अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 48/ मन्त्र 2
ऋषिः - गोपथः
देवता - रात्रिः
छन्दः - त्रिपदाविराडनुष्टुप्
सूक्तम् - रात्रि सूक्त
47
रात्रि॒ मात॑रु॒षसे॑ नः॒ परि॑ देहि। उ॒षो नो॒ अह्ने॒ परि॑ ददा॒त्वह॒स्तुभ्यं॑ विभावरि ॥
स्वर सहित पद पाठरात्रि॑। मातः॑। उ॒षसे॑। नः॒। परि॑। दे॒हि॒। उ॒षाः। नः॒। अह्ने॑। परि॑। द॒दा॒तु॒। अहः॑। तुभ्य॑म्। वि॒भा॒व॒रि॒ ॥४८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
रात्रि मातरुषसे नः परि देहि। उषो नो अह्ने परि ददात्वहस्तुभ्यं विभावरि ॥
स्वर रहित पद पाठरात्रि। मातः। उषसे। नः। परि। देहि। उषाः। नः। अह्ने। परि। ददातु। अहः। तुभ्यम्। विभावरि ॥४८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
रात्रि में रक्षा का उपदेश।
पदार्थ
(रात्रि) रात्रि (मातः) माता ! तू (उषसे) उषा [प्रभात वेला] को (नः) हमें (परि देहि) सौंप। (उषाः) उषा (नः) हमें (अह्ने) दिन को, और (अहः) दिन (तुभ्यम्) तुझ को, (विभावरि) हे चमकवाली ! (परि ददातु) सौंपे ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य तारों से शोभायमान रात्रि बीतने पर प्रातःकाल उठें और दिन के कर्तव्य करके रात्रि में रात्रि के कर्तव्य करें ॥२॥
टिप्पणी
यह मन्त्र कुछ भेद से आगे है-५०।७ ॥ २−(रात्रि) (मातः) हे मातृतुल्ये (उषसे) प्रभातवेलायै (नः) अस्मान् (परि देहि) समर्पय (उषाः) प्रभातवेला (नः) अस्मान् (अह्ने) दिनाय (परि ददातु) समर्पयतु (अहः) दिनम् (तुभ्यम्) (विभावरि) वि+भा दीप्तौ-क्वनिप्। वनो र च। पा० ४।१।७। ङीब्रेफौ। हे दीप्तिमति ॥
भाषार्थ
(मातः) माता के सदृश सुख प्रदायिनी (रात्रि) हे रात्रि! (उषसे) उषा के प्रति (नः) हमें (परि देहि) सुरक्षित रूप में तू सौंप। (उषाः) उषा (नः) हमें (अह्ने) दिन के प्रति (परि ददातु) सौंपे। (विभावरि) हे चमकीली रात्रि! (अहः) दिन (तुभ्यम्) तेरे प्रति पुनः हमें सौंपे।
टिप्पणी
[विभावरि= चाँद, तारागणों के कारण चमकीली रात्री]
विषय
'रात्रि:-उषा-दिन' और फिर रात्रि
पदार्थ
१. हे (मातः रात्रि) = मातृवत् परिपालन करनेवाली रात्रिदेवते! तू (नः) = हमें उषसे-अपने अनन्तर आनेवाले उषाकाल के लिए (परि देहि) = दे। रात्रि हमारा रक्षण करती हुई अपनी समाप्ति पर हमें उषाकाल के लिए सौंपे। (उषा) = उषाकाल (अह्ने) = सूर्य के प्रकाशवाले 'प्रात: संगव, मध्याहू, अपराङ्ग, सायाहू' रूप दिन के लिए (परिददातु) = दे, अर्थात् दिवस के प्रारम्भ होने तक उषा हमारा रक्षण करे और अपनी समाप्ति पर हमारे रक्षण का भार दिन को सौंप जाए। २. हे (विभावरि) = तारों की दीप्तिवाली रात्रि! यह (अहः) = दिन अपनी समाप्ति पर (तुभ्यम्) = हमें तुम्हारे लिए सौंपकर आये। इसप्रकार आवृत्त होते हुए दिन-रात हमारा रक्षण करें।
भावार्थ
रात्रि हमें उषा के लिए, उषा दिन के लिए और दिन पुनः रात्रि के लिए सौंपे। इसप्रकार आवर्तमान यह कालचक्र हमारा रक्षण करनेवाला हो।
विषय
राष्ट्रशक्ति रूप ‘रात्रि’।
भावार्थ
हे (मातः) माता के समान राष्ट्र का पालन करने वाली, (रात्रि) प्रजा को सुख देने वाली ! तू (नः) हमको (उषसे) उषा को (परिदेहि) सौंप दे। अर्थात् हम सुख से रात में सोकर स्वस्थ रूप में प्रातः काल उठे। राजा के पक्ष में—हे रात्रि राजशक्ते ! तू (नः उषसे) हमें उषा अर्थात् दुष्टों का दहन करने वाली दमनकारिणी (पोलिस) के अधीन करदे या (उषसे) ज्ञानमयी, प्रकाशमयी विद्वत्-सभा के अधीन करदे। और जिस प्रकार उषा समस्त जीवों को दिन के अधीन कर देता है उसी प्रकार (उषा) वह पूर्वोक्त उषा (नः) हमें (अह्ने) न दण्ड देने योग्य, आदरणीय ब्राह्मणगण के अधीन (परिददातु) सौंप दे। और हे (विभावरि) विभावरि ! विशेष रूप से तेजस्विनि ! हे पूर्वोक रात्रि ! (अहः) दिन जिस प्रकार जीवों को रात्रि के अधीन कर देता है उसी प्रकार वह ब्राह्मणगण फिर (तुभ्यम्) तुझ पूर्वोक्त रात्रि अर्थात् राजशक्तियों व दुष्टों को दमन करने वाली शक्ति के अधीन सौंप दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गोपथ ऋषिः। रात्रिर्देवता। १ त्रिपदा आर्षी गायत्री। २ त्रिपदा विराड् अनुष्टुप। ३ बृहतीगर्भा अनुष्टुप्। ५ पथ्यापंक्तिः। शेषाः अनुष्टुभः। षडृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Ratri
Meaning
Mother night, deliver us back to the dawn in good health and safety. Let the dawn deliver us to the day and, O splendid Night, may the day deliver us to you. (Let the holy circle of life thus continue.)
Translation
O mother night, may you hand us over to the dawn; may the dawn hand us over to the day; may the day hand us over to you, O glowing one.
Translation
Let this mother night deliver us to dawn, let dawn deliver us to day and let day again hand us over the splendid night.
Translation
O bright, comfortable mother, night entrust us to the dawn. Let the dawn entrust us to the day and the day again to thee.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र कुछ भेद से आगे है-५०।७ ॥ २−(रात्रि) (मातः) हे मातृतुल्ये (उषसे) प्रभातवेलायै (नः) अस्मान् (परि देहि) समर्पय (उषाः) प्रभातवेला (नः) अस्मान् (अह्ने) दिनाय (परि ददातु) समर्पयतु (अहः) दिनम् (तुभ्यम्) (विभावरि) वि+भा दीप्तौ-क्वनिप्। वनो र च। पा० ४।१।७। ङीब्रेफौ। हे दीप्तिमति ॥
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