अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 10
ऋषिः - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अतिजगती
सूक्तम् - सुरक्षा सूक्त
37
बृह॒स्पति॑र्मा॒ विश्वै॑र्दे॒वैरू॒र्ध्वाया॑ दि॒शः पा॑तु॒ तस्मि॑न्क्रमे॒ तस्मि॑ञ्छ्रये॒ तां पुरं॒ प्रैमि॑। स मा॑ रक्षतु॒ स मा॑ गोपायतु॒ तस्मा॑ आ॒त्मानं॒ परि॑ ददे॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठबृह॒स्पतिः॑। मा॒ । विश्वैः॑। दे॒वैः। ऊ॒र्ध्वायाः॑। दि॒शः। पा॒तु॒। तस्मि॑न्। क्र॒मे॒। तस्मि॑न्। श्र॒ये॒। ताम्। पुर॑म्। प्र। ए॒मि॒। सः। मा॒। र॒क्ष॒तु॒। सः। मा॒। गो॒पा॒य॒तु॒। तस्मै॑। आ॒त्मान॑म्। परि॑। द॒दे॒। स्वाहा॑ ॥१७.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
बृहस्पतिर्मा विश्वैर्देवैरूर्ध्वाया दिशः पातु तस्मिन्क्रमे तस्मिञ्छ्रये तां पुरं प्रैमि। स मा रक्षतु स मा गोपायतु तस्मा आत्मानं परि ददे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठबृहस्पतिः। मा । विश्वैः। देवैः। ऊर्ध्वायाः। दिशः। पातु। तस्मिन्। क्रमे। तस्मिन्। श्रये। ताम्। पुरम्। प्र। एमि। सः। मा। रक्षतु। सः। मा। गोपायतु। तस्मै। आत्मानम्। परि। ददे। स्वाहा ॥१७.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
रक्षा करने का उपदेश।
पदार्थ
(बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी वेदवाणी का रक्षक परमात्मा] (विश्वैः) सब (देवैः) उत्तम गुणों के साथ (मा) मुझे (ऊर्ध्वायाः) ऊपरवाली (दिशः) दिशा से (पातु) बचावे, (तस्मिन्) उसमें [उस परमेश्वर के विश्वास में] (क्रमे) मैं पद बढ़ाता हूँ, (तस्मिन्) उसमें (श्रये) आश्रय लेता हूँ, (ताम्) उस (पुरम्) अग्रगामिनी शक्ति [वा दुर्गरूप परमेश्वर] को (प्र) अच्छे प्रकार (एमि) प्राप्त होता हूँ। (सः) वह [ज्ञानस्वरूप परमेश्वर] (मा) मुझे (रक्षतु) बचावे, (सः) वह (मा) मुझे (गोपायतु) पाले, (तस्मै) उसको (आत्मानम्) अपना आत्मा [मन-सहित देह और जीव] (स्वाहा) सुन्दर वाणी [दृढ़ प्रतिज्ञा] के साथ (परि ददे) मैं सौंपता हूँ ॥१०॥
भावार्थ
मन्त्र १ के समान है ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाण्या रक्षकः परमात्मा (विश्वैः) सर्वैः (देवैः) श्रेष्ठगुणैः सह (ऊर्ध्वायाः) उपरिस्थितायाः। शिष्टं पूर्ववत् ॥
विषय
सब देवों के साथ 'बृहस्पति' प्रभु ऊर्ध्वा दिक् में
पदार्थ
१. (बृहस्पतिः) [ब्रह्मणस्पतिः] = सब ज्ञानों के स्वामी (विश्वैर्देवैः) = सब दिव्य गुणों के साथ (मा) = मुझे (कायाः दिश:) = ऊर्ध्वा दिक् से (पातु) = रक्षित करें। २. (तस्मिन् क्रमे) = इन बृहस्पति प्रभु में ही मैं गति कसैं। शेष पूर्ववत् ।
भावार्थ
मैं कादिक में मेरे रक्षण के लिए सब दिव्यगुणों के साथ स्थित 'बृहस्पति' प्रभु को अनुभव करूँ। इन्हीं में मेरी सम्पूर्ण गति हो।
भाषार्थ
(बृहस्पतिः) महाशक्तियों का भी रक्षक तथा पालक परमेश्वर (विश्वैः) सब (देवैः) द्योतमान-प्रकाशमान सूर्य तथा नक्षत्रतारागण आदि के द्वारा (ऊर्ध्वायाः) ऊपर की (दिशः) दिशा से (मा) मेरी (पातु) रक्षा करे। (तस्मिन्)....पूर्ववत्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Protection and Security
Meaning
May Brhaspati, lord supreme of the expansive universe, with all divinities of the natural and human world protect and promote me from the direction above. Therein I advance, therein I rest and find a haven. There only I attain to as my goal. May that guard me. May that save me. To him I surrender life and soul in truth of word and deed.
Translation
May the Lord supreme (Brhaspati) along with all the bounties of Nature, guard me from the upward quarter (i.e., zenith). I step in Him; in Him I take shelter; to that castle do I go. May He defend me; may He protect me. To Him I totally surrender myself. Sváhà.
Translation
Brihaspati, God who is master of all the grand worlds, guard: me with the Vishvedevas from the region above.I walk in Him, I rest in him and J seek this place for refuge (in Him), May He protect me, may He preserve me and I surrender soul to Him. Svaha (i. e.) this is my appreciation.
Translation
May the Great Lord of Vedic learning and all divine beings protect me the quarter of the zenith, through all divine beings, I .... so on.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(बृहस्पतिः) बृहत्या वेदवाण्या रक्षकः परमात्मा (विश्वैः) सर्वैः (देवैः) श्रेष्ठगुणैः सह (ऊर्ध्वायाः) उपरिस्थितायाः। शिष्टं पूर्ववत् ॥
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