाणि) इस के सब अङ्ग (उ) भी (सूतवै) सन्तान उत्पन्न करने के लिये (विजिहताम्) कोमल हो जावें ॥१॥

    भावार्थ

    प्रसव का समय होने पर पति आदि विद्वान् लोग परमेश्वर की भक्ति के साथ हवनादि कर्म प्रसूता स्त्री की प्रसन्नता के लिये करें और वह स्त्री सावधान होकर श्वास-प्रश्वास आदि द्वारा अपने अङ्गों को कोमल रक्खे, जिससे बालक सुखपूर्वक उत्पन्न होवे ॥१॥ टिप्पणी−इस सूक्त में माता से सन्तान उत्पन्न होने का उदाहरण देकर बताया गया है कि मनुष्य सृष्टि विद्या के ज्ञान से ईश्वर की अनन्त महिमा का विचार करके परस्पर उपकारी बनें ॥

    टिप्पणी

    १−वषट्। वह प्रापणे−डषटि। इति शब्दस्तोममहानिधौ। आहुतिः, हविर्दानम्। भक्तिः। स्वाहा। पूषन्। १।९।१। पुष्णातीति पूषा। हे सर्वपोषक, परमेश्वर। अस्मिन्। अस्मिन् काले, इदानीम्। सूतौ। षूङ् प्राणिप्रसवे-क्तिन्। सुपां सुपो भवन्तीति वक्तव्यम्। वार्तिकम्, पा० ७।१।३९। इति द्वितीयार्थे सप्तमी। प्रसवकर्म, जन्म। अर्यमा। ऋ गतौ-यत्। अर्यः श्रेष्ठः। श्वनुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति अर्य+मा माने-कनिन्। अर्य्यान् श्रेष्ठान् मिमीते मानयतीति। यथार्थज्ञाता, न्यायकारी होता। नप्तृनेष्टृत्वष्टृहोतृ। उ० २।९६। इति हु दानादानादनेषु। यद्वा ह्वेञ् आह्वाने-तृन्। नित्त्वाद् आद्युदात्तः। दाता। होमकर्त्ता, ऋत्विक्, आह्वाता। कृणोतु। कृवि हिंसाकरणयोः−लोट्। भवान् पूषा उपकरोतु। वेधाः। विधाञो वेध च। उ० ४।२२५। वि+धाञ् धारणपोषणदानेषु−असि, वेधादेशः। विशेषेण दधातीति। ब्रह्मा, चतुर्वेदवेत्ता। मेधावी−निघ० ३।१५। विधाता, रचयिता। सिस्रताम्। सृ गतौ−लोट्, आत्मनेपदम् जुहोत्यादित्वात् शपः श्लुः। अभ्यासस्य इत्त्वम् पुनरपि विकरणः शः। गच्छतु, सावधाना सुखप्रसूता वा भवतु। नारी। ऋतोऽञ्। पा० ४।४।४९। इति नृ नीतौ−अञ्। नृणाति नयतीति नरः। नराच्चेति वक्तव्यम्। तत्र वार्त्तिकम्। नर−अञ्। शार्ङ्गरवाद्यञो ङीन्। पा० ४।१।७३। इति ङीन्। नुर्नरस्य वा धर्म्या। नारी धर्माचारयुक्ता। स्त्री, वधूः। ऋत-प्रजाता। अर्शआदिभ्योऽच्। पा० ५।२।१२७। इति ऋत+प्रजात-अच्, टाप्। ऋतं सत्यं प्रजातं प्रजननमस्त्यस्याः। सत्यप्रसवा, उचितसमयप्रसूता, जीवदपत्या। पर्वाणि। पर्व गतौ-कनिन्। यद्वा स्नामदिपद्यर्त्तिपॄशकिभ्यो वनिप्। उ० ४।११३। इति पॄ पूर्त्तौ पालने च-वनिप्। शरीरग्रन्थयः, देहसन्धयः। वि+जिहताम्। ओहाङ् गतौ−लोट् बहुवचनम्, जुहोत्यादिः। विशेषेण गच्छन्तु कोमलानि सुखप्रसवयोग्यानि भवन्तु। सूतवै। तुमर्थे सेसेन्०। पा० ३।४।९। इति षूङ् प्राणिगर्भविमोचने तवै प्रत्ययः। प्रसवार्थम् ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Easy Delivery

