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अथर्ववेद के काण्ड - 15 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - आर्ची गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
    70

    तं स॒भा च॒समि॑तिश्च॒ सेना॑ च॒ सुरा॑ चानु॒व्यचलन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । स॒भा । च॒ । सम्ऽइ॑ति: । च॒ । सेना॑ । च॒ । सुरा॑ । च॒ । अ॒नु॒ऽव्य᳡चलन् ॥९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं सभा चसमितिश्च सेना च सुरा चानुव्यचलन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । सभा । च । सम्ऽइति: । च । सेना । च । सुरा । च । अनुऽव्यचलन् ॥९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजधर्मकी व्यवस्था का उपदेश।

    पदार्थ

    (सभा) सभा (च च) और (समितिः) संग्राम व्यवस्था (च) और (सेना) सेना (च) और (सुरा) राज्यलक्ष्मी (तम्)उस [व्रात्य परमात्मा] के (अनुव्यचलन्) पीछे विचरे ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा की विहितव्यवस्था से ही संसार में सभा आदि की संस्था स्थापित हुई है ॥२॥इस मन्त्र काकुछ अंश महर्षिदयानन्दकृत सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ६ राजधर्मप्रकरण तथासंस्कारविधि गृहाश्रमप्रकरण में व्याख्यात है ॥

    टिप्पणी

    २−(तम्) व्रात्यं परमात्मानम् (सभा) राजधर्मादिसभा (समितिः) संग्रामः-निघ० २।१७। संग्रामव्यवस्था (सेना) (सुरा) षुर दीप्तौ ऐश्वर्ये च-क, टाप्। राज्यलक्ष्मीः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    'सभा, समिति, सेना, सुरा' का अनुचलन

    पदार्थ

    १. (स:) = वह गत सूक्त का राजन्य व्रात्य (विशः अनुव्यचलत्) = प्रजाओं की उन्नति का लक्ष्य करके गतिवाला हुआ। 'प्रजा-समृद्धि' ही उसके शासन का धेय बना। ऐसा होने पर (तम्) = उस राजन्य व्रात्य को (सभा च समितिः च) = व्यवस्थापिका सभा व कार्यकारिणी समिति (च) = तथा सेना (सुरा च) = [सुर ऐश्वर्य] राष्ट्ररक्षक सेना व राज्यकोष [राज्यलक्ष्मी] (अनुव्यचलन) = अनुकूलता से प्राप्त हुए। २. (यः एवं वेद) = जो राजन्य व्रात्य 'प्रजा-समृद्धि को ही शासन का लक्ष्य समझ लेता है (स:) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (सभाया: च समिते: च) = सभा व समिति का (च) = तथा (सेनायाः सुरायाः च) = सेना व राज्यलक्ष्मी का (प्रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है।

    भावार्थ

    प्रजा की उन्नति को ही शासन का लक्ष्य समझनेवाला राजन्य व्रात्य-व्रती राजा-सभा-समिति, सेना व सुर [लक्ष्मी] का प्रिय बनता है।

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    भाषार्थ

    (तम्) उस व्रात्य-राजन्य की (अनु) अनुकूलता में, (सभा च) राज सभा, धर्मसभा, विद्यासभा, (समितिः च) युद्धसभा, (सेना च) सेना, (सुरा च) और ऐश्वर्य अर्थात् राज्यकोष तथा जल विभाग (व्यचलन्) विशेषतया चले।

    टिप्पणी

    [मन्त्र १ के अनुसार राजा प्रजा के अनुकूल चला, अतः परिणाम रूप में प्रजाएं राजा के अनुकूल चलीं। सुरा = षुर = सुर (ऐश्वर्ये)। सुरा उदकनाम (निघं० १।१२)। राज्य में कृषि आदि के लिये जल का विभाग]

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    विषय

    व्रात्य, सभापति, समितिपति, सेनापति और गृहपति।

    भावार्थ

    (तम्) उसके पीछे पीछे (सभा च, समितिः च, सेना च, सुरा च अनुव्यचलन्) सभा, समिति, और सेना और सुरा अर्थात् स्त्री भी चले।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १ आसुरी, २ आर्ची गायत्री, आर्ची पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vratya-Prajapati daivatam

    Meaning

    With him, his thought and movement, rose Sabha, Samiti and the army, and a commonwealth of joy and prosperity.

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    Translation

    The assembly, the war-council, the army, ánd the treasury (sura) followed him.

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    Translation

    Sabha, the Parliament, Samitih, the assembly, army and Sura, the medicinal juice and preparation follow him.

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    Translation

    Assembly, and Association, Army and Treasury remain under His control

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(तम्) व्रात्यं परमात्मानम् (सभा) राजधर्मादिसभा (समितिः) संग्रामः-निघ० २।१७। संग्रामव्यवस्था (सेना) (सुरा) षुर दीप्तौ ऐश्वर्ये च-क, टाप्। राज्यलक्ष्मीः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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