अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 18/ मन्त्र 2
सूक्त - द्रविणोदाः
देवता - विनायकः
छन्दः - निचृज्जगती
सूक्तम् - अलक्ष्मीनाशन सूक्त
42
निरर॑णिं सवि॒ता सा॑विषक्प॒दोर्निर्हस्त॑यो॒र्वरु॑णो मि॒त्रो अ॑र्य॒मा। निर॒स्मभ्य॒मनु॑मती॒ ररा॑णा॒ प्रेमां दे॒वा अ॑साविषुः॒ सौभ॑गाय ॥
स्वर सहित पद पाठनि:। अर॑णिम् । स॒वि॒ता । सा॒वि॒ष॒क् । प॒दो: । नि: । हस्त॑यो: । वरु॑ण: । मि॒त्र: । अ॒र्य॒मा । नि: । अ॒स्मभ्य॑म् । अनु॑ऽमति: । ररा॑णा । प्र । इ॒माम् । दे॒वा: । अ॒सा॒वि॒षु॒: । सौभ॑गाय ॥
स्वर रहित मन्त्र
निररणिं सविता साविषक्पदोर्निर्हस्तयोर्वरुणो मित्रो अर्यमा। निरस्मभ्यमनुमती रराणा प्रेमां देवा असाविषुः सौभगाय ॥
स्वर रहित पद पाठनि:। अरणिम् । सविता । साविषक् । पदो: । नि: । हस्तयो: । वरुण: । मित्र: । अर्यमा । नि: । अस्मभ्यम् । अनुऽमति: । रराणा । प्र । इमाम् । देवा: । असाविषु: । सौभगाय ॥
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
राजा के लिये धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(सविता) [सबका चलानेहारा] सूर्य [सूर्यरूप तेजस्वी], (वरुणः) सबके चाहनेयोग्य जल [जलसमान शान्तस्वभाव], (मित्रः) चेष्टा देनेहारा वायु [वायु समान वेगवान् उपकारी], (अर्यमा) श्रेष्ठों का मान करनेहारा न्यायकारी राजा (अरणिम्) पीडा को (पदोः) दोनों पदों और (हस्तयोः) दोनों हाथों से (निः) निरन्तर (निः साविषत्) निकाल देवे। (रराणा) दानशीला (अनुमतिः) अनुकूल बुद्धि (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (निः=निः साविषत्) [पीडा को] निकाल देवे, (देवाः) उदार चित्तवाले महात्माओं ने (इमाम्) इस [अनुकूल बुद्धि] को (सौभगाय) बड़े ऐश्वर्य के लिये (प्र असाविषुः) भेजा है ॥२॥
भावार्थ
मन्त्रोक्त शुभ लक्षणोंवाला राजा और प्रजा परस्पर हितबुद्धि से और शुभचिन्तक महात्माओं के सहाय से क्लेशों का नाश करके सबका ऐश्वर्य बढ़ावें ॥२॥
टिप्पणी
टिप्पणी−सायणभाष्य में (अरणिम्) के स्थान में (अरणीम्) है और बंबई गवर्नमेन्ट के पुस्तक में लिखे] [साविषक्] के स्थान में सायणभाष्य में और अन्य दोनों पुस्तकों में (साविषत्) पद है, वही पाठ हमने रक्खा है। गवर्नमेन्ट पुस्तक में टिप्पणी है कि [साविषक्] शब्द शोधकर लिखा है, परन्तु यह अशुद्ध है, क्योंकि अथर्व० ६।१।३ में, ७।७७।७ में और ९।१५।४। में (सविता साविषत्) पाठ है, वही (सविता साविषत्) यहाँ भी शुद्ध है ॥ २−निर्। म० १। निश्चयेन। नितराम्। बहिर्भावे। अरणिम्। अर्त्तिसृधृ०। उ० २।१०२। ऋ हिंसने−अनि। आर्त्तिम्, पीडाम्। सविता। षूञ् प्रसवे प्रेरणे-तृच्। सर्वस्य प्रसविता=उत्पादकः। निरु० १०।१। सर्वप्रेरकः सूर्यः। निः+साविषत्। षूञ् प्रेरणे-लेट्। निःसुवतु, निःसारयतु। पदोः। पद्दन्नोमास्०। पा० ६।१।६३। इति पादशब्दस्य पद् आदेशः। पादयोः सकाशात्। हस्तयोः। हसिमृग्रिण्वामि०। उ० ३।८६। इति हस विकाशे-तन्। करयोः सकाशात्। वरुणः। १।३।३। वरणीयं जलम्। मित्रः। १।३।३। सर्वप्रेरको वायुः। अर्यमा। १।११।१। अर्यान् श्रेष्ठान् मिमीते मानयतीति। न्यायकारी राजा। अनुमतिः। अनु+मन ज्ञाने−क्तिन्। सम्मतिः। अनुकूला, सहायिका बुद्धिः। रराणा। रा दाने−कानच्। दानशीला। देवाः। पूज्याः, दातारः। प्र+असाविषुः। षूञ् प्रेरणे−लुङ्। प्रेरितवन्तः, दत्तवन्तः। सौभगाय। प्राणभृज्जातिवयोवचनोद्गात्रादिभ्योऽञ्। पा० ५।१।१२९। इति सुभग−भावे अञ्। ञ्नित्यादिर्नित्यम्। पा० ६।१।१९७। इति आद्युदात्तः। सुभगत्वाय, शोभनैश्वर्याय ॥
इंग्लिश (1)
Subject
Planning and Prosperity
Meaning
May Savita, cosmic creator’s natural inspiration and the parents in the home, Varuna, Mitra and Aryama, the teacher and our innate human sense of judgement and discrimination between truth and falsehood and between freedom and responsibility (Varuna), our friends and peer group and our sense of love and friendship with our rational sense of justice and reason (Mitra), and our passion for progress with our sense of purpose, direction and destination for life’s values (Aryama), may all these along with Anumati, creative wisdom, and the ‘Devas’, brilliant and generous divinities of nature and the wise and great people of the world, root out our sloth, negativity and adversity and inspire us with enthusiasm for the achievement of a dynamic peace and balanced prosperity. (This is our prayer as a prelude to planning and prosperity against adversity.)