    Meaning

    O Pusha, spirit of life’s procreation, for the expectant mother, may every thing be good and auspicious in this child birth. May Aryama, creative law of nature, hota, the father, Vedha, the specialist physician, all be good and helpful and auspicious. May the mother give birth to the baby comfortably. May she relax all over her body system.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−वषट्। वह प्रापणे−डषटि। इति शब्दस्तोममहानिधौ। आहुतिः, हविर्दानम्। भक्तिः। स्वाहा। पूषन्। १।९।१। पुष्णातीति पूषा। हे सर्वपोषक, परमेश्वर। अस्मिन्। अस्मिन् काले, इदानीम्। सूतौ। षूङ् प्राणिप्रसवे-क्तिन्। सुपां सुपो भवन्तीति वक्तव्यम्। वार्तिकम्, पा० ७।१।३९। इति द्वितीयार्थे सप्तमी। प्रसवकर्म, जन्म। अर्यमा। ऋ गतौ-यत्। अर्यः श्रेष्ठः। श्वनुक्षन्पूषन्०। उ० १।१५९। इति अर्य+मा माने-कनिन्। अर्य्यान् श्रेष्ठान् मिमीते मानयतीति। यथार्थज्ञाता, न्यायकारी होता। नप्तृनेष्टृत्वष्टृहोतृ। उ० २।९६। इति हु दानादानादनेषु। यद्वा ह्वेञ् आह्वाने-तृन्। नित्त्वाद् आद्युदात्तः। दाता। होमकर्त्ता, ऋत्विक्, आह्वाता। कृणोतु। कृवि हिंसाकरणयोः−लोट्। भवान् पूषा उपकरोतु। वेधाः। विधाञो वेध च। उ० ४।२२५। वि+धाञ् धारणपोषणदानेषु−असि, वेधादेशः। विशेषेण दधातीति। ब्रह्मा, चतुर्वेदवेत्ता। मेधावी−निघ० ३।१५। विधाता, रचयिता। सिस्रताम्। सृ गतौ−लोट्, आत्मनेपदम् जुहोत्यादित्वात् शपः श्लुः। अभ्यासस्य इत्त्वम् पुनरपि विकरणः शः। गच्छतु, सावधाना सुखप्रसूता वा भवतु। नारी। ऋतोऽञ्। पा० ४।४।४९। इति नृ नीतौ−अञ्। नृणाति नयतीति नरः। नराच्चेति वक्तव्यम्। तत्र वार्त्तिकम्। नर−अञ्। शार्ङ्गरवाद्यञो ङीन्। पा० ४।१।७३। इति ङीन्। नुर्नरस्य वा धर्म्या। नारी धर्माचारयुक्ता। स्त्री, वधूः। ऋत-प्रजाता। अर्शआदिभ्योऽच्। पा० ५।२।१२७। इति ऋत+प्रजात-अच्, टाप्। ऋतं सत्यं प्रजातं प्रजननमस्त्यस्याः। सत्यप्रसवा, उचितसमयप्रसूता, जीवदपत्या। पर्वाणि। पर्व गतौ-कनिन्। यद्वा स्नामदिपद्यर्त्तिपॄशकिभ्यो वनिप्। उ० ४।११३। इति पॄ पूर्त्तौ पालने च-वनिप्। शरीरग्रन्थयः, देहसन्धयः। वि+जिहताम्। ओहाङ् गतौ−लोट् बहुवचनम्, जुहोत्यादिः। विशेषेण गच्छन्तु कोमलानि सुखप्रसवयोग्यानि भवन्तु। सूतवै। तुमर्थे सेसेन्०। पा० ३।४।९। इति षूङ् प्राणिगर्भविमोचने तवै प्रत्ययः। प्रसवार्थम् ॥

    बंगाली (1)

    पदार्थ

    (পূষন্) হে সর্ব পোষক পরমাত্মন! (তে) তোমার জন্য (বষট্) এই আহুতি প্রদান করিতেছি। (অস্মিন্) এই সময়ে (সূতৌ) সন্তানের জন্মকে (অর্রমা) ন্যায়বান (হোতা) দাতা (বেধাঃ) রচয়িতা (কৃণীতু) সম্পাদন করুন। (ঋত প্রজতা) পূর্ণ গর্ভবতী (নারী) স্ত্রী (সিস্প্রতাং) সাবধানে থাকুক (পূর্বাণি) অঙ্গ প্রত্যঙ্গ সমূহ (উ)(সূতবৈ) সন্তান উৎপাদন হেতু (বিজিহতাম্) কোমর হউক।।

    भावार्थ

    হে সর্ব পোষক পরমাত্মন! তোমার উদ্দেশেই আত্মনিবেদন করিতেছি। ন্যায়বান, দাতা, রচয়িতা পরমাত্মা এই সময় সন্তানের জন্ম বিধান করুন। পূর্ণ গর্ভা স্ত্রী সাবধানে থাকুক। ইহার অঙ্গ প্রতাঙ্গাদি সন্তানোৎপাদন হেতু কোমল হউক।।
    প্রসব কালে আত্মীয়রা ঈশ্বর ভক্তির সহিত হোম করিয়া স্ত্রীকে প্রসন্ন করিবে। স্ত্রী শ্বাস প্রশ্বাস দ্বারা অতি সাবধানে অঙ্গকে কোমল রাখিবে। ইহাতে সন্তান শান্তির সহিত ভূমিষ্ঠ হইবে।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    বর্ষট্ তে পূষন্নস্মিনৎ সূতাবয়মা হোতা কৃণীতু বেধাঃ । সিপ্রতাং নায়ত প্রজাতা বি পর্বাণি জিহতাং সূতবা উ।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    অর্থবা। পৃষাদয়ো মন্তোক্তাঃ। পঙক্তিঃ

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