अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 9
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ता
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - मूत्र मोचन सूक्त
184
यथे॑षु॒का प॒राप॑त॒दव॑सृ॒ष्टाधि॒ धन्व॑नः। ए॒वा ते॒ मूत्रं॑ मुच्यतां बहि॒र्बालिति॑ सर्व॒कम् ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॒ । इ॒षु॒का । प॒रा॒ऽअप॑तत् । अव॑ऽसृष्टा । अधि॑ । धन्व॑न: ।ए॒व । ते॒ । मूत्र॑म् । मु॒च्य॒ता॒म् । ब॒हि: । बाल् । इति॑ । स॒र्व॒कम् ॥३.९॥
स्वर रहित मन्त्र
यथेषुका परापतदवसृष्टाधि धन्वनः। एवा ते मूत्रं मुच्यतां बहिर्बालिति सर्वकम् ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । इषुका । पराऽअपतत् । अवऽसृष्टा । अधि । धन्वन: ।एव । ते । मूत्रम् । मुच्यताम् । बहि: । बाल् । इति । सर्वकम् ॥३.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शान्ति के लिये उपदेश।
पदार्थ
(यथा) जैसे (धन्वनः अधि) धनुष् से (अवसृष्टा) छुटा हुआ (इषुका) बाण (परा-अपतत्) शीघ्र चला गया हो। (एव) वैसे ही (ते) तेरा (मूत्रम्) मूत्ररूप (बाल्) वैरी (बहिः) बाहिर (मुच्यताम्) निकाल दिया जावे (इति सर्वकम्) यह बस है ॥९॥
भावार्थ
सरल है, ऊपर के, मन्त्र देखो ॥९॥
टिप्पणी
९−इषुका। इषुरीषतेर्गतिकर्मणो वधकर्मणो वा। निरु० ९।१८। इति ईष गतौ वधे−उ प्रत्ययः। स्वार्थे-कन्, टाप्। इषुः, वाणः। परा-अपतत्। पत गतौ−लङ्। शीघ्रं दूरे अगच्छत्। अवसृष्टा। सृज−विसर्गे-क्त। विमुक्ता। अधि। पञ्चम्यर्थानुवादी। धन्वनः। कनिन् युवृषितक्षिराजिधन्विद्युप्रतिदिवः। उ० १।१५६। इति धन्व गतौ−कनिन्। धनुषः सकाशात्, चापात्। शेषं पूर्ववत् मं० ६ ॥
विषय
मूत्रावसर्जन
पदार्थ
१. (यथा) = जिस प्रकार (अधिधन्वन:) = धनुष पर से (अवसृष्टा) = छोड़ा हुआ (इषुका) = बाण (परापतत्) = सुदूर जा गिरता है, (एव) = इसीप्रकार बन्धनों के हट जाने पर [अवसृष्टा] (ते मूत्रम्) = तेरा यह विषेला मूत्र-द्रव (बहि: मुच्यताम्) = बाहर छूट जाए और (इति) = इसप्रकार (सर्वकम्) = तेरे सारे अङ्ग (बाल) = सबल हो जाएँ। २. मूत्र-द्रव के ठीक प्रकार से बाहर निकल जाने पर ही स्वास्थ्य का बहुत कुछ निर्भर करता है, अतः वैद्य इसकी व्यवस्था करके रुग्ण पुरुष को नीरोग बनाने के लिए यनशील होता है।
भावार्थ
मुत्र-प्रवाह के ठीक होने से शरीर नीरोग रहता है।
विशेष
इन मन्त्रों में कहा है कि-मूत्र-निरोध का निवारण किया जाए [६]। आवश्यक होने पर मेहन-प्रभेद किया जाए [७]। मूत्राशय के द्वार को खोला जाए [८]। मूत्रावसर्जन होकर शरीर नीरोग हो [९]। इस स्वास्थ्य के लिए जल का प्रयोग भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है -
भाषार्थ
(यथा) जैसे (धन्वन: अधि) धनुर्धारी से (अवसृष्टा) छोड़ी गई (इषुका) इषु (परापतत्) परे जा गिरती है, (एवा एवम्) इस प्रकार ( ते मूत्रम्) तेरा मूत्र (मुच्यताम्) विमुक्त हो जाय, प्रस्रवित हो जाय, (बहिः) मूत्राशय से बाहर हो जाय, (बालिति सर्वकम्), अर्थ पूर्ववत्।
विषय
शर और शलाका का वर्णन ( वस्तिचिकित्सा ) ।
भावार्थ
( धन्वनः अधि ) धनुष से ( अवसृष्टा ) छूटा हुआ ( इषुका ) बाण ( यथा ) जिस प्रकार ( परा पतत् ) दूर जा पड़ता है ( एवा० ) इसी प्रकार तेरा मूत्र भी सारा बस्ति भाग से छूट कर ‘बाल्’ शब्द सहित बाहर आ जाय ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः पर्जन्यमित्रादयो बहवो देवताः। १-५ पथ्यापंक्ति, ६-९ अनुष्टुभः। नवर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Health of Body and Mind
Meaning
Just as the arrow shot and released from the bow flies forth far, so let the urine flow free all at once.
Translation
As a small arrow let loose from and archer’s bow flies forth, so may your urine be released. May all of it come out with a splash.
Translation
As the arrow flies away when discharged out from the bow, so let the urine dropped in your pipe flow out freely. This is all that is required for you. N.B. (In this Hymn dilatation with tubular instrument has been described in the verses 6-9 Shalaka is also Shara which means bar of metal.)
Translation
O patient suffering from a urinary disease, just as the arrow flies away far when loosened from the archer's bow, so may that urine of thine come out completely, free from check.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−इषुका। इषुरीषतेर्गतिकर्मणो वधकर्मणो वा। निरु० ९।१८। इति ईष गतौ वधे−उ प्रत्ययः। स्वार्थे-कन्, टाप्। इषुः, वाणः। परा-अपतत्। पत गतौ−लङ्। शीघ्रं दूरे अगच्छत्। अवसृष्टा। सृज−विसर्गे-क्त। विमुक्ता। अधि। पञ्चम्यर्थानुवादी। धन्वनः। कनिन् युवृषितक्षिराजिधन्विद्युप्रतिदिवः। उ० १।१५६। इति धन्व गतौ−कनिन्। धनुषः सकाशात्, चापात्। शेषं पूर्ववत् मं० ६ ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(য়থা) যেমন (ধন্বনঃ অধি) ধনুষ হইতে (অবসৃষ্টা) নিক্ষিপ্ত (ইষুকা) বাণ (পরাপতৎ) শীঘ্র চলিয়া যায় (এব) তেমন (তে) তোমার (মূত্রম্) মূত্র তুল্য (বাল্) শত্রু (বহিঃ) বাহিরে (মুচ্যতাম্) দূরীভূত হউক(ইতি সর্বকম্) ইহাই সব।।
‘ইষুকা’ বাণঃ। ইষুরীলতে গতি কর্মণো বধ কর্মণো বা। নিরুক্ত ৯.১৮। ইষ গতৌ বধে উ।
भावार्थ
ধনুষ হইতে নিক্ষিপ্ত বাণ যেমন বেগে চলিয়া যায় তোমার মূত্র তুল্য শত্রু তেমনই বাহিরে দূরীভূত হউক।।
मन्त्र (बांग्ला)
য়থেষুকা পরাপতদবসৃষ্টাঽধিন্বনঃ৷ এবা তে মূত্রং মুচ্যতাং বহির্বালিতি সর্বকম্।।
ऋषि | देवता | छन्द
অর্থবা। পর্জন্যাদয়ো মন্ত্রোক্তাঃ। অনুষ্টুপ্
मन्त्र विषय
(শান্তিকরণম্) শান্তির জন্য উপদেশ।
भाषार्थ
(যথা) যেভাবে (ধন্বনঃ অধি) ধনুক থেকে (অবসৃষ্টা) নিক্ষেপিত (ইষুকা) বাণ (পরা-অপতৎ) শীঘ্র চলে যায়। (এব) সেভাবেই (তে) তোমার (মূত্রম্) মূত্ররূপ (বাল্) বৈরী/শত্রুকেও যেন (বহিঃ) বাইরে (মুচ্যতাম্) নিষ্কাশিত/বহিষ্কার করা হয়/বের করে দেওয়া হয় (ইতি সর্বকম্) এটাই আকাঙ্ক্ষা॥৯॥
भावार्थ
যেভাবে ধনুক থেকে নিক্ষেপিত বাণ শীঘ্র চলে যায় সেভাবেই তোমার মূত্ররূপ শত্রুকে যেন বহিষ্কার করা হয়॥৯॥
भाषार्थ
(যথা) যেমন (ধন্বনঃ অধি) ধনুর্ধারী দ্বারা (অবসৃষ্টা) নিক্ষেপিত (ইষুকা) ইষু/বাণ (পরাপতৎ) দূরে গিয়ে পড়ে, (এবা=এবম্) এইভাবে (তে মূত্রম্) তোমার মূত্র (মুচ্যতাম্) বিমুক্ত হোক/হয়ে যাক, প্রস্রবিত হোক/হয়ে যাক, (বহিঃ) মূত্রাশয় থেকে বাহির হোক/হয়ে যাক, (বালিতি সর্বকম্), অর্থ পূর্ববৎ।
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