अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 32/ मन्त्र 4
ऋषिः - काण्वः
देवता - आदित्यगणः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - कृमिनाशक सूक्त
92
ह॒तो राजा॒ क्रिमी॑णामु॒तैषां॑ स्थ॒पति॑र्ह॒तः। ह॒तो ह॒तमा॑ता॒ क्रिमि॑र्ह॒तभ्रा॑ता ह॒तस्व॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठह॒त: । राजा॑ । क्रिमी॑णाम् । उ॒त । ए॒षा॒म् । स्थ॒पति॑: । ह॒त: । ह॒त: । ह॒तऽमा॑ता । क्रिमि॑: । ह॒तऽभ्रा॑ता । ह॒तऽस्व॑सा ॥३२.४॥
स्वर रहित मन्त्र
हतो राजा क्रिमीणामुतैषां स्थपतिर्हतः। हतो हतमाता क्रिमिर्हतभ्राता हतस्वसा ॥
स्वर रहित पद पाठहत: । राजा । क्रिमीणाम् । उत । एषाम् । स्थपति: । हत: । हत: । हतऽमाता । क्रिमि: । हतऽभ्राता । हतऽस्वसा ॥३२.४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
कीड़ों के समान दोषों का नाश करे, इसका उपदेश।
पदार्थ
(एषाम्) इन (क्रिमीणाम्) कीड़ों का (राजा) राजा (हतः) नष्ट होवे, (उत) और (स्थपतिः) द्वारपाल (हतः) नष्ट होवे। (हतमाता) जिसकी माता नष्ट हो चुकी है, (हतभ्राता) जिसका भ्राता नष्ट हो चुका है और (हतस्वसा) जिसकी बहिन नष्ट हो चुकी है, (क्रिमिः) वह चढ़ाई करनेवाला कीड़ा (हतः) मार डाला जावे ॥४॥
भावार्थ
मनुष्य अपने दोषों और उनके कारणों को उचित प्रकार के समझकर नष्ट करे, जैसे वैद्य दोषों के प्रधान और गौण कारणों को समझकर रोगनिवृत्ति करता है ॥४॥
टिप्पणी
४–हतः। नाशितः। राजा। अ० १।१०।१। अधिपतिः। उत। अपि च। एषाम्। उपस्थितानाम्। स्थपतिः। ष्ठा–कः। स्थः स्थानम्। अमेरतिः। उ० ४।५९। इति पा रक्षणे–अति। अथवा, ण्यन्तस्य स्था धातोः पुकि–अति प्रत्यये ह्रस्वः। स्थं स्थानं पाति, अथवा पुरुषान् स्थापयतीति स्थपतिः कञ्चुकी, द्वारपालः। हतमाता। हता माता यस्य। नद्यृतश्च। पा० ५।४।१५३। इति बहुव्रीहौ नित्यं प्राप्तस्य कपः–ऋतश्छन्दसि पा० ५।४।१५८। इति प्रतिषेधः। नष्टमातृकः। हतभ्राता। पूर्ववत् कपः प्रतिषेधः। नष्टभ्रातृकः। हतस्वसा। पूर्ववत् सिद्धिः। हतस्वसृकः। नष्टभगिनीकः। अन्यद् गतम् ॥
विषय
सराष्ट्र 'कमि' विनाश
पदार्थ
१. (क्रिमीणां राजा हत:) ृ गतमन्त्र में वर्णित कृमियों का राजा अगस्त्य के द्वारा विचारपूर्वक किये गये औषधप्रयोग से [मन्त्रौषधि प्रयोग से] मारा गया है, (उत) ृ और (एषाम्) ृ इन कृमियों का (स्थपति:) ृ स्थान का रक्षक अथवा सचिव (हत:) ृ मारा गया है। २. (इतमाता) ृ जिसकी माता का विनाश कर दिया गया है, (हतभ्राता:) ृ जिसके भाई को मार दिया गया है। (उत स्वसा) = जिसकी बहिन को भी नष्ट कर दिया गया है, ऐसा यह (क्रिमि:) = कृमि (हत:) = हिंसित हुआ है। संक्षेप में अपने सारे परिवार व राष्ट्रसहित यह कृमि समाप्त हो गया है।
भावार्थ
ज्ञानपूर्वक ओषधिप्रयोग से रोगकृमियों का मूलोच्छेद कर दिया जाता है।
भाषार्थ
