अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 23
सूक्त - कुत्सः
देवता - आत्मा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
292
स॑ना॒तन॑मेनमाहुरु॒ताद्य स्या॒त्पुन॑र्णवः। अ॑होरा॒त्रे प्र जा॑येते अ॒न्यो अ॒न्यस्य॑ रू॒पयोः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस॒ना॒तन॑म् । ए॒न॒म् । आ॒हु॒: । उ॒त । अ॒द्य । स्या॒त् । पुन॑:ऽनव: । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । प्र । जा॒ये॒ते॒ इति॑ । अ॒न्य: । अ॒न्यस्य॑ । रू॒पयो॑: ॥८.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
सनातनमेनमाहुरुताद्य स्यात्पुनर्णवः। अहोरात्रे प्र जायेते अन्यो अन्यस्य रूपयोः ॥
स्वर रहित पद पाठसनातनम् । एनम् । आहु: । उत । अद्य । स्यात् । पुन:ऽनव: । अहोरात्रे इति । प्र । जायेते इति । अन्य: । अन्यस्य । रूपयो: ॥८.२३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
पदार्थ
(एनम्) इस [सर्वव्यापक] को (सनातनम्) सनातन [नित्य स्थायी परमात्मा] (आहुः) वे [विद्वान्] कहते हैं, (उत) और वह (अद्य) आज [प्रतिदिन] (पुनर्णवः) नित्य नवा (स्यात्) होता जावे। (अहोरात्रे) दिन और रात्रि दोनों (अन्यो अन्यस्य) एक दूसरे के (रूपयोः) दो रूपों में से (प्र जायेते) उत्पन्न होते हैं ॥२३॥
भावार्थ
नित्यस्थायी परमात्मा के गुण जिज्ञासुओं को नित्य नवीन विदित होते जाते हैं, जैसे दिन रात्रि से और रात्रि दिन से नित्य नवीन उत्पन्न होते हैं ॥२३॥
टिप्पणी
२३−(सनातनम्) म० २२। सदा वर्तमानम् (एनम्) सर्वव्यापकं परमात्मानम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (उत) अपि (अद्य) वर्तमाने दिने। प्रतिदिनम् (स्यात्) (पुनर्णवः) वारं वारं नवीनः (अहोरात्रे) रात्रिदिने (प्र जायेते) उत्पद्येते (अन्योऽन्यस्य) कर्मव्यतिहारे सर्वनाम्नो द्वे वाच्ये समासवच्च बहुलम्। इति द्वित्त्वम्। असमासवद्भावे पूर्वपदस्थस्य सुपः सुर्वक्तव्यः। वा० पा० ८।१।१२। इति पूर्वपदात् सुपः सुः। परस्परस्य (रूपयोः) स्वरूपयोः सकाशात् ॥
प्रवचन
शब्दार्थ - (एनं) इस देव को (सनातनं) सनातन, अनादिकालीन (आहुः) कहते हैं, (उत) और तो भी यह (अद्य) आज, प्रतिदिन (पुनः नवः) फिर फिर नया (स्यात्) होता है। देखो, (अन्यः) एक (अन्यस्य) दूसरे के (रूपयोः) रूपों में, समान रूपों में ही (अहोरात्रे) ये दिन रात (प्रजायेते) सदा पैदा होते रहते हैं।
शृङ्गी मुनि कृष्णदत्त जी महाराज
बेटा! रात्रि और दिवस दोनों एक सूत्र में परणित हो जाते हैं, वह रात्रि और दिवस मानो देखो, ज्ञान और अज्ञान के रूप में रात्रि दिवस होते हैं, मानो देखो, यह तो सूर्य की आभा में रात्रि आ गई है, दिवस आ गया है, सम्वतसर बन गएं हैं, मानो देखो, इसी से अहोरात्र बन गएं हैं, परन्तु जब इसी का दूसरा रूप लिया जाता है, क्या मानो देखो, अन्धकार रात्रि है, प्रकाश दिवस है, सूर्य का मिलन होना ही दिवस कहलाता है, परमाणुओं से दिवस वही है, सूर्य का मिलन होता है, मेरे प्यारे! रात्रि वही जहाँ मानो देखो, चन्द्रमा का दिवस ले करके और रात्रि को अपने में धारण करके वह प्रकाशमयी बन जाता है। तो मानो देखो, रात्रि भी प्रकाश है, और यह दिवस भी प्रकाश है, दोनो ही प्रकाश रूप में बेटा! योगी दोनों को एक ही सूत्र में पिरो देता है, मेरे प्यारे! देखो, जब योगेश्वर दोनों को एक रूप में पिरो देता है।
मुनिवरों! यह तो तुमने जान ही लिया होगा कि एक चतुर्युगी में तैतालिस लाख बीस सहस्त्र (४३२००००वर्ष) वर्ष होते हैं। इक्हत्तर (७१) चतुर्युगियों का एक मन्वन्तर होता है। ऐसे चौदह (१४) मन्वन्तरों का सृष्टिकाल या ब्रह्म दिन होता है। तो चौदह मन्वन्तरों के पश्चात् एक प्रलयकाल हो जाता है। इस प्रलयकाल को ब्रह्म की रत्रि कहते है। एक सृष्टिकाल और एक प्रलयकाल को मिलाकर ब्रह्म का अहोरात्र कहलाता है। अर्थात् दो सहस्त्र चतुर्युगियों का ब्रह्मा का अहोरात्र बनता है। मुनिवरों! देखो, ऐसे ऐसे ३६० अहोरात्र का, ब्रह्म का एक वर्ष हो जाता है। ऐसे ऐसे ब्रह्मा के सौ वर्ष व्यतीत होते है, तो ब्रह्म की शतायु हो जाती है।
इंग्लिश (2)
Subject
Jyeshtha Brahma
Meaning
They say this Brahma is Sanatana, Eternal, beyond time and age, and yet it arises ever anew in time and presence, as the day and night arise anew and follow each other in relation to the form and time of the occasion.
Word Meaning
(सनातनम्) Forever (एनम्) This (आहुः) is called (उत) and (अद्य) now (स्यात्) may (पुनर्णवः) renew (अहोरात्रे) day and night (प्रजायेते) give birth (अन्य: अन्यस्य) to each other (रूपयोः) [just] in two different forms ॥
Mantra Meaning
This is called Sanatan, This may renew itself now.
Day and night give birth to each other, you know it how.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२३−(सनातनम्) म० २२। सदा वर्तमानम् (एनम्) सर्वव्यापकं परमात्मानम् (आहुः) कथयन्ति विद्वांसः (उत) अपि (अद्य) वर्तमाने दिने। प्रतिदिनम् (स्यात्) (पुनर्णवः) वारं वारं नवीनः (अहोरात्रे) रात्रिदिने (प्र जायेते) उत्पद्येते (अन्योऽन्यस्य) कर्मव्यतिहारे सर्वनाम्नो द्वे वाच्ये समासवच्च बहुलम्। इति द्वित्त्वम्। असमासवद्भावे पूर्वपदस्थस्य सुपः सुर्वक्तव्यः। वा० पा० ८।१।१२। इति पूर्वपदात् सुपः सुः। परस्परस्य (रूपयोः) स्वरूपयोः सकाशात् ॥
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