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
टिप्पणी−सायणभाष्य में (अरणिम्) के स्थान में (अरणीम्) है और बंबई गवर्नमेन्ट के पुस्तक में लिखे] [साविषक्] के स्थान में सायणभाष्य में और अन्य दोनों पुस्तकों में (साविषत्) पद है, वही पाठ हमने रक्खा है। गवर्नमेन्ट पुस्तक में टिप्पणी है कि [साविषक्] शब्द शोधकर लिखा है, परन्तु यह अशुद्ध है, क्योंकि अथर्व० ६।१।३ में, ७।७७।७ में और ९।१५।४। में (सविता साविषत्) पाठ है, वही (सविता साविषत्) यहाँ भी शुद्ध है ॥ २−निर्। म० १। निश्चयेन। नितराम्। बहिर्भावे। अरणिम्। अर्त्तिसृधृ०। उ० २।१०२। ऋ हिंसने−अनि। आर्त्तिम्, पीडाम्। सविता। षूञ् प्रसवे प्रेरणे-तृच्। सर्वस्य प्रसविता=उत्पादकः। निरु० १०।१। सर्वप्रेरकः सूर्यः। निः+साविषत्। षूञ् प्रेरणे-लेट्। निःसुवतु, निःसारयतु। पदोः। पद्दन्नोमास्०। पा० ६।१।६३। इति पादशब्दस्य पद् आदेशः। पादयोः सकाशात्। हस्तयोः। हसिमृग्रिण्वामि०। उ० ३।८६। इति हस विकाशे-तन्। करयोः सकाशात्। वरुणः। १।३।३। वरणीयं जलम्। मित्रः। १।३।३। सर्वप्रेरको वायुः। अर्यमा। १।११।१। अर्यान् श्रेष्ठान् मिमीते मानयतीति। न्यायकारी राजा। अनुमतिः। अनु+मन ज्ञाने−क्तिन्। सम्मतिः। अनुकूला, सहायिका बुद्धिः। रराणा। रा दाने−कानच्। दानशीला। देवाः। पूज्याः, दातारः। प्र+असाविषुः। षूञ् प्रेरणे−लुङ्। प्रेरितवन्तः, दत्तवन्तः। सौभगाय। प्राणभृज्जातिवयोवचनोद्गात्रादिभ्योऽञ्। पा० ५।१।१२९। इति सुभग−भावे अञ्। ञ्नित्यादिर्नित्यम्। पा० ६।१।१९७। इति आद्युदात्तः। सुभगत्वाय, शोभनैश्वर्याय ॥
बंगाली (1)
पदार्थ
(সবিতা) সূর্য তুল্য তেজস্বী (বরণঃ) জলের তুল্য শান্ত স্বভাব (মিত্রঃ) বায়ূর তুল্য হিতকারী (অর্য্যমা) ন্যায়বান রাজা (অরণিম্) পীড়াকে (পদোঃ) উভয়পদ ও (হন্তয়োঃ) উভয় হস্ত দ্বারা (নিঃ) নিরন্তর (নিঃ সাবিষৎ) দূর করুন। (ররাণা) দানশীল (অনুমতিঃ) অনুকূল বুদ্ধি (অস্মভ্যম্) আমাদের জন্য (নিঃ সাবিষৎ) পীড়াকে দূর করুক (দেবাঃ) বিদ্বানেরা (ইমাং) এই অনূকূল বুদ্ধিকে (সৌভগায়) ঐশ্বর্যের জন্য (প্র অসাবিষু) প্রদান করেন।।
भावार्थ
সূর্য তুল্য তেজস্বী, জল তুল্য শান্ত স্বভাব, বায়ু তুল্য হিতকারী ও ন্যায়বান রাজা বিঘ্ন ক্লেশ পীড়াকে উভয় পদ ও হস্ত দ্বারা বিদূরিত করুন। আমাদের দানশীলা অনুকূল বুদ্ধি আমাদের দুঃখ ক্লেশ পীড়াকে দূর করুক! বিদ্বানেরা এই অনুকূল বুদ্ধিকে আমাদের ঐশ্বর্য প্রাপ্তির জন্য প্রদান করেন।।
मन्त्र (बांग्ला)
নিররণিং সবিতা সাবিষৎ পদোণির্হস্তয়োবরুণো মিত্রো অর্রমা। নিরস্মভ্যমনুমতী ররাণা প্রেমাং দেবা অসাবিধুঃ সৌভগায়।।
ऋषि | देवता | छन्द
দ্রবিণোদাঃ। সবিত্রাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। নিচূজ্জগতী
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