अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 3
ऋषिः - अथर्वा
देवता - सिन्धुसमूहः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पुष्टिकर्म सूक्त
88
ये न॒दीनां॑ सं॒स्रव॒न्त्युत्सा॑सः॒ सद॒मक्षि॑ताः। तेभि॑र्मे॒ सर्वैः॑ संस्रा॒वैर्धनं॒ सं स्रा॑वयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठये । न॒दीना॑म् । स॒म्ऽस्रव॑न्ति । उत्सा॑स : । सद॑म् । अक्षि॑ता: ।तेर्भि॑: । मे॒ । सर्वै॑: । स॒म्ऽस्रा॒वै: । धन॑म् । सम् । स्रा॒व॒या॒म॒सि॒॥
स्वर रहित मन्त्र
ये नदीनां संस्रवन्त्युत्सासः सदमक्षिताः। तेभिर्मे सर्वैः संस्रावैर्धनं सं स्रावयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठये । नदीनाम् । सम्ऽस्रवन्ति । उत्सास : । सदम् । अक्षिता: ।तेर्भि: । मे । सर्वै: । सम्ऽस्रावै: । धनम् । सम् । स्रावयामसि॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ऐश्वर्य की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(नदीनाम्) नाद करनेवाली नदियों के (ये) जो (अक्षिताः) अक्षय (उत्सासः) स्रोते (सदम्) सर्वदा (संस्रवन्ति) मिलकर बहते हैं। (तेभिः सर्वैः) उन सब (संस्रावैः) जलप्रवाहों के साथ (मे) अपने (धनम्) धनको (सम्) उत्तम रीति से (स्रावयामसि) हम व्यय करें ॥३॥
भावार्थ
जैसे पर्वतों पर जल के सोते मिलने से वेगवती और उपकारिणी नदिएँ बनती हैं, जो ग्रीष्मऋतु में भी नहीं सूखतीं, इसी प्रकार हम सब मिलकर विज्ञान और उत्साहपूर्वक तडित्, अग्नि, वायु, सूर्य, जल, पृथिवी आदि पदार्थों से उपकार लेकर अक्षय धन बढ़ावें और उसे उत्तम कर्मों में व्यय करें ॥३॥
टिप्पणी
३−नदीनाम्। १।८।१। नदनशीलानां सरिताम्, सरस्वतीनाम्। सम्-स्रवन्ति। सम्भूय प्रवहन्ति। उत्सासः। उन्दिगुधिकुषिभ्यश्च। उ० ३।६८। इति उन्दी क्लेदे−स प्रत्ययः। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति जसि असुक् आगमः। उत्सः कूपनाम−निघ० ३।२३। जलस्रवणस्थानानि, स्रोतांसि। सदम्। सर्वदा, ग्रीष्मादावपि। अक्षिप्ताः। क्षि क्षये-क्त। अक्षीणाः। तेभिः। बहुलं छन्दसि। पा० ७।१।१०। इति भिस ऐस्भावः। तैः। मे। मम=अस्माकम्। एकवचनं बहुवचने। सम्-स्रावैः। श्याऽऽद्व्यधास्रुसंस्रवतीण०। पा० ३।१।१४१। इति सम्+स्रु स्रवणे-ण प्रत्ययः। अचो ञ्णिति। पा० ७।२।११५। इति वृद्धिः। प्रवाहैः। धनम्। धन धान्ये−अच् यद्वा, कृपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः क्यु। वित्तम्, सम्पदम्। स्रावयामसि। स्रु स्रवणे−णिचि लट्, इदन्तो मसि। पा० ७।१।४६। इति मस इदन्तता। स्रावयामः, प्रवाहयामः, व्ययं कुर्मः ॥
विषय
सङ्गठन व धन
पदार्थ
