अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 8
सूक्त - अथर्वा
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
26
हिर॑ण्यवर्णो अ॒जरः॑ सु॒वीरो॑ ज॒रामृ॑त्युः प्र॒जया॒ सं वि॑शस्व। तद॒ग्निरा॑ह॒ तदु॒ सोम॑ आह॒ बृह॒स्पतिः॑ सवि॒ता तदिन्द्रः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठहिर॑ण्यऽवर्णः। अ॒जरः॑। सु॒ऽवीरः॑। ज॒राऽमृ॑त्युः। प्र॒ऽजया॑। सम्। वि॒श॒स्व॒। तत्। अ॒ग्निः। आ॒ह॒। तत्। ऊं॒ इति॑। सोमः॑। आ॒ह॒। बृह॒स्पतिः॑। स॒वि॒ता। तत्। इन्द्रः॑ ॥२४.८॥
स्वर रहित मन्त्र
हिरण्यवर्णो अजरः सुवीरो जरामृत्युः प्रजया सं विशस्व। तदग्निराह तदु सोम आह बृहस्पतिः सविता तदिन्द्रः ॥
स्वर रहित पद पाठहिरण्यऽवर्णः। अजरः। सुऽवीरः। जराऽमृत्युः। प्रऽजया। सम्। विशस्व। तत्। अग्निः। आह। तत्। ऊं इति। सोमः। आह। बृहस्पतिः। सविता। तत्। इन्द्रः ॥२४.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (1)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे पुरुषार्थी !] (हिरण्यवर्णः) कमनीय वा तेजस्वी रूपवाला, (अजरः) फुरतीला [वा अनिर्बल] (सुवीरः) बड़े वीरोंवाला, (जरामृत्युः) बुढ़ापे [निर्बलता] को मृत्युसमान त्याज्य माननेवाला [महाबलवान्] तू (प्रजया) प्रजा के साथ (सम्) मिलकर (विशस्व) प्रवेश कर। (तत्) इस बात को (अग्निः) अग्नि [समान तेजस्वी पुरुष] (आह) कहता है, (तत् उ) उसको ही (सोमः) सोम [चन्द्रमा समान पोषक], (तत्) उसी को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी विद्याओं का स्वामी], (सविता) सबका प्रेरक, (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी पुरुष] (आह) कहता है ॥८॥
भावार्थ
सब प्रतापी विद्वानों को यह सिद्धान्त मानना चाहिये कि पुरुषार्थी शूर पुरुष से मिलकर प्रजा की उन्नति करें ॥८॥
टिप्पणी
इस मन्त्र का दूसरा आधा आ चुका है-अ०८।५।५। और तीसरा पाद आया है-अ०१६।९।२॥८−(हिरण्यवर्णः) हिरण्यः कमनीयस्तेजोमयो वा वर्णो रूपं यस्व सः (अजरः) ऋच्छेररः। उ०३।१३१। अज गतिक्षेपणयोः-अरप्रत्ययः। गतिशीलः। जरारहितः (सुवीरः) प्रशस्तवीरोपेतः (जरामृत्युः) जरा निर्बलता मृत्युविरहदुःखप्रदा यस्य सः। महाबलवान् (प्रजया) (सम्) समाय (विशस्व) प्रविश (तत्) वचनम् (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी पुरुषः (आह) ब्रवीति (तदु) तदेव (सोमः) चन्द्रवत्पोषकः (बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां स्वामी (सविता) सर्वप्रेरकः (तत्) (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः ॥
इंग्लिश (1)
Subject
Rashtra
Meaning
O man, O Ruler, golden in graces, ever youthful, nobly brave, scorning infirmity and challenging death, mix, merge and live one with the people. So says Agni, the leading light of life. So says Soma, spirit of peace and felicity. So says Brhaspati, the sage of divine knowledge unbound. So says Indra, lord omnipotent. And so says Savita, the spirit of universal refulgence and inspiration for life and living.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
इस मन्त्र का दूसरा आधा आ चुका है-अ०८।५।५। और तीसरा पाद आया है-अ०१६।९।२॥८−(हिरण्यवर्णः) हिरण्यः कमनीयस्तेजोमयो वा वर्णो रूपं यस्व सः (अजरः) ऋच्छेररः। उ०३।१३१। अज गतिक्षेपणयोः-अरप्रत्ययः। गतिशीलः। जरारहितः (सुवीरः) प्रशस्तवीरोपेतः (जरामृत्युः) जरा निर्बलता मृत्युविरहदुःखप्रदा यस्य सः। महाबलवान् (प्रजया) (सम्) समाय (विशस्व) प्रविश (तत्) वचनम् (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी पुरुषः (आह) ब्रवीति (तदु) तदेव (सोमः) चन्द्रवत्पोषकः (बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां स्वामी (सविता) सर्वप्रेरकः (तत्) (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः ॥
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