अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 54/ मन्त्र 1
का॒लादापः॒ सम॑भवन्का॒लाद्ब्रह्म॒ तपो॒ दिशः॑। का॒लेनोदे॑ति॒ सूर्यः॑ का॒ले नि वि॑शते॒ पुनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठका॒लात्। आपः॑। सम्। अ॒भ॒व॒न्। का॒लात्। ब्रह्म॑। तपः॑। दिशः॑। का॒लेन॑। उत्। ए॒ति॒। सूर्यः॑। का॒ले। नि। वि॒श॒ते॒। पुनः॑ ॥५४.१॥
स्वर रहित मन्त्र
कालादापः समभवन्कालाद्ब्रह्म तपो दिशः। कालेनोदेति सूर्यः काले नि विशते पुनः ॥
स्वर रहित पद पाठकालात्। आपः। सम्। अभवन्। कालात्। ब्रह्म। तपः। दिशः। कालेन। उत्। एति। सूर्यः। काले। नि। विशते। पुनः ॥५४.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
काल की महिमा का उपदेश।
पदार्थ
(कालात्) काल [गिनती करनेवाले समय] से (आपः) प्रजाएँ, (कालात्) काल से (ब्रह्म) वेदज्ञान, (तपः) तप [ब्रह्मचर्यादि नियम] और (दिशः) दिशाएँ (सम् अभवत्) उत्पन्न हुई हैं। (कालेन) काल के साथ (सूर्यः) सूर्य (उत् एति) निकलता है, (काले) काल में (पुनः) फिर (नि विशते) डूब जाता है ॥१॥
भावार्थ
समय के प्रभाव से प्रलय के पीछे परमात्मा सब पदार्थों और नियमों को उत्पन्न करता और प्रलय समय में लय कर देता है, जैसे सूर्य पृथिवी के सन्मुख होने से दिखाई देता और पृथिवी की आड़ में होने से अदृश्य हो जाता है ॥१॥
टिप्पणी
१−(कालात्) सू० ५३। म० १। संख्याकारकात् समयात् (आपः) आप्ताः प्रजाः (सम् अभवन्) अजायन्त (कालात्) (ब्रह्म) वेदज्ञानम् (तपः) ब्रह्मचर्यादिव्रतम् (दिशः) प्राच्याद्याः (कालेन) (उदेति) उदयं गच्छति (सूर्यः) गमनशील आदित्यः (काले) (नि) नीचैः (विशते) प्रविश्यते। विलीयते (पुनः) सायङ्काले ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Kala
Meaning
From Kala, in course of time, arose the ‘waters’, the oceans of particles. From Kala arose Brahma, divine Resolution to create, and the quarters of space. By Kala and with time rises the sun and again sets back into Kala.
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