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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 30 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 30/ मन्त्र 5
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त
    42

    यत्स॑मु॒द्रो अ॒भ्यक्र॑न्दत्प॒र्जन्यो॑ वि॒द्युता॑ स॒ह। ततो॑ हिर॒ण्ययो॑ बि॒न्दुस्ततो॑ द॒र्भो अ॑जायत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। स॒मु॒द्रः। अ॒भि॒ऽक्र॑न्दत्। प॒र्जन्यः॑। वि॒ऽद्युता॑। स॒ह। ततः॑। हि॒र॒ण्ययः॑। बि॒न्दुः। ततः॑। द॒र्भः। अ॒जा॒य॒त॒ ॥३०.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्समुद्रो अभ्यक्रन्दत्पर्जन्यो विद्युता सह। ततो हिरण्ययो बिन्दुस्ततो दर्भो अजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। समुद्रः। अभिऽक्रन्दत्। पर्जन्यः। विऽद्युता। सह। ततः। हिरण्ययः। बिन्दुः। ततः। दर्भः। अजायत ॥३०.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 30; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जिस [ईश्वरसामर्थ्य] से (समुद्रः) अन्तरिक्ष और (पर्जन्यः) बादल (विद्युता सह) बिजुली के साथ (अभ्यक्रन्दत्) सब ओर गरजा है। (ततः) उसी [सामर्थ्य] से (हिरण्ययः) झलकता हुआ (बिन्दुः) बूँद [शुद्ध मेह का जल] और (ततः) उसी [सामर्थ्य] से (दर्भः) दर्भ [शत्रुविदारक सेनापति] (अजायत) प्रकट हुआ है ॥५॥

    भावार्थ

    जैसे परमेश्वर के सामर्थ्य से आकाश में बिजुली और बादल गरज कर वृष्टि करके उपकार करते हैं, वैसे ही उसी जगदीश्वर के नियम से शूर सेनापति उत्तम शिक्षा और उत्तम संस्कारों के द्वारा संसार में उपकार करके यशस्वी होता है ॥५॥

    टिप्पणी

    ५−(यत्) यस्मात्परमेश्वरसामर्थ्यात् (समुद्रः) अन्तरिक्षम् (अभ्यक्रन्दत्) अभितः स्तननं गर्जनमकार्षीत् (पर्जन्यः) मेघः (विद्युता) अशन्या (सह) (ततः) तस्मात् सामर्थ्यात् (हिरण्ययः) तेजोमयः (बिन्दुः) वृष्टिबिन्दुः (ततः) तस्मात् सामर्थ्यात् (दर्भः) शत्रुविदारकः सेनापतिः (अजायत) प्रादुरभवत् ॥

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    विषय

    समुद्रः-पर्जन्य:

    पदार्थ

    १. (यत्) = जब (समुन्द्रः) = [स-मुद्] मन:प्रसाद से युक्त यह (पर्जन्य:) = [परां तृप्ति जनयति] अपने अन्दर परापृप्ति को अनुभव करनेवाला आत्मतृप्त पुरुष (विद्युता सह) = विशिष्ट युति के साथ होता है और (अभ्यक्रन्दत्) = प्रभु का लक्ष्य करके आह्वान करता है-प्रभु का आराधन करता है, (तत:) = तभी यह (बिन्दुः) = रेत:कण (हिरण्यय:) = इसके लिए हितरमणीय व ज्योतिर्मय होता है। २. शरीर में वीर्यरक्षण के लिए साधन हैं [१] मन को प्रसन्न रखना [समुद्रः], [२] प्रभु का आराधन [अभ्यक्रन्दत्], [३] अपने अन्दर तृप्ति अनुभव करना-विषयों की ओर न जाना [पर्जन्यः], [४] ज्ञानप्रधान बनना [विद्युता सह]। (ततः) = ऐसा होने पर यह वीर्य (दर्भ:) = अजायत शत्रुओं का हिंसन करनेवाला हो जाता है। इससे रोग भयभीत हो उठते हैं [दुभ-to be afraid of] |

