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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 60/ मन्त्र 2
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - मन्त्रोक्ताः, वाक् छन्दः - ककुम्मतीपुरउष्णिक् सूक्तम् - अङ्ग सूक्त
    28

    ऊ॒र्वोरोजो॒ जङ्घ॑योर्ज॒वः पाद॑योः। प्र॑ति॒ष्ठा अरि॑ष्टानि मे॒ सर्वा॒त्मानि॑भृष्टः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऊ॒र्वोः। ओजः॑। जङ्घ॑योः। ज॒वः। पाद॑योः। प्र॒ति॒ऽस्था। अरि॑ष्टानि। मे॒। सर्वा॑। आ॒त्मा। अनि॑ऽभृष्टः ॥६०.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऊर्वोरोजो जङ्घयोर्जवः पादयोः। प्रतिष्ठा अरिष्टानि मे सर्वात्मानिभृष्टः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऊर्वोः। ओजः। जङ्घयोः। जवः। पादयोः। प्रतिऽस्था। अरिष्टानि। मे। सर्वा। आत्मा। अनिऽभृष्टः ॥६०.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 60; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (1)

    विषय

    शरीर के स्वास्थ्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (ऊर्वोः) दोनों जङ्घाओं में (ओजः) सामर्थ्य (जङ्घयोः) दोनों घुटनों [पिण्डलियों वा नीचे की जाँघों] में (जवः) वेग, (पादयोः) दोनों पैरों में (प्रतिष्ठा) जमाव [दृढ़ता], (मे) मेरे (सर्वा) सब [अङ्ग] (अरिष्टानि) निर्दोष और (आत्मा) आत्मा (अनिभृष्टः) बिना नीचे गिरा हुआ [होवे] ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को उचित आहार-विहार, व्यायाम, योगाभ्यास आदि से अपने शरीर और आत्मा दृढ़ रखने चाहिएँ ॥१, २॥

    टिप्पणी

    मन्त्र २ में (प्रतिष्ठा अरिष्टानि) पदों में सन्धि न होने से जाना जाता है कि (पादयोः) पर अवसान होने के स्थान में (प्रतिष्ठा) पर अवसान होना चाहिये ॥ २−(ऊर्वोः) जानूपरिभागयोः (ओजः) सामर्थ्यम् (जङ्घयोः) गुल्फजान्वोरन्तरालयोः (जवः) वेगः (पादयोः) चरणयोः (प्रतिष्ठा) स्थिरता। दृढता (अरिष्टानि) निर्दोषाणि (मे) मम (सर्वा) सर्वाणि अङ्गानि (आत्मा) जीवात्मा (अनिभृष्टः) भृश अधःपतने-क्त। अनधोगतः ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Physical Health

    Meaning

    Let there be virility in my thighs, smartness and speed in the legs, balance and firmness in my personality, let all my body parts and systems be unhurt and healthy, and may my soul be ever pure, unsullied and unfallen.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र २ में (प्रतिष्ठा अरिष्टानि) पदों में सन्धि न होने से जाना जाता है कि (पादयोः) पर अवसान होने के स्थान में (प्रतिष्ठा) पर अवसान होना चाहिये ॥ २−(ऊर्वोः) जानूपरिभागयोः (ओजः) सामर्थ्यम् (जङ्घयोः) गुल्फजान्वोरन्तरालयोः (जवः) वेगः (पादयोः) चरणयोः (प्रतिष्ठा) स्थिरता। दृढता (अरिष्टानि) निर्दोषाणि (मे) मम (सर्वा) सर्वाणि अङ्गानि (आत्मा) जीवात्मा (अनिभृष्टः) भृश अधःपतने-क्त। अनधोगतः ॥

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