(क्रिमीणाम) क्रिमियों का (राजा) राजा ( हतः) मर गया है, ( उत ) तथा (एषाम् ) इनका (स्थपतिः१) कारीगर ( हतः) मर गया है। (क्रिमि ) क्रिमि (हतः) मर गया है, ( हतमाता हतभ्राता, हतस्वसा) यह मृतमाता, मृतभ्राता और मृतबहिनवाला हो गया है।
टिप्पणी
[अभिप्राय यह कि क्रिमियों के समग्र कुल को मार दिया है। हतमातेत्यादिषु नित्यं प्राप्तस्य कप: "ऋतश्छन्दसि " (अष्टा० ५।४।१५८ ) इति प्रतिषेधः (सायण)। यतः क्रिमियों के राजा का वर्णन हुआ है, इसलिये जेसे कि राजा के चारों ओर उसके अनुयायी बैठते है, उसी प्रकार क्रिमि-राजा के चारों ओर बैठनेवाले स्थपति आदि का वर्णन मन्त्र में कवितारूप में हुआ है।] [१. सम्भवतः स्थिर मकान आदि का पति अर्थात् निर्माता, जिसे कि "राज" कहते हैं, जोकि मकानों का कारीगर है।]
विषय
रोगकारी क्रिमियों के नाश करने का उपदेश ।
भावार्थ
जिस प्रकार भूमि पर आक्रमण करने वाले शत्रुओं के राजा, मन्त्री, माता, भाई, बहिन आदि सब मार डाले जाते हैं और शत्रु को निर्मूल कर दिया जाता है उसी प्रकार (क्रिमीणां) रोग-जन्तुओं में भी जो मुख्य जन्तु हो उस (राजा) राजा को (हतः) औषध प्रयोग से मार डाला जाय। (उत एषां) और इनके (स्थपतिः) रहने के निवास बनाने वाले जन्तुओं का भी (हतः) नाश किया जाय । और (हतमाता) इनके प्रसव करने वाली रानी कीट को भी मारा जाय । (हतभ्राता) इनके सहवर्गी कीटों को भी मारा जाय और (हतस्वसा) इनके भगिनी मादा कीट को भी मारा जाय, तय समझना चाहिये कि (क्रिमिः) फैलने वाले रोग-जन्तु की बला (हतः) नष्ट हो गई । मधुमक्खी और कीड़ियों के भीतरी प्रबन्धों को देख कर यह अनुमान होता है कि कीटों में भी कुछ कीट उनमें राजा, कुछ उनके मकान बनाने वाले कुछ भाई, कोई रानी आदि नाना विभाग होते हैं प्रायः ततैया, भूण्ड, भौंरे आदि जाति के कीट और दीमक, कीड़ी मकोड़ी, मकौड़ा आदि जाति के जैसे रोगकारी सूक्ष्म कीटों में बड़ा संगठन होता है उनका विनाश शत्रु के नाश के समान ही करना उचित है ।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘स्थपतिर्हतः’, (तृ०) ‘हतत्रा[भ्रा]ता’, (च०) हतमहता [ माता ] इति पैप्प० सं०। ‘हतः क्रिमीणां राजा अप्येषां स्थपतिर्हतः’। ‘अथो माता अथो पिता’ इति तै० आ०। (प्र० द्वि०) ‘हतः क्रिमीणां क्षुद्रको हता साता हतः पिता’, इति तै० आ०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्व ऋषिः। आदित्यो देवता। १ त्रिपदा भुरिग् गायत्री। २-५ अनुष्टुभः। चतुष्पदा निचृदुष्णिक्। षडृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Elimination of Insects
Meaning
The ruler of these germs and insects is dead. And killed is their keeper of the fort. Destroyed are the germs whose breeder is gone. Their mother is gone, dead, their brother is dead, their sister is dead.
Translation
The king of the worms has been killed, and their architect (chieftain) also is killed. The worm is killed, with its mother killed, brothers killed and sisters killed.