१. (ये) = जो (नदीनाम्) = नदियों के (उत्सास:) = प्रवाह (अक्षिता:) = सङ्गठन के कारण अक्षीण हुए हुए (सदम् संस्त्रवन्ति) = सदा बहते हैं, प्रभु कहते हैं कि मे मेरे (तेभिः सर्वैः संस्त्रावै:) = उन सब सम्मिलित प्रवाहों से (धनं सं स्त्रावयामसि) = धन को प्राप्त कराते हैं। २. सदा बहनेवाली नदियाँ [क] नावों के लिए उपयुक्त मार्ग बनकर व्यापारिक सुविधा उपस्थित करती हैं, इस व्यापार के द्वारा धनवृद्धि होती है, [ख] इनके जलों को बाँध आदि से रोककर विद्युत् उत्पन्न करने की व्यवस्था होती है। वह विविध यन्त्रों के चालन द्वारा धनवृद्धि का कारण होती है, [ग] सदा प्रवाहित होनेवाली नदियाँ नहरों के द्वारा सिंचाई के लिए भी सहायक होती हैं। ३. ये नदियों के प्रवाह अलग-अलग बहते रहें तो न नावें चलतीं, न विद्युत् उत्पन्न होती और न इससे नहरें निकल पातीं।
भावार्थ
सम्मिलित रूप में बहनेवाली नदियों के प्रवाह नावों के मार्ग बनकर विद्यदुत्पादन में सहायक होकर तथा नहरों द्वारा सिंचाई का साधन बनकर धनवृद्धि का कारण होती है।
भाषार्थ
(नदीनाम्) नदियों के (ये ) जो (उत्सास:) उत्स (संस्रवन्ति) प्रवाहित होते हैं (सदम) सदा (अक्षिता:) न क्षीण हुए, (तेभि:) उन सब (संस्रावैः) प्रवाहो द्वारा (मे) मुझ व्यापाराध्यक्ष के (धनम् ) सम्पत्ति को (संस्रावयामसि) हम मिलकर प्रवाहित करते हैं। उत्सास:=नदियों के उद्गम स्थान अर्थात् स्रोत जहाँ से नदियों का उद्गम होता है।
विषय
गमनागमन के साधन
भावार्थ
( नदीनां ) नदियों के ( अक्षिताः ) अविनाशी, अक्षय (ये) जो ( उत्सासः ) जलमय स्रोत ( मे ) मेरे राष्ट्र में ( संस्रवन्ति ) बह रहे हैं ( तभिः ) उन ( सर्वैः ) समस्त ( संस्रावैः ) प्रवाहों द्वारा ( धनम् ) धन को ( सं स्रावयामसि ) हम सब मिलकर कमाते रहें । उनसे व्यापार करें, जहाज़ चलावें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। सिन्धुर्देवता । १, ३, ४ अनुष्टुप् छन्दः। २ भुरिक्पथ्यापंक्तिः। चतुऋचं सूक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Joint Power
Meaning
Whichever abundant and inexhaustible streams of world economy flow together in this world order, by all those confluent streams we jointly augment the growth and dynamic stability of the world community for me, i.e., the one spirit of world order, for ourselves.
Translation
The fountains of streams that flow to meet together unexhausted for ever, with all those confluent streams, may you make riches flow converging towards me.
Translation
All the fountains of rivers that flow inexhaustibly in my nation with all these confluent streams of mine we make them riches flow here abundantly.
Translation
The inexhaustible founts of streams that flow for ever with all these confluent streams we make abundant riches flow.
Footnote
