अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 9
ऋषिः - अथर्वा
देवता - रुद्रः
छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - रुद्र सूक्त
103
च॒तुर्नमो॑ अष्ट॒कृत्वो॑ भ॒वाय॒ दश॒ कृत्वः॑ पशुपते॒ नम॑स्ते। तवे॒मे पञ्च॑ प॒शवो॒ विभ॑क्ता॒ गावो॒ अश्वाः॒ पुरु॑षा अजा॒वयः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठच॒तु: । नम॑: । अ॒ष्ट॒ऽकृत्व॑: । भ॒वाय॑ । दश॑ । कृत्व॑: । प॒शु॒ऽप॒ते॒ । नम॑: । ते॒ । तव॑ । इ॒मे । पञ्च॑ । प॒शव॑: । विऽभ॑क्ता: । गाव॑: । अश्वा॑: । पुरु॑षा । अ॒ज॒ऽअ॒वय॑: ॥२.९॥
स्वर रहित मन्त्र
चतुर्नमो अष्टकृत्वो भवाय दश कृत्वः पशुपते नमस्ते। तवेमे पञ्च पशवो विभक्ता गावो अश्वाः पुरुषा अजावयः ॥
स्वर रहित पद पाठचतु: । नम: । अष्टऽकृत्व: । भवाय । दश । कृत्व: । पशुऽपते । नम: । ते । तव । इमे । पञ्च । पशव: । विऽभक्ता: । गाव: । अश्वा: । पुरुषा । अजऽअवय: ॥२.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(भवाय) भव [सुखोत्पादक परमेश्वर] को (चतुः) चार बार, (अष्टकृत्वः) आठ बार (नमः) नमस्कार है, (पशुपते) हे दृष्टिवाले [जीवों] के रक्षक ! (ते) तुझे (दश कृत्वः) दस बार (नमः) नमस्कार है। (तव) तेरे ही (विभक्ताः) बाँटे हुए (इमे) यह (पञ्च) पाँच (पशवः) दृष्टिवाले [जीव] (गावः) गौवें, (अश्वाः) घोड़े, (पुरुषाः) पुरुष और (अजावयः) बकरी और भेड़ें हैं ॥९॥
भावार्थ
मनुष्य परमेश्वर को चार बार [ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास चार आश्रमों का ध्यान करके], आठ बार [यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि, आठ योग के अङ्गों का आश्रय लेकर−योगदर्शन, पाद २ सूत्र २९] और दस बार [पाँच ज्ञानेन्द्रिय और पाँच कर्मेन्द्रिय को वश में करके] नमस्कार करे। परमेश्वर ही कर्मानुसार गौ आदि पदार्थों को मनुष्यों के लिये बाँटता है ॥९॥
टिप्पणी
९−(चतुः) द्वित्रिचतुर्भ्यः सुच्। पा० ५।४।१८। इति सुच्। चतुर्वारम्। ब्रह्मचर्यगृहस्थवानप्रस्थसंन्यासाश्रमान् ध्यात्वा (नमः) नमस्कारः (अष्टकृत्वः) संख्यायाः क्रियाभ्यावृत्तिगणने कृत्वसुच्। पा० ५।४।१०। इति कृत्वसुच्। अष्टवारम्। यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि−योगदर्शने, पा० २ सूत्रे २९-इत्येतानि आश्रित्य (भवाय) म० ३। सुखोत्पादकाय (दश कृत्वः) पूर्ववत् कृत्वसुच्, व्यवधानं छान्दसम्। दशवारम्। दशेन्द्रियाणि वशीकृत्वेति यावत् (पशुपते) (नमः) (ते) (तव) (इमे) समीपवर्तिनः (पशवः) दृष्टिमन्तो जीवाः (विभक्ताः) विभागं प्राप्ताः (गावः) धेनवः (अश्वाः) तुरङ्गाः (पुरुषाः) मनुष्याः (अजावयः) अजाश्च अवयश्च ते छागमेषाः ॥
विषय
पञ्च पशवः
पदार्थ
१. (भवाय) = संसार को उत्पन्न करनेवाले प्रभु के लिए (चतुः) = चार बार, चार ही बार क्यों? (अष्टकृत्व:) = आठ बार (नमः) = नमस्कार हो। पूर्वादि चारों दिशाओं में नमस्कार हो, और चार ही क्यों? अवान्तर दिशाओं को मिलाकर आठों दिशाओं में प्रभु के लिए हमारा नमस्कार हो। हे (पशुपते) = सब प्राणियों के रक्षक प्रभो ! (दशकृत्व:) = दस बार (ते नम:) = आपके लिए नमस्कार हो। चार दिशा, चार अवान्तर दिशा तथा नीचे-ऊपर [धुवा-ऊर्ध्वा] को मिलाकर दस बार प्रभु को प्रणाम हो। २. हे प्रभो! (इमे) = ये (पञ्च पशवः) = पाँच पशु (तव) = आपके (विभक्ता:) = [वि भज् सेवायाम्] विशिष्ट रूप से सेवित है-आपके ये स्वभूत ही हैं-दाहिनी ओर (गाव: अश्वा:) = गौ व घोड़े, बीच में (पुरुषा:) = मनुष्य तथा बायी ओर (अजावयः) = बकरी व भेड़ें। वस्तुत: गौवें व घोड़े मनुष्य के दाहिने हाथ हैं, तो अजा-अवि उसके बायें हाथ के समान हैं। मानव-उन्नति में इन चारों पशुओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
भावार्थ
हम सब दिशाओं में प्रभु के लिए प्रणाम करते हैं। पशुपति प्रभु ने मनुष्य को केन्द्र में रखकर उसकी उन्नति में साधनभूत गौ-घोड़े, अजा व अवि आदि पशुओं को बनाया है।
भाषार्थ
(पशुपते) हे पशुओं के पति ! (इमे) ये (गावः अश्वा पुरुषाः अजावयः) गौएं, अश्व, पुरुष, बकरियां, भेड़े (पशवः) पशु, (पञ्च विभक्ताः) जो कि पांच विभागों में विभक्त हैं, (तव) तेरे हैं, (ते भवाय) सृष्ट्युत्पादक तेरे लिये (चतुः नमः) चार वार नमस्कार हो, (अष्टकृत्वः) आठ वार तथा (दशकृत्वः) दस वार (नमः) नमस्कार हो।
