अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - आर्ची गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
70
तं स॒भा च॒समि॑तिश्च॒ सेना॑ च॒ सुरा॑ चानु॒व्यचलन् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । स॒भा । च॒ । सम्ऽइ॑ति: । च॒ । सेना॑ । च॒ । सुरा॑ । च॒ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन् ॥९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
तं सभा चसमितिश्च सेना च सुरा चानुव्यचलन् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । सभा । च । सम्ऽइति: । च । सेना । च । सुरा । च । अनुऽव्यचलन् ॥९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।
पदार्थ
(सभा) सभा (च च) और (समितिः) संग्राम व्यवस्था (च) और (सेना) सेना (च) और (सुरा) राज्यलक्ष्मी (तम्)उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा की विहितव्यवस्था से ही संसार में सभा आदि की संस्था स्थापित हुई है ॥२॥इस मन्त्र काकुछ अंश महर्षिदयानन्दकृत सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ६ राजधर्मप्रकरण तथासंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥
टिप्पणी
२−(तम्) व्रात्यं परमात्मानम् (सभा) राजधर्मादिसभा (समितिः) संग्रामः-निघ० २।१७। संग्रामव्यवस्था (सेना) (सुरा) षुर दीप्तौ ऐश्वर्ये च-क, टाप्। राज्यलक्ष्मीः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
'सभा, समिति, सेना, सुरा' का अनुचलन
पदार्थ
१. (स:) = वह गत सूक्त का राजन्य व्रात्य (विशः अनुव्यचलत्) = प्रजाओं की उन्नति का लक्ष्य करके गतिवाला हुआ। 'प्रजा-समृद्धि' ही उसके शासन का धेय बना। ऐसा होने पर (तम्) = उस राजन्य व्रात्य को (सभा च समितिः च) = व्यवस्थापिका सभा व कार्यकारिणी समिति (च) = तथा सेना (सुरा च) = [सुर ऐश्वर्य] राष्ट्ररक्षक सेना व राज्यकोष [राज्यलक्ष्मी] (अनुव्यचलन) = अनुकूलता से प्राप्त हुए। २. (यः एवं वेद) = जो राजन्य व्रात्य 'प्रजा-समृद्धि को ही शासन का लक्ष्य समझ लेता है (स:) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (सभाया: च समिते: च) = सभा व समिति का (च) = तथा (सेनायाः सुरायाः च) = सेना व राज्यलक्ष्मी का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है।
भावार्थ
प्रजा की उन्नति को ही शासन का लक्ष्य समझनेवाला राजन्य व्रात्य-व्रती राजा-सभा-समिति, सेना व सुर [लक्ष्मी] का प्रिय बनता है।
भाषार्थ
(तम्) उस व्रात्य-राजन्य की (अनु) अनुकूलता में, (सभा च) राज सभा, धर्मसभा, विद्यासभा, (समितिः च) युद्धसभा, (सेना च) सेना, (सुरा च) और ऐश्वर्य अर्थात् राज्यकोष तथा जल विभाग (व्यचलन्) विशेषतया चले।
टिप्पणी
[मन्त्र १ के अनुसार राजा प्रजा के अनुकूल चला, अतः परिणाम रूप में प्रजाएं राजा के अनुकूल चलीं। सुरा = षुर = सुर (ऐश्वर्ये)। सुरा उदकनाम (निघं० १।१२)। राज्य में कृषि आदि के लिये जल का विभाग]
विषय
व्रात्य, सभापति, समितिपति, सेनापति और गृहपति।
भावार्थ
(तम्) उसके पीछे पीछे (सभा च, समितिः च, सेना च, सुरा च अनुव्यचलन्) सभा, समिति, और सेना और सुरा अर्थात् स्त्री भी चले।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ आसुरी, २ आर्ची गायत्री, आर्ची पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
With him, his thought and movement, rose Sabha, Samiti and the army, and a commonwealth of joy and prosperity.
Translation
The assembly, the war-council, the army, ánd the treasury (sura) followed him.
Translation
Sabha, the Parliament, Samitih, the assembly, army and Sura, the medicinal juice and preparation follow him.
Translation
Assembly, and Association, Army and Treasury remain under His control
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(तम्) व्रात्यं परमात्मानम् (सभा) राजधर्मादिसभा (समितिः) संग्रामः-निघ० २।१७। संग्रामव्यवस्था (सेना) (सुरा) षुर दीप्तौ ऐश्वर्ये च-क, टाप्। राज्यलक्ष्मीः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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