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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अथर्वा देवता - रुद्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रुद्र सूक्त
    84

    नम॑स्तेऽस्त्वाय॒ते नमो॑ अस्तु पराय॒ते। नम॑स्ते रुद्र॒ तिष्ठ॑त॒ आसी॑नायो॒त ते॒ नमः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । ते॒ । अ॒स्तु॒ । आ॒ऽय॒ते । नम॑: । अ॒स्तु॒ । प॒रा॒ऽय॒ते । नम॑: । ते॒ । रु॒द्र॒ । तिष्ठ॑ते । आसी॑नाय । उ॒त । ते॒ । नम॑: ॥२.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्तेऽस्त्वायते नमो अस्तु परायते। नमस्ते रुद्र तिष्ठत आसीनायोत ते नमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । ते । अस्तु । आऽयते । नम: । अस्तु । पराऽयते । नम: । ते । रुद्र । तिष्ठते । आसीनाय । उत । ते । नम: ॥२.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (आयते) आते हुए [पुरुष] के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (अस्तु) होवे, (परायते) दूर जाते हुए के हित के लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे। (रुद्र) हे रुद्र ! [दुःखनाशक] (तिष्ठते) खड़े होते हुए के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार, (उत) और (आसीनाय) बैठे हुए के हित के लिये (ते) तुझे (नमः) नमस्कार है ॥१५॥

    भावार्थ

    मनुष्य आते, जाते, उठते, बैठते परमेश्वर का स्मरण करके पुरुषार्थ करे ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(नमः) (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (आयते) आगच्छतः पुरुषस्य हिताय (परायते) दूरं गच्छते (रुद्र) म० ३। हे दुःखनाशक (तिष्ठते) उत्तिष्ठतः पुरुषस्य हिताय (आसीनाय) उपविष्टस्य हिताय (उत) अपि च। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    'भवाय शर्वाय नमः

    पदार्थ

    १. हे (रुद्र) = दु:खों के द्रावक प्रभो ! (आयते ते नमः अस्तु) = हमारे अभिमुख आते हुए आपके लिए नमस्कार हो, (परायते नमः अस्तु) = दूर जाते हुए भी आपके लिए नमस्कार हो। (तिष्ठते ते नमः)  खड़े होते हुए आपके लिए नमस्कार हो, (उत) = और आसीनाय (ते नम:) = बैठे हुए आपके लिए नमस्कार हो। निराकार प्रभु में इन आने-जाने व उठने की क्रियाओं का सम्भव नहीं है, परन्तु पुरुषरूप में प्रभु का ध्यान करता हुआ उपासक प्रभु को इन रूपों में देखता है। २. (सायं नमः) = सायं नमस्कार हो, (प्रातः नमः) = प्रात:काल नमस्कार हो, (रात्र्या नमः) = रात्रि के समय नमस्कार हो, (दिवा नम:) = दिन के समय नमस्कार हो। (भवाय च शर्वाय च उभाभ्याम्) = सृष्टि के उत्पादक व संहारक दोनों रूपोवाले प्रभु के लिए मैं नम: अकरम् नमस्कार करता हूँ।

    भावार्थ

    हम आते-जाते, उठते-बैठते, प्रभु के लिए नमस्कार करें। प्रात: व सायं तथा दिन में व रात में प्रभु को उत्पादक व प्रलयकर्ता के रूप में सोचते हुए नतमस्तक हों।

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    भाषार्थ

    (रुद्र) हे रुद्र ! (आयते) समाधि अवस्था में आते हुए, दर्शन देते हुए (ते) तुझे (नमः अस्तु) नमस्कार हो, (परायते) समाधि से उत्थान काल में परे जाते हुए, अदृष्ट होते हुए (नमः अस्तु) नमस्कार हो। समाधि काल में (तिष्ठते) कुछ काल तक स्थिर रूप में दर्शन देते हुए (ते नमः) तेरे प्रति नमस्कार हो, (उत) तथा (आसीनाय) समाधि काल में चिरकाल तक मानो आसन लगा कर उपविष्ट हुए (ते) तेरे प्रति (नमः) नमस्कार हो।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में परमेश्वर के आने, जाने, स्थिर होने, तथा उपविष्ट होने का वर्णन कविता मिश्रित है]।

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    विषय

    रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।

    भावार्थ

    (आयते ते नमः अस्तु) हमारी ओर आते हुए, साक्षात् होते हुए तुझको नमस्कार है। (परायते नमः अस्तु) परे जाते हुए, हम से बिछड़ते हुए तुझे नमस्कार है। हे रुद्र ! (तिष्ठते ते नमः) खड़े हुए तुझको नमस्कार है। (आसीनाय उत ते नमः) और बैठे हुए तुझे नमस्कार है। ईश्वर के नमस्कार के साथ ही साथ पूजनीय विद्वान् गुरु आचार्य माता पिता और राजा आदि को भी इसी प्रकार नमस्कार करना चाहिये। जब आयें तब, जब जावें तब, बैठे हों या खड़े हों तब भी पूजनीयों को नमस्कार करना चाहिये यही वेद ने शिक्षा दी है।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘नमस्ते प्राण तिष्ठत’ इति अथर्व० ११। ४। ७॥ पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rudra

    Meaning

    Salutations to you, Rudra, as you come and emerge into consciousness, salutations to you as you go from consciousness, salutations to you as you stay by as long as you do, and salutations to you as you abide in the consciousness in steady presence.

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    Translation

    Homage be to thee coming, homage be (to thee) going away; homage to thee, O Rudra, Standing; to thee sitting also (be) homage.

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    Translation

    We the scientist praise them working out their function better and carrying out it there. We describe their working when they are at start and when they are at rest.

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    Translation

    O King, the chastiser of the wicked, be homage, unto thee approaching, and departing hence! Homage to thee when standing still, to thee when seated and at rest!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(नमः) (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (आयते) आगच्छतः पुरुषस्य हिताय (परायते) दूरं गच्छते (रुद्र) म० ३। हे दुःखनाशक (तिष्ठते) उत्तिष्ठतः पुरुषस्य हिताय (आसीनाय) उपविष्टस्य हिताय (उत) अपि च। अन्यद् गतम् ॥

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