अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
ऋषिः - कुत्सः
देवता - आत्मा
छन्दः - उपरिष्टाद्विराड्बृहती
सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
785
यो भू॒तं च॒ भव्यं॑ च॒ सर्वं॒ यश्चा॑धि॒तिष्ठ॑ति। स्वर्यस्य॑ च॒ केव॑लं॒ तस्मै॑ ज्ये॒ष्ठाय॒ ब्रह्म॑णे॒ नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । भू॒तम् । च॒ । भव्य॑म् । च॒ । सर्व॑म् । य: । च॒ । अ॒धि॒ऽतिष्ठ॑ति । स्व᳡: । यस्य॑ । च॒ । केव॑लम् । तस्मै॑ । ज्ये॒ष्ठाय॑ । ब्रह्म॑णे । नम॑: ॥८.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यो भूतं च भव्यं च सर्वं यश्चाधितिष्ठति। स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । भूतम् । च । भव्यम् । च । सर्वम् । य: । च । अधिऽतिष्ठति । स्व: । यस्य । च । केवलम् । तस्मै । ज्येष्ठाय । ब्रह्मणे । नम: ॥८.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (7)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो [परमेश्वर] (भूतम्) भूतकाल (च च) और (भव्यम्) भविष्यत् काल का (च) और (यः) जो (सर्वम्) सब [जगत्] का (अधितिष्ठति) अधिष्ठाता है (च) और (स्वः) सुख (यस्य) जिसका (केवलम्) केवल स्वरूप है, (तस्मै) उस (ज्येष्ठाय) ज्येष्ठ [सब से बड़े वा सब से श्रेष्ठ] (ब्रह्मणे) ब्रह्मा [महान् परमेश्वर] को (नमः) नमस्कार है ॥१॥
भावार्थ
तीनों कालों और सब जगत् के स्वामी सुखस्वरूप परमात्मा को हम सबका नमस्कार है ॥१॥ यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ ४ में व्याख्यात है ॥
टिप्पणी
१−(यः) परमेश्वरः (भूतम्) अतीतकालम् (च च) समुच्चये (भव्यम्) अनागतकालम् (सर्वम्) समस्तं जगत् (यः) (च) (अधितिष्ठति) शास्ति (स्वः) सुखम् (यस्य) ईश्वरस्य (च) (केवलम्) सेवनीयं स्वरूपम् (तस्मै) पूर्वोक्ताय (ज्येष्ठाय) अ० १०।७।१७। वृद्धतमाय। प्रशस्यतमाय (ब्रह्मणे) अ० १०।७।३२। महते प्रजापतये परमेश्वराय (नमः) नमस्कारः ॥
विषय
ईश्वरप्रार्थनाविषय
व्याख्यान
(यो भूतम्) जो परमेश्वर एक भूतकाल जो व्यतीत हो गया है, (च) अनेक चकारों से दूसरा जो वर्तमान है, (भव्यं च) और तीसरा भविष्यत् जो होने वाला है, इन तीनों कालों के बीच में जो कुछ होता है, उन सब व्यवहारों को वह यथावत् जानता है, (सर्वं यश्चाधिष्ठति) तथा जो सब जगत् को अपने विज्ञान से ही जानता, रचता, पालन, लय करता और संसार के सब पदार्थों का अधिष्ठाता अर्थात् स्वामी है, (स्वर्यस्य च केवलम्) जिसका सुख ही केवल स्वरूप है, जो कि मोक्ष और व्यवहार सुख का भी देने वाला है, (तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः) ज्येष्ठ अर्थात् सबसे बड़ा सब सामर्थ्य से युक्त ब्रह्म जो परमात्मा है, उसको अत्यन्त प्रेम से हमारा नमस्कार हो। जो कि सब कालों के ऊपर विराजमान है, जिसको लेशमात्र भी दुःख नहीं होता, उस आनन्दघन परमेश्वर को हमारा नमस्कार प्राप्त हो॥१॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( यः ) = जो परमेश्वर ( भूतम् च भव्यम् च ) = अतीतकाल, भविष्य काल और वर्त्तमान काल इन तीनों कालों और इनमें होनेवाले सब पदार्थों को यथावत् जानता है ( सर्वं यः च अधितिष्ठति ) = जब जगत् का जो अपने विज्ञान से उत्पन्न पालन और प्रलय कर्ता, सबका अधिष्ठाता अर्थात् स्वामी है ( स्वः यस्य च केवलम् ) = जिसका सुख ही स्वरूप है। ( तस्मै ज्येष्ठाय ) = उस सबसे उत्कृष्ट, सबसे बड़े ( ब्रह्मणे नमः ) = परमात्मा को हमारा नमस्कार हो ।