    भावार्थ

    मन:प्रसाद से युक्त होकर हम प्रभु का आह्वान करें। यह प्रभु-स्मरण हमारे वीर्य का रक्षण करेगा और सुरक्षित वीर्य हमारे शत्रुओं को भयभीत करनेवाला होगा। प्रभु-स्मरणपूर्वक अपने जीवन में वीर्य का सम्पादन करनेवाला 'सविता' अगले सूक्त का ऋषि है। यह वीर्यशक्ति को 'औदुम्बरमणि' के रूप में स्मरण करता है 'सोऽब्रवीत् अयं वाव स मा सर्वस्मात् पाप्मन् उद् अभाजीत् तस्मात् उदुम्भरः। उदुम्बर इति आचक्षते परोक्षम् शत०७.४.१.२२' शरीर में सुरक्षित वीर्य सब पापों व रोगों से बचाता है -

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    भाषार्थ

    (यत्) जो (समुद्रः) समुद्र (अभ्यक्रन्दत्) गर्जा, और (विद्युता सह) विद्युत् के साथ (पर्जन्यः) मेघ गर्जा, (ततः) तत्पश्चात् (हिरण्ययः बिन्दुः) हिरण्यसदृश चमकीला या बहुमूल्य वीर्य-बिन्दु (अजायत) पैदा हुआ, और (ततः) उस बिन्दु से (दर्भः) शत्रुविदारक सेनापति पैदा हुआ है।

    टिप्पणी

    [अभ्यक्रन्दत्= वर्षा ऋतु में समुद्र में लहरों द्वारा गर्जनाएँ होती हैं। तत्पश्चात् मेघों का निर्माण होता है, और विद्युत् के साथ गर्जते मेघों द्वारा वर्षा, तत्पश्चात् ओषधियाँ, अन्न और रेतस् (=वीर्य) तथा रेतस् से पुरुष उत्पन्न होता है। इस प्रकार जल का सम्बन्ध वीर्य और पुरुष के साथ है। तथा “पञ्चम्यामाहुतौ आपः पुरुषवचसो भवन्ति” (छान्दोग्य० ५.९.१) द्वारा भी जलों का सम्बन्ध पुरुषोत्पति के साथ दर्शाया है। हिरण्यय=हिरण्मय। हिरण्य= semen, Virile (आप्टे) अर्थात् पुरुष का वीर्य।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Darbha Mani

    Meaning

    When the ocean roared and the cloud thundered with lightning, then was born the golden drop, invincible vitality, and thence arose the Darbha.

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    Translation

    What time the ocean roared and the cloud thundered with the lightning, therefrom (came) the golden drop, and from that darbha was born.

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    Translation

    When the cloud pouring down water on the earth thunders with lightning the luminous drop comes from it and from this the Darbha springs up.

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    Translation

    The brilliant drop of water falls from the very cloud, which rushes forth, very high in the sky and which thunders with lightning. From that very drop is born the darbha-grass.

    Footnote

    The very root of the birth of darbha from the natural electric power from the clouds must have some aura bearing with its powers of radiation, which can usefully be employed in a weapon of protection as well as destruction. Let us make serious efforts to investigate it.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५−(यत्) यस्मात्परमेश्वरसामर्थ्यात् (समुद्रः) अन्तरिक्षम् (अभ्यक्रन्दत्) अभितः स्तननं गर्जनमकार्षीत् (पर्जन्यः) मेघः (विद्युता) अशन्या (सह) (ततः) तस्मात् सामर्थ्यात् (हिरण्ययः) तेजोमयः (बिन्दुः) वृष्टिबिन्दुः (ततः) तस्मात् सामर्थ्यात् (दर्भः) शत्रुविदारकः सेनापतिः (अजायत) प्रादुरभवत् ॥

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