अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 2/ मन्त्र 18
ऋषि: - ब्रह्मा
देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम्
छन्दः - आर्षी गायत्री
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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अदृ॑श्रन्नस्य के॒तवो॒ वि र॒श्मयो॒ जनाँ॒ अनु॑। भ्राज॑न्तो अ॒ग्नयो॑ यथा ॥
स्वर सहित पद पाठअदृ॑श्रन् । अ॒स्य॒ । के॒तव॑: । वि । र॒श्मय॑: । जना॑न् । अनु॑ । भ्राज॑न्त: । अ॒ग्नय॑: । य॒था॒॥२.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
अदृश्रन्नस्य केतवो वि रश्मयो जनाँ अनु। भ्राजन्तो अग्नयो यथा ॥
स्वर रहित पद पाठअदृश्रन् । अस्य । केतव: । वि । रश्मय: । जनान् । अनु । भ्राजन्त: । अग्नय: । यथा॥२.१८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(अस्य) इस [सूर्य] की (केतवः) जतानेवाली (रश्मयः) किरणें (जनान् अनु) प्राणियों में (वि) विविध प्रकार से (अदृश्रन्) देखी गयी हैं। (यथा) जैसे (भ्राजन्तः) दहकते हुए (अग्नयः) अङ्गारे ॥१८॥
भावार्थ
जैसे सूर्य की किरणें धूप, बिजुली और अग्नि के रूप से संसार में फैलती हैं, वैसे ही सब मनुष्य शुभ गुण कर्म और स्वभाव से प्रकाशमान होकर आत्मा और समाज की उन्नति करें ॥१८॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।५०।३। यजु० ८।४०। और साम० पू० ६।१४।८ ॥
टिप्पणी
१८−(अदृश्रन्) दृष्टा अभूवन् (अस्य) सूर्यस्य (केतवः) ज्ञापकाः (वि) विविधम् (रश्मयः) किरणाः (जनान् अनु) जातान् प्राणिनः प्रति (भ्राजन्तः) प्रकाशमानाः (अग्नयः) पावकाः (यथा) ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Rohita, the Sun
Meaning
The banners of the lord of sun beams, the rays of the sun, are seen in the world of humanity blazing like explosions of fire in heaven.
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