भावार्थ
भावार्थ = हे विज्ञानानन्द स्वरूप परमात्मन्! आप तीनों कालों और इनमें होनेवाले सब पदार्थों के ज्ञाता, अधिष्ठाता, उत्पादक, पालक, प्रलयकर्ता, सुखस्वरूप और सुखदायक हो, ऐसे जगद्वन्द्य जगत् पिता आप परमेश्वर को प्रेम से हमारा बारम्बार प्रणाम हो ।
विषय
केवलं स्व:
पदार्थ
१. (यः) = जो (भूतं च भव्यं च) = भूत में हो चुके और भविष्यत् में होनेवाले (यः च सर्वम) = और जो वर्तमान में विद्यमान सब लोकों का (अधितिष्ठति) = अधिष्ठाता है। (यस्य च स्वः) = और जिसका प्रकाश (केवलम्) = आनन्द में संचरण करानेवाला है, (तस्मै ज्येष्ठाय) = उस सर्वश्रेष्ठ-सर्वमहान् (ब्रह्मणे नमः) = ब्रह्म के लिए मैं नमस्कार करता हूँ।
भावार्थ
प्रभू कालत्रयी में होनेवाले सब लोक लोकान्तरों के अधिष्ठाता हैं। प्रभु का प्रकाश हमें आनन्द में विचरण कराता है। हम उस ज्येष्ठ ब्रह्म के लिए नमस्कार करते हैं।
भाषार्थ
(यः) जो (भूतम् च) भूतकाल के (भव्यम् च) भविष्यत् काल के जगत् का (यः च) और जो (सर्वम्) सब का (अधि तिष्ठति) अधिष्ठाता है। (यस्य, च, केवलम्, स्वः) और जो केवल सुखस्वरूप है [जिस में दुःख का लेश भी नहीं] (तस्मै) उस (ज्येष्ठाय ब्रह्मणे) सबसे बड़े तथा सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म के लिये (नमः) नमस्कार हो।
Bhajan
आज का वैदिक भजन 🙏 0580
ओ३म् यो भू॒तं च॒ भव्यं॑ च॒ सर्वं॒ यश्चा॑धि॒तिष्ठ॑ति।
स्वर्यस्य॑ च॒ केव॑लं॒ तस्मै॑ ज्ये॒ष्ठाय॒ ब्रह्म॑णे॒ नमः॑ ॥
अथर्ववेद 10/8/1
यस्य॒ भूमिः॑ प्र॒मान्तरि॑क्षमु॒तोदर॑म्।
दिवं॒ यश्च॒क्रे मू॒र्धानं॒ तस्मै॑ ज्ये॒ष्ठाय॒ ब्रह्म॑णे॒ नमः॑ ॥
अथर्ववेद 10/7/32
भूत भविष्यत् वर्तमान का
जो प्रभु है सबका स्वामी
गगन व्योम में - वही हृदय में
सबका है अन्तर्यामी
भूत भविष्यत् वर्तमान का
निर्विकार आनन्द कन्द है
जो कैवल्यरूप सुखधाम
उस महान् जगदीश्वर को है
अर्पित मेरा नम्र प्रणाम
भूत भविष्यत् वर्तमान का
कोटि कोटि योजन युग फैली
पृथिवी जिसके चरण समान
मध्य भाग में अन्तरिक्ष को
रखता है जो उदर समान
भूत भविष्यत् वर्तमान का
शीर्ष तुल्य जिसके हैं शोभित
ये नक्षत्र लोक अभिराम
उस महान् जगदीश्वर को है
अर्पित मेरा नम्र प्रणाम
भूत भविष्यत् वर्तमान का
जो प्रभु है सबका स्वामी
रचनाकार :- पूज्य पण्डित सत्यकाम विद्यालंकार जी "परमहंस"
साभार पुस्तक :- वेद गीताञ्जलि पृष्ठ 56-57-58
प्रकाशक :- गोविन्दराम हासानन्द दिल्ली
स्वर :- श्रीमति अदिति जी साहनी(शेठ) व आदरणीय महेन्द्र जी कपूर
🕉👏ईश भक्ति भजन
भगवान् ग्रुप द्वारा 🙏🌹
विषय
ज्येष्ठ ब्रह्म का वर्णन।
भावार्थ
(यः) जो परमेश्वर (भूतं च) भूतकाल और (भव्यं च) भविष्यत् काल और (यः च सर्वम्) जो समस्त जगत् पर (अधितिष्ठति) अधिष्ठाता होकर वश करता है और (यस्य च) जिसका (केवलम्) केवल, अपना स्वरूप (स्वः) सुखमय, आनन्द और प्रकाशमय स्वरूप है (तस्मै) उस (ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः) सर्वश्रेष्ठ परब्रह्म के लिये नमस्कार है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स ऋषिः। आत्मा देवता। १ उपरिष्टाद् बृहती, २ बृहतीगर्भा अनुष्टुप, ५ भुरिग् अनुष्टुप्, ७ पराबृहती, १० अनुष्टुब् गर्भा बृहती, ११ जगती, १२ पुरोबृहती त्रिष्टुब् गर्भा आर्षी पंक्तिः, १५ भुरिग् बृहती, २१, २३, २५, २९, ६, १४, १९, ३१-३३, ३७, ३८, ४१, ४३ अनुष्टुभः, २२ पुरोष्णिक्, २६ द्व्युष्णिग्गर्भा अनुष्टुब्, ५७ भुरिग् बृहती, ३० भुरिक्, ३९ बृहतीगर्भा त्रिष्टुप, ४२ विराड् गायत्री, ३, ४, ८, ९, १३, १६, १८, २०, २४, २८, २९, ३४, ३५, ३६, ४०, ४४ त्रिष्टुभः। चतुश्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Jyeshtha Brahma
Meaning
To the One Supreme Absolute Brahma who ordains, rules and presides over all that is,has been, and all that shall be, whose nature and being is pure light and absolute joy, homage of worship and surrender.
Subject
Adhyātmam
Translation
Let our homage be to him, the Lord supreme, who superintends all that ever was, and all that ever will be, and all (that now exists); His only is heavenly bliss.
Translation
Our consecrated reverence go to the Supreme Providence who ordains whatever has been and whatever shall be, who ordains all the Universe and whose nature is only light.
Translation
Worship to loftiest God, Lord of the Past and Future. To Him Who rules over the universe, and is the embodiment of joy.
संस्कृत (2)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(यः) परमेश्वरः (भूतम्) अतीतकालम् (च च) समुच्चये (भव्यम्) अनागतकालम् (सर्वम्) समस्तं जगत् (यः) (च) (अधितिष्ठति) शास्ति (स्वः) सुखम् (यस्य) ईश्वरस्य (च) (केवलम्) सेवनीयं स्वरूपम् (तस्मै) पूर्वोक्ताय (ज्येष्ठाय) अ० १०।७।१७। वृद्धतमाय। प्रशस्यतमाय (ब्रह्मणे) अ० १०।७।३२। महते प्रजापतये परमेश्वराय (नमः) नमस्कारः ॥
विषयः
ईश्वरप्रार्थनाविषय:
व्याख्यानम्
(यो भूतं भव्यं च) यो भूतभविष्यद्वर्तमानान् कालान् (सर्वं यश्चाधितिष्ठति) सर्वं जगच्चाधितिष्ठति, सर्वाधिष्ठाता सन् कालादूर्ध्वं विराजमानोऽस्ति। (स्वर्यस्य च केवलम्) यस्य च केवलं निर्विकारं स्वः सुखस्वरूपमस्ति, यस्मिन् दुःखं लेशमात्रमपि नास्ति, यदानन्दघनं ब्रह्मास्ति, (तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः) तस्मै ज्येष्ठाय सर्वोत्कृष्टाय ब्रह्मणे महतेऽत्यन्तं नमोऽस्तु नः॥१॥
मराठी (1)
व्याख्यान
भाषार्थ : (यो भूतं च.) एक भूतकाळ जो व्यतीत झालेला आहे (च), अनेक चकारांनी दुसरा वर्तमान आहे (भव्यंच) व तिसरा भविष्यकाळ आहे, या तिन्ही काळात जे घडते त्या सर्व व्यवहारांना तो परमेश्वर जाणतो (सर्वं यश्चाधितिष्ठति) सर्व जगाला आपल्या विज्ञानाने जाणतो. रचना, पालन व लय करतो. जगातील सर्व पदार्थांचा अधिष्ठाता आहे. अर्थात, स्वामी आहे. (स्वर्यस्य केवलं) ज्याचे स्वरूपच केवळ सुखमय आहे, जो मोक्ष व व्यवहार सुख देणारा आहे. (तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नम:) ज्येष्ठ अर्थात सर्वांत मोठा व सर्व सामर्थ्याने युक्त असा ब्रह्म परमात्मा त्याला आम्ही प्रेमपूर्वक नमस्कार करतो, जो सर्व काळात विराजमान असतो. तो किंचितही दु:खी नसतो. त्या आनंदघन परमेश्वराला आमचा नमस्कार असो. ॥१॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal