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अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 14/ मन्त्र 5
    ऋषिः - चातनः देवता - शालाग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दस्युनाशन सूक्त
    57

    यदि॒ स्थ क्षे॑त्रि॒याणां॒ यदि॑ वा॒ पुरु॑षेषिताः। यदि॒ स्थ दस्यु॑भ्यो जा॒ता नश्य॑ते॒तः स॒दान्वाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यदि॑ । स्थ । क्षे॒त्रि॒याणा॑म् । यदि॑ । वा॒ । पुरु॑षऽइषिता: । यदि॑ । स्थ । दस्यु॑ऽभ्य: । जा॒ता: । नश्य॑त । इ॒त: । स॒दान्वा॑: ॥१४.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदि स्थ क्षेत्रियाणां यदि वा पुरुषेषिताः। यदि स्थ दस्युभ्यो जाता नश्यतेतः सदान्वाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदि । स्थ । क्षेत्रियाणाम् । यदि । वा । पुरुषऽइषिता: । यदि । स्थ । दस्युऽभ्य: । जाता: । नश्यत । इत: । सदान्वा: ॥१४.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 14; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    निर्धनता मनुष्यों को प्रयत्न से नष्ट करनी चाहिये।

    पदार्थ

    [हे पीड़ाओं !] (यदि) यदि (क्षेत्रियाणाम्) शरीरसम्बन्धी, वा वंशसम्बन्धी रोगों की (वा) अथवा (यदि) यदि (पुरुषेषिताः) अन्य पुरुषों की प्रेषित (स्थ) हो, (यदि) जो (दस्युभ्यः) चोर आदिकों से (जाताः) प्रकट हुयी (स्थ) हो, वह तुम (सदान्वाः) हे सदा चिल्लानेवाली, अथवा, दानवों के साथ रहनेवाली [पीड़ाओ !] (इतः) यहाँ से (नश्यत) हट जाओ ॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को अपने कुपथ्यसेवन, ब्रह्मचर्य आदि के खण्डन से अथवा माता-पिता आदि के कुसंस्कार से, शारीरिक वा अध्यात्मिक और शत्रु चोर आदि के अन्यथा व्यवहार से आधिभौतिक पीड़ाएँ प्राप्त होती हैं। मनुष्य पुरुषार्थ से सब प्रकार के क्लेशों का नाश करके आनन्द से रहें ॥५॥

    टिप्पणी

    ५–यदि। पक्षान्तरम्। चेत्। स्थ। यूयं भवथ। क्षेत्रियाणाम्। अ० २।८।१। स्वकीये देहे वंशे वा जातानां रोगाणाम्। पुरुषेषिताः। पुरः कुषन्। उ० ४।७४। इति पुर अग्रगतौ–कुषन्। पुरति अग्रे गच्छतीति पुरुषः। इष गतौ यद्वा, ईष दाने–कर्मणि निष्ठा, इडागमः। अन्यजनैः प्रेषिताः प्रेरिता दत्ता वा। दस्युभ्यः। यजिमनिशुन्धिदसिजनिभ्यो युच्। उ० ३।२०। इति दसु उपक्षये–युच्। बाहुलकाद् अनादेशाभावः। दस्यति नाशयति परपदार्थानिति दस्युः। चोरादिभ्यः सकाशात्। जाताः। प्रादुर्भूताः। नश्यत। णश अदर्शने, दिवादिः। तिरोभवत। निर्गच्छत। सदान्वाः। म० १। हे सर्वदा शब्दयित्र्यः, यद्वा, दानवैः सह वर्त्तमानाः ॥

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    विषय

    आक्रोशकारिणी का विनाश

    पदार्थ

    १. हे (सदान्वाः) = [सदा नोनूयमानाः] सदा अपशब्द बोलनेवाली स्त्रियो! (इतः) = यहाँ से हमारे घर से (नश्यत:) = तुम अदृष्ट हो जाओ। (यदि) = चाहे तुम (क्षेत्रियाणाम् स्थ) = क्षेत्रिय रोगों की निदानभूत हो, (यदि वा) = अथवा पुरुष (इषिता:) = किसी अन्य पुरुष से व्यर्थ की चुगलियों से उत्तेजित [excited, animated] कर दी गई हो। अथवा (यदि) = यदि तुम (दस्युभ्यः जाता:) = नाशक वृत्तियों से ऐसी बन गई हो। २. स्त्रियों में आक्रोश वृत्ति पैदा होने के तीन कारण हैं-[क] कोई क्षेत्रिय रोग, [ख] किसी पुरुष से भड़काया जाना, [ग] कोई बड़ी हानि हो जाना [दस्यु]। किसी भी कारण से यह दोष उत्पन्न हो जाए तो उस स्त्री का दूर होना ही ठीक है।

    भावार्थ

    आक्रोशकारिणी स्त्री का घर से दूर होना ही ठीक है।

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    भाषार्थ

    (सदान्वाः) हे सदा कष्ट की सूचिकाओ ! (यदि स्थ) यदि तुम हो (क्षेत्रियाणाम्) शारीरिक अंगों सम्बन्धी, (यदि वा) अथवा (पुरुषेषिताः) रुग्ण पुरुष के संग द्वारा प्रेषित हुई, (यदि स्थ) यदि तुम हो (दस्युभ्यः) उपक्षय अर्थात् निर्बल क्षयरोगों से (जाताः) उत्पन्न, तो तुम (इतः) इस शरीर से (नश्यत) नष्ट हो जाओ।

    टिप्पणी

    [ये, शारीरिक रोगों के कारणीभूत स्त्रीजातिक रोगकीटाणु हैं, जिन्हेंकि मन्त्र (४) में कथित उपायों द्वारा निकाल फेंका है। दस्युभ्यः = तसु उपक्षये, दसु च (दिवादिः)। सदान्वाः= सदा णू स्तवने (तुदादिः), सदा कष्टों का स्तवन करनेवाली, कथन करनेवाली सूचना देनेवाली।]

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    विषय

    बुरी आदतों और कुस्वभाव के पुरुषों का त्याग ।

    भावार्थ

    हे दुःखकर पीड़ाओ ! (यदि) यदि तुम (क्षेत्रियाणां) क्षेत्र अर्थात् शरीर से शरीर में, या मा बाप से पुत्रादि में संक्रमण द्वारा प्राप्त हुई (स्थ) हो, (यदि वा) या जो (पुरुषेषिताः) कुसंगी, दुष्ट पुरुषों से प्रेरित हुई हो, (यदि) या (दस्युभ्यः) विनाशकारी दुष्ट भावों और विचारों के कारण उत्पन्न हुई (स्थ) हो तो भी (सदान्वाः) सदा चिखाने, रुलाने और कलह कराने वाली होने के कारण तुम (इतः) यहां से (नश्यत) भाग जाओ ।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘या दवा घ क्षेत्रियाद्’ (तृ०) यदस्तुदश्विभो [ दस्युभ्यो ] जाता इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    चातन ऋषिः । शालाग्निमन्त्रोक्ताश्च देवताः । अग्निभूतपनीन्द्रादिस्तुतिः । १, ३, ५, ६ अनुष्टुभः। २ भुरिक्। ४ उपरिष्टाद बृहती। षडृर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    We Counter Negativities

    Meaning

    O negativity if you happen to be organic or hereditary, or caused by another person, say by company or contagion or infection or even peer pressure, or if you happen to be caused by people of evil and destructive nature, even so, O evil and destructive diseases and tendencies, demonic forces of meanness and negation, get off all from here.

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    Translation

    O infectious diseases (Sadanvah) whether you are hereditary, or you have been conveyed by men (contagious) or you are sprung from back and vital strength, please vanish from here.

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    Translation

    Let there be away all these devouring threats if they are concerned with our bodies, if they are caused by some men, they are created by dacoits and wickeds.

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    Translation

    O maladies, whether Ye result from physical or ancestral ailments, or the company of ignoble persons, or are sprung out of cherishing evil thoughts, get Ye away from here.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५–यदि। पक्षान्तरम्। चेत्। स्थ। यूयं भवथ। क्षेत्रियाणाम्। अ० २।८।१। स्वकीये देहे वंशे वा जातानां रोगाणाम्। पुरुषेषिताः। पुरः कुषन्। उ० ४।७४। इति पुर अग्रगतौ–कुषन्। पुरति अग्रे गच्छतीति पुरुषः। इष गतौ यद्वा, ईष दाने–कर्मणि निष्ठा, इडागमः। अन्यजनैः प्रेषिताः प्रेरिता दत्ता वा। दस्युभ्यः। यजिमनिशुन्धिदसिजनिभ्यो युच्। उ० ३।२०। इति दसु उपक्षये–युच्। बाहुलकाद् अनादेशाभावः। दस्यति नाशयति परपदार्थानिति दस्युः। चोरादिभ्यः सकाशात्। जाताः। प्रादुर्भूताः। नश्यत। णश अदर्शने, दिवादिः। तिरोभवत। निर्गच्छत। सदान्वाः। म० १। हे सर्वदा शब्दयित्र्यः, यद्वा, दानवैः सह वर्त्तमानाः ॥

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (সদান্বাঃ) হে সদা কষ্টসূচিকাসমূহ! (যদি স্থ) যদি তোমরা হও (ক্ষেত্রিয়াণাম্) শারীরিক অঙ্গ সম্বন্ধিত, (যদি বা) অথবা (পুরুষেষিতাঃ) রুগ্ণ পুরুষের সঙ্গ দ্বারা প্রেষিত, (যদি স্থ) যদি তোমরা হও (দস্যুভ্যঃ) উপক্ষয় অর্থাৎ নির্বল ক্ষয়রোগ-সমূহ থেকে (জাতাঃ) উৎপন্ন, তাহলে তোমরা (ইতঃ) এই শরীর থেকে (নশ্যত) নষ্ট হয়ে যাও।

    टिप्पणी

    [এগুলো, শারীরিক রোগের কারণীভূত স্ত্রীজাতিক রোগজীবাণু, যা মন্ত্র (৪) এ বর্ণিত উপায়ের দ্বারা নিষ্কাশিত করা হয়েছে। দস্যুভ্যঃ = তসু উপক্ষয়ে, দসু চ (দিবাদিঃ)। সদান্বাঃ= সদা ণূ স্তবনে (তুদাদি), সদা কষ্টের স্তবনকারী, কথনকারী, সূচনাদায়ী।]

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    मन्त्र विषय

    অলক্ষ্মীর্মনুষ্যৈঃ প্রয়ত্নেন নাশনীয়া

    भाषार्थ

    [হে পীড়া-সমূহ !] (যদি) যদি (ক্ষেত্রিয়াণাম্) শরীরসম্বন্ধী, বা বংশসম্বন্ধী রোগের (বা) অথবা (যদি) যদি (পুরুষেষিতাঃ) অন্য পুরুষদের দ্বারা প্রেষিত (স্থ) হও, (যদি) যা (দস্যুভ্যঃ) চোর আদি দ্বারা (জাতাঃ স্থ) প্রকট হয়েছে, সেই তুমি (সদান্বাঃ) হে সদা উল্লাসকারী, অথবা, দানবদের সাথে অবস্থানকারী [পীড়া-সমূহ !] (ইতঃ) এখান থেকে (নশ্যত) সরে যাও/অপসারিত হও॥৫॥

    भावार्थ

    মনুষ্য নিজের কুপথ্যসেবন, ব্রহ্মচর্য আদির খণ্ডন থেকে অথবা মাতা-পিতা আদির কুসংস্কার থেকে, শারীরিক বা অধ্যাত্মিক ও শত্রু চোর আদির অন্যথা ব্যবহার দ্বারা আধিভৌতিক পীড়া প্রাপ্ত হয়। মনুষ্য পুরুষার্থ দ্বারা সব প্রকারের ক্লেশের নাশ করে আনন্দে থাকুক ॥৫॥

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