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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 3
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आर्ची पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    69

    वि॒शां च॒ वै ससब॑न्धूनां॒ चान्न॑स्य चा॒न्नाद्य॑स्य च प्रि॒यं धाम॑ भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒शाम् । च॒ । वै । स: । सऽब॑न्धूनाम् । च॒ । अन्न॑स्य । च॒ । अ॒न्न॒ऽअद्य॑स्य । च॒ । प्रि॒यम् । धाम॑ । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विशां च वै ससबन्धूनां चान्नस्य चान्नाद्यस्य च प्रियं धाम भवति य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विशाम् । च । वै । स: । सऽबन्धूनाम् । च । अन्नस्य । च । अन्नऽअद्यस्य । च । प्रियम् । धाम । भवति । य: । एवम् । वेद ॥८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमेश्वर की प्रभुता का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [विद्वान्पुरुष] (वै) निश्चय करके (सबन्धूनाम्) बन्धुओं सहित (विशाम्) मनुष्यों का (च च)और (अन्नस्य) अन्न [जौ चावल आदि] का (च च) और (अन्नाद्यस्य) अनाज [रोटी पूरी आदिबने हुए पदार्थ] का (प्रियम्) प्रिय (धाम) धाम [घर] (भवति) होत है, (यः) जो [विद्वान्] (एवम्) ऐसे वा व्यापक [व्रात्य परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥३॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् मनुष्यपरमात्मा का आश्रय लेकर पुरुषार्थ करता है, वह सर्वहितकारी होने से सब मेंप्रतिष्ठा पाता है ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(विशाम्) मनुष्याणाम् (च) (वै) निश्चयेन (सः) विद्वान् (सबन्धूनाम्) सकुटुम्बिनाम् (अन्नस्य) सस्यस्य (अन्नाद्यस्य) भोग्यस्यसंस्कृतपदार्थस्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    राजन्य

    पदार्थ

    १. (सः अरज्यत) = इस व्रात्य ने प्रजाओं का रञ्जन किया। तत: उस रञ्जन के कारण (राजन्य:) = राजन्य (अजायत) = हो गया। 'राजति' दीप्त जीवनवाला बना। (स:) = वह प्रजा का रजन करनेवाला व्रात्य (सबन्धून विश:) = बन्धुओंसहित प्रजाओं का तथा (अन्नं अन्नाद्यं अभि) = अन्न और अन्नाद्य का लक्ष्य करके (उदतिष्ठत) = उत्थानवाला हुआ। उसने बन्धुओं व प्रजाओं की स्थिति को उन्नत करने का प्रयत्न किया कि अन्न व अन्नाद्य की कमी न हो। कोई भी भूखा न मरे। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार समझ लेता है कि उसने बन्धुओं व प्रजाओं को उन्नत करना है और अन्न व अन्नाद्य की कमी नहीं होने देनी, (सः) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (सबन्धूनां च) = अपने समान बन्धुओं का (विशाम् च) = प्रजाओं का तथा (अन्नस्य अन्नाद्यस्य च) = अन्न और अन्नाद्य का प्(रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है।

    भावार्थ

    एक व्रात्य लोकहित के कार्यों में प्रवृत्त हुआ-हुआ बन्धुओं व प्रजाओं को उन्नत करने का प्रयत्न करता है, अन्न व अन्नाद्य की कमी न होने देने के लिए यत्नशील होता है। इसप्रकार प्रजाओं का रञ्जन करता हुआ यह राजन्य होता है।

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    भाषार्थ

    (यः) जो अन्य राजा भी (एवम्) इस प्रकार के तथ्य को (वेद) जानता और तदनुसार आचरण करता है (सः) वह (वै) निश्चय से (सबन्धूनाम्) बन्धु बान्धवों सहित (विशाम् च) प्रजाजनों का, (अन्नस्य च, अन्नाद्यस्य च) पेय आदि अन्नों तथा खाद्यान्नों का (प्रियं धाम भवति) प्रिय स्थान बन जाता है।

    टिप्पणी

    [अर्थात् राजन्य को चाहिये कि वह प्रजाजनों की समुन्नति के साथ साथ, निज बन्धु बान्धवों की भी उन्नति करें, और राज्य में खान-पान की साम्रगी के लिये भी प्रयत्न करे।]

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    विषय

    व्रात्य राजा।

    भावार्थ

    (यः एवं वेद) जो व्रात्य के इस प्रकार के स्वरूप को जानता है (सः) वह (दिशाम् सबन्धूनां) समस्त बन्धुओं सहित समस्त प्रजाओं का (अन्नस्य च अन्नाद्यस्य च) अन्न और अन्न से उत्पन्न अन्य खाद्य पदार्थों का (प्रियं धाम भवति) प्रिय आश्रय हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ साम्नी उष्णिक्, २ प्राजापत्यानुष्टुप् ३ आर्ची पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    One who knows this becomes the centre of the love and reverence of the people, his own fraternity, with the treasure hold of food and life’s delicacies.

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    Translation

    He, who knows it thus, becomes the pleasing abode of the People along with the kinsmen, of food and the edibles.

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    Translation

    He who possesses the knowledge of this become favourable abode of subjects with their kinsmen grain and nourishment.

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    Translation

    He who possesses this knowledge of God becomes the dear of all men with their kinsmen of cereals and nourishing meals.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(विशाम्) मनुष्याणाम् (च) (वै) निश्चयेन (सः) विद्वान् (सबन्धूनाम्) सकुटुम्बिनाम् (अन्नस्य) सस्यस्य (अन्नाद्यस्य) भोग्यस्यसंस्कृतपदार्थस्य। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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