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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 43 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 43/ मन्त्र 7
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः, ब्रह्म छन्दः - त्र्यवसाना शङ्कुमती पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
    19

    यत्र॑ ब्रह्म॒विदो॒ यान्ति॑ दी॒क्षया॒ तप॑सा स॒ह। आपो॑ मा॒ तत्र॑ नयत्व॒मृतं॒ मोप॑ तिष्ठतु। अ॒द्भ्यः स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑। ब्र॒ह्म॒ऽविदः॑। यान्ति॑। दी॒क्षया॑। तप॑सा। स॒ह। आपः॑। मा॒। तत्र॑। न॒य॒तु॒। अ॒मृत॑म्। मा॒ । उप॑। ति॒ष्ठ॒तु॒ ॥ अ॒त्ऽभ्यः। स्वाहा॑ ॥४३.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्र ब्रह्मविदो यान्ति दीक्षया तपसा सह। आपो मा तत्र नयत्वमृतं मोप तिष्ठतु। अद्भ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र। ब्रह्मऽविदः। यान्ति। दीक्षया। तपसा। सह। आपः। मा। तत्र। नयतु। अमृतम्। मा । उप। तिष्ठतु ॥ अत्ऽभ्यः। स्वाहा ॥४३.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 43; मन्त्र » 7
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    हिन्दी (1)

    विषय

    ब्रह्म की प्राप्ति का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्र) जिस [सुख] में (ब्रह्मविदः) ब्रह्मज्ञानी...... [मन्त्र १]। (आपः) आप [जल के समान व्यापक परमात्मा] (मा) मुझे (तत्र) वहाँ (नयतु=नयन्तु) पहुँचावे, (अमृतम्) अमृत [अमरपन, दुःखरहित सुख] (मा) मुझको (उप तिष्ठतु) प्राप्त होवे। (अद्भ्यः) आप [व्यापक परमात्मा] के लिये (स्वाहा) स्वाहा [सुन्दर वाणी] होवे ॥७॥

    भावार्थ

    मन्त्र १ के समान है ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(आपः) जलानीव व्यापकः परमात्मा (नयतु) नयन्तु (अमृतम्) अमरणम्। दुःखरहितं सुखम् (मा) माम् (उपतिष्ठतु) प्राप्नोतु (अद्भ्यः) सर्वव्यापकाय परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Brahma Supreme

    Meaning

    Where men dedicated to Brahma go, with Diksha and Tapas, there may Apah, dynamics of human and natural action, lead me. May Apah, enlightened people, bless me with the immortal nectar of life. Homage to the dynamics of life and living and to the fluent forces of life in truth of word and deed.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(आपः) जलानीव व्यापकः परमात्मा (नयतु) नयन्तु (अमृतम्) अमरणम्। दुःखरहितं सुखम् (मा) माम् (उपतिष्ठतु) प्राप्नोतु (अद्भ्यः) सर्वव्यापकाय परमेश्वराय। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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