टिप्पणी
[चतुः= चार वार, चार मुख्य दिशाओं में वर्तमान तेरे लिये चारों दिशाओं में नमस्कार हो। अष्टकृत्वः= चार मुख्यदिशाओं तथा चार उपदिशाओं की अपेक्षा से। दशकृत्वा = पूर्वोक्त आठ तथा ऊर्ध्वा और ध्रुवा दिग् की अपेक्षा से। सन्ध्या के मन्त्रों में मनसा परिक्रमा के सदृश मनसापरिक्रमा करते हुए परमेश्वर को नमस्कार करने का विधान हुआ है। चतुः, अष्ट और दश,- ये वैकल्पिक हैं।
विषय
रुद्र ईश्वर के भव और शर्व रूपों का वर्णन।
भावार्थ
हे (पशुपते) जीव संसार के स्वामिन् ! (भवाय) संसार के उत्पत्ति स्थान रूप आपको (चतुः) चारवार (अष्टकृत्वः* दशकृत्वः) आठबार और दशबार (नमः) नमस्कार हो। (तव इमे पञ्च पशवः विभक्ताः) तेर ही विभाग किये हुए ये पांच जीव हैं। (१) (गावः) गौएं (२) (अश्वाः) घोड़े (३) (पुरुषाः) पुरुष और (अजावयः) (४) बकरी (५) और भेड़े। नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते। गी० ११। ३९॥
टिप्पणी
* ‘दश। कृत्वः’ इति पदच्छेदो ह्विटनिकामितः। (च०) ‘गावोऽश्वाः पुरुषाणुजावयः’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। रुद्रो देवता। १ परातिजागता विराड् जगती, २ अनुष्टुब्गर्भा पञ्चपदा जगती चतुष्पात्स्वराडुष्णिक्, ४, ५, ७ अनुष्टुभः, ६ आर्षी गायत्री, ८ महाबृहती, ९ आर्षी, १० पुरः कृतिस्त्रिपदा विराट्, ११ पञ्चपदा विराड् जगतीगर्भा शक्करी, १२ भुरिक्, १३, १५, १६ अनुष्टुभौ, १४, १७–१९, २६, २७ तिस्त्रो विराड् गायत्र्यः, २० भुरिग्गायत्री, २१ अनुष्टुप्, २२ विषमपादलक्ष्मा त्रिपदा महाबृहती, २९, २४ जगत्यौ, २५ पञ्चपदा अतिशक्वरी, ३० चतुष्पादुष्णिक् ३१ त्र्यवसाना विपरीतपादलक्ष्मा षट्पदाजगती, ३, १६, २३, २८ इति त्रिष्टुभः। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Rudra
Meaning
Four ways, four times, homage to Bhava, lord creator of forms of life, eight times, ten times homage of worship be to you, O Bhava. All these five forms of living beings, varied each in its own way, cows, horses, humans, goats and sheep are yours.
Translation
Four times (catus) homage, eight times, to Bhava; ten times, O lord of cattle, be homage to thee; thine are shared out these five creatures (pasvah) i.e., cows, horses, men, sheep and goats.
Translation
Our four time praises are due to this constructive fire the protector of cattle, our eight time and ten times appreciation is due its properties. It is the master of creatures and cattle therefore five categories these PASHUS are generally known; cows, horses, human beings, goat and sheep.
Translation
Four times, eight times be homage paid to God the Creator of the universe, Yea, Lord of sentient beings, ten times be reverence paid thee! Thou hast divided these animals into five classes, kine, horses, men, goats, sheep lend them protection.
Footnote
Four times: Taking into consideration the four Ashramas. Eight times: Taking into consideration the eight limbs of Yoga, Yama, Niyama, Asana, Pranayama, Pratyahara, Dharna, Dhyana, Smadhi. Ten times: Taking into consideration the five organs cognition and five of action.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(चतुः) द्वित्रिचतुर्भ्यः सुच्। पा० ५।४।१८। इति सुच्। चतुर्वारम्। ब्रह्मचर्यगृहस्थवानप्रस्थसंन्यासाश्रमान् ध्यात्वा (नमः) नमस्कारः (अष्टकृत्वः) संख्यायाः क्रियाभ्यावृत्तिगणने कृत्वसुच्। पा० ५।४।१०। इति कृत्वसुच्। अष्टवारम्। यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि−योगदर्शने, पा० २ सूत्रे २९-इत्येतानि आश्रित्य (भवाय) म० ३। सुखोत्पादकाय (दश कृत्वः) पूर्ववत् कृत्वसुच्, व्यवधानं छान्दसम्। दशवारम्। दशेन्द्रियाणि वशीकृत्वेति यावत् (पशुपते) (नमः) (ते) (तव) (इमे) समीपवर्तिनः (पशवः) दृष्टिमन्तो जीवाः (विभक्ताः) विभागं प्राप्ताः (गावः) धेनवः (अश्वाः) तुरङ्गाः (पुरुषाः) मनुष्याः (अजावयः) अजाश्च अवयश्च ते छागमेषाः ॥
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