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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 24/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - राष्ट्रसूक्त
    56

    हिर॑ण्यवर्णो अ॒जरः॑ सु॒वीरो॑ ज॒रामृ॑त्युः प्र॒जया॒ सं वि॑शस्व। तद॒ग्निरा॑ह॒ तदु॒ सोम॑ आह॒ बृह॒स्पतिः॑ सवि॒ता तदिन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हिर॑ण्यऽवर्णः। अ॒जरः॑। सु॒ऽवीरः॑। ज॒राऽमृ॑त्युः। प्र॒ऽजया॑। सम्। वि॒श॒स्व॒। तत्। अ॒ग्निः। आ॒ह॒। तत्। ऊं॒ इति॑। सोमः॑। आ॒ह॒। बृह॒स्पतिः॑। स॒वि॒ता। तत्। इन्द्रः॑ ॥२४.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हिरण्यवर्णो अजरः सुवीरो जरामृत्युः प्रजया सं विशस्व। तदग्निराह तदु सोम आह बृहस्पतिः सविता तदिन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हिरण्यऽवर्णः। अजरः। सुऽवीरः। जराऽमृत्युः। प्रऽजया। सम्। विशस्व। तत्। अग्निः। आह। तत्। ऊं इति। सोमः। आह। बृहस्पतिः। सविता। तत्। इन्द्रः ॥२४.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 24; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे पुरुषार्थी !] (हिरण्यवर्णः) कमनीय वा तेजस्वी रूपवाला, (अजरः) फुरतीला [वा अनिर्बल] (सुवीरः) बड़े वीरोंवाला, (जरामृत्युः) बुढ़ापे [निर्बलता] को मृत्युसमान त्याज्य माननेवाला [महाबलवान्] तू (प्रजया) प्रजा के साथ (सम्) मिलकर (विशस्व) प्रवेश कर। (तत्) इस बात को (अग्निः) अग्नि [समान तेजस्वी पुरुष] (आह) कहता है, (तत् उ) उसको ही (सोमः) सोम [चन्द्रमा समान पोषक], (तत्) उसी को (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़ी विद्याओं का स्वामी], (सविता) सबका प्रेरक, (इन्द्रः) इन्द्र [महाप्रतापी पुरुष] (आह) कहता है ॥८॥

    भावार्थ

    सब प्रतापी विद्वानों को यह सिद्धान्त मानना चाहिये कि पुरुषार्थी शूर पुरुष से मिलकर प्रजा की उन्नति करें ॥८॥

    टिप्पणी

    इस मन्त्र का दूसरा आधा आ चुका है-अ०८।५।५। और तीसरा पाद आया है-अ०१६।९।२॥८−(हिरण्यवर्णः) हिरण्यः कमनीयस्तेजोमयो वा वर्णो रूपं यस्व सः (अजरः) ऋच्छेररः। उ०३।१३१। अज गतिक्षेपणयोः-अरप्रत्ययः। गतिशीलः। जरारहितः (सुवीरः) प्रशस्तवीरोपेतः (जरामृत्युः) जरा निर्बलता मृत्युविरहदुःखप्रदा यस्य सः। महाबलवान् (प्रजया) (सम्) समाय (विशस्व) प्रविश (तत्) वचनम् (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी पुरुषः (आह) ब्रवीति (तदु) तदेव (सोमः) चन्द्रवत्पोषकः (बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां स्वामी (सविता) सर्वप्रेरकः (तत्) (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः ॥

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    विषय

    'हिरण्यवर्ण-अजर-सुवीर'

    पदार्थ

    १. 'प्रभु जीव को क्या कहते हैं?' इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं कि (हिरण्यवर्ण:) = ज्योतिर्मय वर्णवाला-तेजस्वी-स्वर्ण के समान चमकता हुआ [तसकाञ्चनवर्णाभम्], (अजर:) = जिसकी शक्तियाँ जीर्ण नहीं हो गई, (सुवीर:) = उत्तम बौर सन्तानोंवाला, (जरामृत्यु:) = पूर्ण जरावस्था में मृत्यु को प्राप्त होनेवाला-युवावस्था में ही न चला जानेवाला तू (प्रजया संविशस्व) = प्रजा के साथ घर में निवास करनेवाला हो। २. (अग्नि:) = अग्रणी प्रभु (तत् आह) = उस बात को ही कहते हैं (उ) = और (सोमः) = सौम्य [शान्त] प्रभु (तत् आह) = उस बात को कहते हैं। (बृहस्पति:) = ज्ञान के स्वामी प्रभु, (सविता) = सर्वोत्पादक-सर्वप्रेरक प्रभु, (इन्द्रः) = सर्वशक्तिमान्, परमैश्वर्यशाली प्रभु (तत्) = उस बात को ही कहते हैं। अग्नि आदि नामों से प्रभु का स्मरण कराना इसलिए ही है कि हमें यह समझ में आ जाए कि 'हिरण्यवर्ण, अजर, सुवीरः' बनने का प्रकार यही है कि हम भी आगे बढ़ने की भावनावाले बनें [अग्नि], सौम्य [शान्त] स्वभाव हों, ज्ञान की रुचिवाले हों [बृहस्पति], निर्माणात्मक कार्यों में प्रवृत्त हों [सविता] और जितेन्द्रिय बनें [इन्द्र]।

    भावार्थ

    हमारा आदर्श यही हो कि हम 'हिरण्यवर्ण, अजर व सुवीर' बनें। प्रभु के अग्नि आदि नामों से उस-उस प्रेरणा के लेनेवाले बनें। अग्नि आदि नामों से प्रेरणा लेकर ठीक मार्ग पर चलनेवाला यह व्यक्ति 'गोपथ' कहलाता है। गौएँ-वेदवाणी के मार्ग पर चलनेवाला। यह गोपथ ही अगले सूक्त का ऋषि है -

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    भाषार्थ

    हे सम्राट्! (हिरण्यवर्णः) सुवर्ण के समान तेजस्वीरूप वाले, (अजरः) जरारहित, (सुवीरः) उत्तमवीर, तथा (जरामृत्युः) बुढ़ापे पर मृत्युवाले आप (प्रजया) प्रजाजनों के साथ (संविशस्व) मिल कर बैठिये। (तद्) यह बात (अग्निः) राष्ट्र के अग्रणी अर्थात् सर्वाग्रनेता प्रधानमन्त्री ने (आह) कही है, (तद् उ) उसे ही (सोमः) सेना के प्रेरक ने, तथा (बृहस्पतिः) महती सेना के पति ने भी (आह) कहा है, (सविता) ऐश्वर्यों के स्वामी वित्तमन्त्री तथा (इन्द्रः) वाणिज्य-व्यापार के अध्यक्ष ने भी (तद्) उस बात को कहा है।

    टिप्पणी

    [अग्निः= अग्रणीर्भवति (निरु० ७.४.१४)। सोमः, बृहस्पतिः=देखो (१९.१३.९)। सविता=षु ऐश्वर्ये। इन्द्रः=वणिक्। यथा—“इन्द्रमहं वणिजं चोदयामि स न ऐतु पुरएता नो अस्तु” (अथर्व० ३.१५.१)। सं विशस्त्र=सं विष्टः (Seated to gather; आप्टे)।]

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    विषय

    राजा के सहायक रक्षक और विशेष वस्त्र।

    भावार्थ

    (हिरण्यवर्णः) हित और रमणीय वर्ण वाला, सुन्दर, कान्तिमान् अथवा हिरण्य=सुवर्ण के समान तेजस्वी अथवा सुवर्ण, ऐश्वर्य का सदा वरण करने वाले या सुवर्ण के समान सभी के द्वारा वरण करने योग्य श्रेष्ठ, (अजरः) जरा रहित, (सुवीरः) उत्तम वीर्यवान् या उत्तम वीर पुत्रों से युक्त या उत्तम वीर भटों से युक्त और स्वयं उत्तम वीर और (जरामृत्यु:) बुढ़ापे के अनन्तर ही मृत्यु अर्थात् शरीर को त्याग करने वाला अकाल मृत्यु से रहित होकर (प्रजया) प्रजा के साथ (सं विशस्व) पृथ्वी पर बस, नगर बसा कर रह। (अग्निः) ज्ञानी, परमेश्वर अथवा ज्ञानवान् पुरुषों का (तत्) यही (आह) उपदेश है। (सोमः तत् आह) सबके प्रेरक, शम दम आदि सम्पन्न योगिजन का यही आदेश है। (बृहस्पतिः) बृहती, वेदवाणी का पालक विद्वान् अथवा बृहती पृथ्वी के स्वामी महाराज (सविता) सबके प्रेरक और उत्पादक ओर (इन्द्रः) ऐश्वर्यवान् राजा या परमेश्वर भी (तत् आह) उसी बात का उपदेश या आज्ञा करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ताः देवता। १-३ अनुष्टुप, ४-६, ८ त्रिष्टुप, ७ त्रिपदाआर्षीगायत्री।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Rashtra

    Meaning

    O man, O Ruler, golden in graces, ever youthful, nobly brave, scorning infirmity and challenging death, mix, merge and live one with the people. So says Agni, the leading light of life. So says Soma, spirit of peace and felicity. So says Brhaspati, the sage of divine knowledge unbound. So says Indra, lord omnipotent. And so says Savita, the spirit of universal refulgence and inspiration for life and living.

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    Translation

    Lustrous like gold, unaging, blessed with good sons, may you live with your progeny to die in ripe old age. This is what the adorable Lord has said, the blissful Lord has said, the Lord supreme, the impeller Lord, and the resplendent Lord has said.

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    Translation

    O King, you shining like gold, free from oldness, blessed with heroes and resisting death to come after full old age dwell with subject. This Says Agni, the teacher refulgent with knowledge, this says soma, the man giving inspiration, this says Brihaspati, the master of vedic knowledge, this Says savitar, the All creating God and this says Indrah, the mighty master of Army.

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    Translation

    O king, being charming and radiant like gold and keeping away old age, through well regulated life, and accompanied by brave warriors, get well enthralled along with your subjects till far advanced old age. This is what has been ordained by God, the Effulgent, the Peace-showering, the Lord of the Vedas, the Prime-mover of all creation and the Lord of fortunes.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    इस मन्त्र का दूसरा आधा आ चुका है-अ०८।५।५। और तीसरा पाद आया है-अ०१६।९।२॥८−(हिरण्यवर्णः) हिरण्यः कमनीयस्तेजोमयो वा वर्णो रूपं यस्व सः (अजरः) ऋच्छेररः। उ०३।१३१। अज गतिक्षेपणयोः-अरप्रत्ययः। गतिशीलः। जरारहितः (सुवीरः) प्रशस्तवीरोपेतः (जरामृत्युः) जरा निर्बलता मृत्युविरहदुःखप्रदा यस्य सः। महाबलवान् (प्रजया) (सम्) समाय (विशस्व) प्रविश (तत्) वचनम् (अग्निः) अग्निवत्तेजस्वी पुरुषः (आह) ब्रवीति (तदु) तदेव (सोमः) चन्द्रवत्पोषकः (बृहस्पतिः) बृहतीनां विद्यानां स्वामी (सविता) सर्वप्रेरकः (तत्) (इन्द्रः) महाप्रतापी पुरुषः ॥

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