The water of rivers should be used for agriculture, navigation and providing electricity, by means of which we can earn much money.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−नदीनाम्। १।८।१। नदनशीलानां सरिताम्, सरस्वतीनाम्। सम्-स्रवन्ति। सम्भूय प्रवहन्ति। उत्सासः। उन्दिगुधिकुषिभ्यश्च। उ० ३।६८। इति उन्दी क्लेदे−स प्रत्ययः। आज्जसेरसुक्। पा० ७।१।५०। इति जसि असुक् आगमः। उत्सः कूपनाम−निघ० ३।२३। जलस्रवणस्थानानि, स्रोतांसि। सदम्। सर्वदा, ग्रीष्मादावपि। अक्षिप्ताः। क्षि क्षये-क्त। अक्षीणाः। तेभिः। बहुलं छन्दसि। पा० ७।१।१०। इति भिस ऐस्भावः। तैः। मे। मम=अस्माकम्। एकवचनं बहुवचने। सम्-स्रावैः। श्याऽऽद्व्यधास्रुसंस्रवतीण०। पा० ३।१।१४१। इति सम्+स्रु स्रवणे-ण प्रत्ययः। अचो ञ्णिति। पा० ७।२।११५। इति वृद्धिः। प्रवाहैः। धनम्। धन धान्ये−अच् यद्वा, कृपॄवृजिमन्दिनिधाञः क्युः। उ० २।८१। इति डुधाञ् धारणपोषणयोः क्यु। वित्तम्, सम्पदम्। स्रावयामसि। स्रु स्रवणे−णिचि लट्, इदन्तो मसि। पा० ७।१।४६। इति मस इदन्तता। स्रावयामः, प्रवाहयामः, व्ययं कुर्मः ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(নদীনাং) নদী সমূহের (য়ে) যে (অক্ষিতাঃ) অক্ষয় (উৎসাসঃ) স্রোত (সদং) সর্বদা (সংস্রবন্তি) মিলিত হইয়া প্রবাহিত হয় (তেভিঃ সবৈঃ) সেই সব (সংস্ৰাবৈঃ) জল প্রবাহের সহিত (মে) আমার (ধনং) ধনকে (সম্) সৎভাবে (স্রাবয়ামসি) ব্যয় করিব।
भावार्थ
নদী সমূহের যে অক্ষয়স্রোেত মিলিত সর্বদা মিলিত হইয়া প্রবাহিত হয়, সেই সব জল প্রবাহের সহিত নিজের ধনকে সদ্ভাবে ব্যয় করিব।।
পর্বতের উপর জল স্রোেত মিলিত হইয়া বেগবতী নদীর আকার ধারণ করে। গ্রীষ্ম ঋতুতেও ইহা শুষ্ক হয় না। আমরাও প্রাকৃতিক পদার্থের সদ্ব্যবহার করিয়া অক্ষয় ধন সঞ্চয় করিব। ইহা সৎকার্যে ব্যয় করিব। ইহাও কখনো নিঃশেষ হইবে না।।
मन्त्र (बांग्ला)
য়ে নদীনাং সংশ্রবন্ত্র্যসাসঃ সদমক্ষিতাঃ। তেবিৰ্মে সর্বৈঃ সংস্রাবৈর্ধনং সংস্রাবয়ামসি।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা। সিদ্ধাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(ঐশ্বর্যপ্রাপ্ত্যুপদেশঃ) ঐশ্বর্য প্রাপ্তির উপদেশ
भाषार्थ
(নদীনাম্) নাদকারী নদীসমূহের (যে) যে (অক্ষিতাঃ) অক্ষয় (উৎসাসঃ) স্রোত (সদম্) সর্বদা (সংস্রবন্তি) একসাথে/মিলিত হয়ে প্ৰবাহিত হয়, (তেভিঃ সর্বৈঃ) সেই সব (সংস্রাবৈঃ) জলপ্রবাহের সাথে (মে) নিজের (ধনম্) ধনকে (সম্) উত্তম রীতিতে (স্রাবয়ামসি) আমরা ব্যয় করবো/করি ৷॥৩॥
भावार्थ
যেরূপ পর্বতসমূহের উপর জলের প্রবাহ/স্রোত মিলিত হয়ে বেগবতী এবং উপকারিণী নদীসমূহ উৎপন্ন হয়, যা গ্রীষ্ম ঋতুতেও শুকিয়ে যায় না, সেরূপ আমরা সবাই মিলে/একসাথে বিজ্ঞান এবং উৎসাহপূর্বক তড়িৎ, অগ্নি, বায়ু, সূর্য, জল, পৃথিবী আদি পদার্থসমূহ দ্বারা উপকার প্রাপ্ত হয়ে অক্ষয় ধন বৃদ্ধি করবো এবং সেগুলো উত্তম কর্মসমূহে ব্যয় করবো ॥৩॥
भाषार्थ
(নদীনাম্) নদীর (যে) যে (উৎসাসঃ) উৎস (সংস্রবন্তি) প্রবাহিত হয় (সদম্) সদা (অক্ষিতাঃ) অক্ষীণভাবে/ক্ষীণ না হয়ে, (তভিঃ) সেই সব (সংস্রাবৈঃ) প্রবাহের দ্বারা (মে) আমার বাণিজ্যাধ্যক্ষের (ধনম্) সম্পত্তিকে (সংস্রাবয়ামসি) আমরা মিলে/একসাথে প্রবাহিত করি। উৎসাসঃ= নদীর উদ্গম স্থান অর্থাৎ স্রোত যেখান থেকে নদীর উদ্গম হয়।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal