अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
अग॑न्म॒ स्वःस्वरगन्म॒ सं सूर्य॑स्य॒ ज्योति॑षागन्म ॥
स्वर सहित पद पाठअग॑न्म । स्व᳡: । स्व᳡: । अ॒ग॒न्म॒ । सम् । सूर्य॑स्य । ज्योति॑षा । अ॒ग॒न्म॒ ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अगन्म स्वःस्वरगन्म सं सूर्यस्य ज्योतिषागन्म ॥
स्वर रहित पद पाठअगन्म । स्व: । स्व: । अगन्म । सम् । सूर्यस्य । ज्योतिषा । अगन्म ॥९.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सुख की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(स्वः) सुख [तत्त्वज्ञान का आनन्द] (अगन्म) हम पावें और (स्वः) सुख [मोक्ष आनन्द] (अगन्म)हम पावें और (सूर्यस्य) सर्वप्रेरक परमात्मा की (ज्योतिषा) ज्योति से (सम्अगन्म) हम मिल जावें ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य पुरुषार्थ केसाथ तत्त्वज्ञानी होकर मोक्षसुख पावें और परमात्मा के दर्शन के भागी होवें॥३॥
टिप्पणी
३−(अगन्म) छन्दसि लुङ्लङ्लिटः। पा० ३।४।६। लिङर्थे लुङ्। गच्छेम। प्राप्नुयाम (स्वः) तत्त्वज्ञानसुखम् (स्वः) मोक्षसुखम् (अगन्म) प्राप्नुयाम (सम्) संगत्य (सूर्यस्य) सर्वप्रेरकस्य परमात्मनः (ज्योतिषा) तेजसा (अगन्म) प्राप्नुयाम ॥
विषय
सूर्यस्य ज्योतिषा
पदार्थ
१. (स्व:) = [Water आप: रेतः] हमने वासनाओं को पराजित करके शरीर में रेत:कणों को अगन्म-प्राप्त किया है। इन सुरक्षित रेत:कणों से ज्ञानाग्नि की दीति होने पर (स्वः अगन्म) = [Radiance, lustre] हमने ज्ञानज्योति को प्राप्त किया है। २. (सूर्यस्य) = उस आदित्यवर्ण सूर्यसम ज्योति 'ब्रह्म' [ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिः] की (ज्योतिषा) = ज्ञानदीप्ति से (सम् अगन्म) = हम संगत हुए हैं।
भावार्थ
सन्मार्ग में चलते हुए हम रेत:कणों के रक्षण से ज्ञानप्रकाश को प्राप्त करें। प्रकाश को ही क्या उस सूर्यसम ज्योति ब्रह्म के ज्ञान से संगत हों।
भाषार्थ
(अगन्म) प्राप्त हुए हैं हम (स्वः) सांसारिक सुख को, (स्वः) सांसारिक सुख को (अगन्म) हम प्राप्त हुए हैं, (सूर्यस्य) सूर्य की (ज्योतिषा) ज्योति के साथ (सम्, अगन्म) हम संगत हुए हैं।
टिप्पणी
[लोभी राष्ट्र ने, शान्ति की भावना वाले राष्ट्र पर जब आक्रमण किया तब शान्ति रखने वाले राष्ट्र की प्रजा दुःखग्रस्त हो गई और उन पर निराशा का अन्धकार छा गया। परन्तु आत्मरक्षा से प्रेरित हो कर तथा दान रहित वाले कंजूस राष्ट्र पर जब शान्तिप्रिय राजा की सेना ने युद्ध लड़ कर आक्रमणकर्ता को पराजित कर दिया तब शान्तिप्रिय प्रजाओ में सुख का संचार हुआ और आशारूपी सूर्यज्योति पुनः चमकने लगी। खुशी में "अगन्म और स्वः" का दो बार कथन हुआ है, "अभ्यासे भुयांसमर्थ मन्यन्ते" (निरुक्त)]
विषय
ऐश्वर्य प्राप्ति।
भावार्थ
हम (स्वः) सुखमय राष्ट्र को (अगन्म) प्राप्त हों, (सूर्यस्य ज्योतिषा सम् अगन्म) सूर्य के तेज से युक्त हों, (स्वः अगन्म) हम सुखमय लोक को प्राप्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
चत्वारि वै वचनानि। १ प्रजापतिः, २ मन्त्रोक्ता देवता च, ३, ४ आसुरी गायत्री, १ आसुरी अनुष्टुप, २ आर्च्युष्णिक्, ३ साम्नी पंक्तिः, ४ परोष्णिक्। चतुर्ऋचं नवमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Let us rise to heavenly light and joy. We have risen to heavenly light and divine bliss. We have risen and have joined with the light of the Sun. sell's ll
Translation
We have attained light; we have attained bliss. We are united with the light of the sun.
Translation
We have attained the light of the sun, we have attained the light of our self and we have attained the light of Surya, the self-refulgent Divinity.
Translation
May we enjoy the pleasure of knowledge. May we feel the delight of salvation. May we be united with the light of Surya.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(अगन्म) छन्दसि लुङ्लङ्लिटः। पा० ३।४।६। लिङर्थे लुङ्। गच्छेम। प्राप्नुयाम (स्वः) तत्त्वज्ञानसुखम् (स्वः) मोक्षसुखम् (अगन्म) प्राप्नुयाम (सम्) संगत्य (सूर्यस्य) सर्वप्रेरकस्य परमात्मनः (ज्योतिषा) तेजसा (अगन्म) प्राप्नुयाम ॥
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