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अथर्ववेद के काण्ड - 13 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 23
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - रोहितः, आदित्यः, अध्यात्मम् छन्दः - आर्षी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    68

    स॒प्त त्वा॑ ह॒रितो॒ रथे॒ वह॑न्ति देव सूर्य। शो॒चिष्के॑शं विचक्ष॒णम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्त । त्वा॒ । ह॒रित॑: । रथे॑ । वह॑न्ति । दे॒व॒ । सू॒र्य॒ । शो॒चि:ऽके॑शम् । वि॒ऽच॒क्ष॒णम् ॥२.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्त त्वा हरितो रथे वहन्ति देव सूर्य। शोचिष्केशं विचक्षणम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्त । त्वा । हरित: । रथे । वहन्ति । देव । सूर्य । शोचि:ऽकेशम् । विऽचक्षणम् ॥२.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 2; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (देव) हे चलनेवाले (सूर्य) सूर्य ! [रविमण्डल] (सप्त) सात [शुक्ल, नील, पीत आदि-म० ४] (हरितः) आकर्षक किरणें (शोचिष्केशम्) पवित्र प्रकाशवाले (विचक्षणम्) विविध प्रकार दिखानेवाले (त्वाम्) तुझको (रथे) रथ [गमन विधान] में (वहन्ति) ले चलती हैं ॥२३॥

    भावार्थ

    यह प्रकाशमान सूर्यलोक शुक्ल, नील, पीत आदि सात किरणों द्वारा अपनी धुरी पर अपने घेरे में घूमता है। इस नियम का बनानेवाला वह परमेश्वर है ॥२३॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−१।५०।८, और साम० पू० ६।१४।१४ ॥

    टिप्पणी

    २३−(सप्त) नीलपीतादिसप्तवर्णाः-म० ४ (त्वा) (हरितः) आकर्षकाः किरणाः (रथे) म० ६। गमनविधाने (वहन्ति) गमयन्ति (देव) हे गमनशील (सूर्य) रविमण्डल (शोचिष्केशम्) शोचिषः शुचयः केशाः प्रकाशा यस्य तम् (विचक्षणम्) विविधं दर्शकम् ॥

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    विषय

    सप्ताश्व

    पदार्थ

    १. हे (देव) = द्योतमान, हृदयों को निर्मल करके दीस करनेवाले! (सूर्य) = निरन्तर सरणशील सभी को कार्यों में प्रवृत्त करनेवाले सूर्य! (त्वा) = तुझे (सप्त हरित:) = सात रंगोंवाली रसहरणशील किरणें (रथे) = रथ में (वहन्ति) = धारण करती हैं, आगे ले-चलती हैं। २. तुझे ये आगे ले-चलती है जो तू (शोचिष्केशम्) = देदीप्यमान किरणरूप केशोंवाला है, (विचक्षणम्) = विशिष्ट प्रकाशवाला है अथवा सबके मस्तिष्कों को ज्ञानज्योति से प्रकाशित करनेवाला है।

    भावार्थ

    सूर्य सताश्व है, सात रंगोंवाली सात किरणों से हमारे अन्दर सात प्राणदायी तत्त्वों को प्रविष्ट करके यह सूर्य हमारे रोगों का हरण करता है।

     

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    भाषार्थ

    (देव सूर्य) हे द्युतिमान सूर्य! (सप्त हरितः) सात किरणें, (शोचिष्केशम्) पवित्र या प्रकाशमयी रश्मियों वाले, (विचक्षणम्) द्रष्टा (त्वा) तुझे (रथे वहन्ति) रथ में वहन करती हैं।

    टिप्पणी

    ["त्वा रथे" या "सूर्य रथे" में सूर्य और रथ अर्थात् सूर्य और सूर्यपिण्ड में भेद दर्शाया है। यह भेद वैकल्पिक है, कविता रूप में है। केशम्= केशा रश्मय, काशनाद्वा प्रकाशनाद्वा (निरुक्त १२।३।२६)। विचक्षणम्; विचष्टे पश्यतिकर्मा (निघं० ३।११)। तथा विचक्षते= विपश्यन्ति (निरुत् १२।३।२८)। सप्त= शुभ्र रश्मि के फटने पर उत्पन्न सात रश्मियां, जो कि ईन्द्रधनुष में दृष्टिगोचर होती हैं। अथवा हे परमेश्वर! प्रत्याहार रूपी योगाङ्ग सम्पन्न ५ ज्ञानेन्द्रियां, मन और बुद्धि- ये सात, शरीर रथ में, पवित्र या प्रकाशमयी किरणों वाले, सर्वद्रष्टा तुझ को वहन करते हैं, मुझे प्राप्त कराते हैं। वह प्रापणे। सूर्य =परमेश्वर (अथर्व० १३।४ (१)।५)]‌।

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    विषय

    रोहित, परमेश्वर और ज्ञानी।

    भावार्थ

    हे (सूर्य) सूर्य के समान तेजस्विन् आत्मन् ! (शोचिष्केशम्) दीप्ति के आवरण या स्वरूप से युक्त (विचक्षणम्) विशेष रूप से ज्ञान दर्शन करने-हारे विज्ञान वान् आत्मा रूप (त्वा) तुझको हे (देव) दर्शन-वान् आत्मन् ! (सप्त हरितः) सात हरण-शील, वेगवान् प्राण (वहन्ति) धारण करते हैं।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘विचक्षण’ इति ऋ०। ‘पुरुप्रिय’ इति मै० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्म रोहितादित्यो देवता। १, १२-१५, ३९-४१ अनुष्टुभः, २३, ८, ४३ जगत्यः, १० आस्तारपंक्तिः, ११ बृहतीगर्भा, १६, २४ आर्षी गायत्री, २५ ककुम्मती आस्तार पंक्तिः, २६ पुरोद्व्यति जागता भुरिक् जगती, २७ विराड़ जगती, २९ बार्हतगर्भाऽनुष्टुप, ३० पञ्चपदा उष्णिग्गर्भाऽति जगती, ३४ आर्षी पंक्तिः, ३७ पञ्चपदा विराड़गर्भा जगती, ४४, ४५ जगत्यौ [ ४४ चतुष्पदा पुरः शाक्वरा भुरिक् ४५ अति जागतगर्भा ]। षट्चत्वारिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rohita, the Sun

    Meaning

    O Sun, self-refulgent lord of blazing flames, light and universal illumination, seven are the colourful lights of glory which, like seven horses, draw your chariot of time across space and the history of mankind. In the same way seven are the channels, metres of poetry and vision, which reveal the light of Divinity in the sacred verses of Veda.

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    Translation

    O self-radiant, through your divine spectrum of seven harnessed to your chariot, you guide all men. (See Also Rg 1.50.8)

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    Translation

    The seven rays carry, in its light car that luminous sun which has in it the dry rays and is the source of seeing.

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    Translation

    O soul, shining like the Sun, radiant and wise, seven swift breaths support thee in the body.

    Footnote

    See Rig, 1-50-8.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(सप्त) नीलपीतादिसप्तवर्णाः-म० ४ (त्वा) (हरितः) आकर्षकाः किरणाः (रथे) म० ६। गमनविधाने (वहन्ति) गमयन्ति (देव) हे गमनशील (सूर्य) रविमण्डल (शोचिष्केशम्) शोचिषः शुचयः केशाः प्रकाशा यस्य तम् (विचक्षणम्) विविधं दर्शकम् ॥

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