Translation
Through the means of germicide the king of germs is killed and is killed also their producer and thus these germs become desolate from their mothers, brothers and sisters.
Translation
Slain is the sovereign of these worms, yea, their controlling lord is slain. Slain is the worm, his mother slain, brother and sister both are slain. [1]
Footnote
[1] The whole family of the worms is slain through the use of medicine.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४–हतः। नाशितः। राजा। अ० १।१०।१। अधिपतिः। उत। अपि च। एषाम्। उपस्थितानाम्। स्थपतिः। ष्ठा–कः। स्थः स्थानम्। अमेरतिः। उ० ४।५९। इति पा रक्षणे–अति। अथवा, ण्यन्तस्य स्था धातोः पुकि–अति प्रत्यये ह्रस्वः। स्थं स्थानं पाति, अथवा पुरुषान् स्थापयतीति स्थपतिः कञ्चुकी, द्वारपालः। हतमाता। हता माता यस्य। नद्यृतश्च। पा० ५।४।१५३। इति बहुव्रीहौ नित्यं प्राप्तस्य कपः–ऋतश्छन्दसि पा० ५।४।१५८। इति प्रतिषेधः। नष्टमातृकः। हतभ्राता। पूर्ववत् कपः प्रतिषेधः। नष्टभ्रातृकः। हतस्वसा। पूर्ववत् सिद्धिः। हतस्वसृकः। नष्टभगिनीकः। अन्यद् गतम् ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(ক্রিমীণাম্) কৃমিসমূহের (রাজা) রাজা (হতঃ) নিহত হয়েছে, (উত) এবং (এষাম্) এদের (স্থপতিঃ১) কারিগর (হতঃ) নিহত হয়েছে। (ক্রিমিঃ) কৃমি (হতঃ) নিহত হয়েছে, (হতমাতা, হতভ্রাতা, হতস্বসা) এগুলো মৃতমাতা, মৃতভ্রাতা ও মৃতবোন সম্পর্কিত হয়ে গেছে।
टिप्पणी
[অভিপ্রায় হল, কৃমির সমগ্র কূলকে বিনষ্ট করা হয়েছে । হতমাতেত্যাদিষু নিত্যং প্রাপ্তস্য কপঃ "ঋতশ্ছন্দসি" (অষ্টা০ ৫।৪।১৫৮) ইতি প্রতিষেধঃ (সায়ণ)। যতঃ কৃমিসমূহের রাজার বর্ণনা হয়েছে, এইজন্য যেমন রাজার চারিদিকে তার অনুসারীরা বসে থাকে, সেইভাবে কৃমি-রাজার চারিদিকে বসা স্থপতি আদির বর্ণনা মন্ত্রে কবিতারূপে হয়েছে।] [১. সম্ভবতঃ স্থায়ী ঘরবাড়ির আদির পতি অর্থাৎ নির্মাতা, যাকে "রাজমিস্ত্রি" বলা হয়, যে ঘরবাড়ির কারীগর।]
मन्त्र विषय
ক্রিমিতুল্যান্ দোষান্ নাশয়েৎ, ইত্যুপদেশঃ
भाषार्थ
(এষাম্) এই (ক্রিমীণাম্) কৃমিদের (রাজা) রাজা (হতঃ) নিহত/বিনষ্ট হোক, (উত) এবং (স্থপতিঃ) দ্বারপাল (হতঃ) নিহত/বিনষ্ট হোক। (হতমাতা) যার মাতা নিহত/বিনষ্ট হয়েছে, (হতভ্রাতা) যার ভ্রাতা নিহত/বিনষ্ট হয়েছে এবং (হতস্বসা) যার বোন নিহত/বিনষ্ট হয়েছে, (ক্রিমিঃ) সেই আরোহণকারী কৃমি (হতঃ) নিহত হবে/হোক॥৪॥
भावार्थ
মনুষ্য নিজের দোষ ও সেগুলোর কারণ-সমূহকে উচিত প্রকার বুঝে বিনষ্ট করুক, যেমন বৈদ্য দোষের প্রধান এবং গৌণ কারণ বুঝে রোগনিবৃত্তি করে ॥৪॥
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