Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 2 के सूक्त 8 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 1
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - वनस्पतिः, यक्ष्मनाशनम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - क्षेत्रियरोगनाशन
    56

    उद॑गातां॒ भग॑वती वि॒चृतौ॒ नाम॒ तार॑के। वि क्षे॑त्रि॒यस्य॑ मुञ्चतामध॒मं पाश॑मुत्त॒मम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । अ॒गा॒ता॒म् । भग॑वती॒ इति॒ भग॑ऽवती । वि॒ऽचृतौ॑ । नाम॑ । तार॑के॒ इति॑ ।वि । क्षे॒त्रि॒यस्य॑ । मु॒ञ्च॒ता॒म् । अ॒ध॒मम् । पाश॑म् । उ॒त्ऽत॒मम् ॥८.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदगातां भगवती विचृतौ नाम तारके। वि क्षेत्रियस्य मुञ्चतामधमं पाशमुत्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । अगाताम् । भगवती इति भगऽवती । विऽचृतौ । नाम । तारके इति ।वि । क्षेत्रियस्य । मुञ्चताम् । अधमम् । पाशम् । उत्ऽतमम् ॥८.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 2; सूक्त » 8; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    पौरुष का उपदेश किया जाता है।

    पदार्थ

    (भगवती=०–त्यौ) दो ऐश्वर्यवाले (विचृतौ) [अन्धकार से] छुड़ानेहारे (नाम) प्रसिद्ध (तारके) तारे [सूर्य और चन्द्रमा] (उदगाताम्) उदय हुए हैं। वे दोनों (क्षेत्रियस्य) शरीर वा वंश के दोष वा रोग के (अधमम्) नीचे और (उत्तमम्) ऊँचे (पाशम्) पाश को (वि+मुच्यताम्) छुड़ा देवें ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य और चन्द्रमा संसार में उदय होकर अपने ऊपर और नीचे के अन्धकार का नाश करके प्रकाश करते हैं, इसी प्रकार मनुष्य अपने छोटे और बड़े मानसिक, शारीरिक और वांशिक रोगों तथा दोषों को निवृत्त करके स्वस्थ और प्रतापी हों ॥१॥

    टिप्पणी

    १–उदगाताम्। उत्+इण् गतौ–लुङ्। इणो गा लुङि। पा० २।४।४५। इति गादेशः। उदितेऽभूताम्। भगवती। तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् पा० ५।२।९४। इति भग–मतुप् नित्ययोगे। मस्य वः। ततो ङीप्। सुपां सुलुक्पूर्वसवर्ण०। पा० ७।१।३९। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। भगवत्यौ। ऐश्वर्यवत्यौ। पूज्ये। विचृतौ। वि+चृती हिंसाग्रन्थनयोः–क्विप्। अन्धकाराद् विमोचयित्र्यौ। नाम। प्रसिद्धे। तारके। तरति तारयति वान्धकारात् तारका। तॄ–णिच्–ण्वुल्। टाप्। तारका ज्योतिषि। वा० पा० ७।३।४५। इति न अत इत्त्वम्। द्वे नक्षत्रे। ज्योतिषी। सूर्यचन्द्रौ। क्षेत्रियस्य। क्षेत्रियच् परक्षेत्रे चिकित्स्यः। पा० ५।२।९२। इति क्षेत्रियशब्दो निपात्यते परक्षेत्रे चिकित्स्य इत्यर्थे। यद्वा। क्षेत्र–घच् प्रत्ययः। परस्मिन् पुत्रपौत्रादिकस्य शरीरे प्रतीकार्यस्य महाप्रचण्डस्य रोगस्य। यद्वा। क्षेत्रे स्वकीये देहे वंशे वा जातस्य रोगस्य दोषस्य वा। विमुञ्चताम्। मुचेर्लोटि। शे मुचादीनाम्। पा० ७।१।५९। इति नुम्। विमोचयताम्। अधमम्। अधरशरीरस्थितम्। उत्तमम्। ऊर्ध्वभागे स्थितम्। पाशम्। पश बन्धे ग्रन्थे वा–घञ्। बन्धनम्। ग्रन्थिम् ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Hereditary Diseases

    Meaning

    Grown are two highly efficacious Vaishnavi herbs. Arisen are two stars in the sting of the zodiac Scorpio. May they slacken and remove the highest and lowest shackles of hereditary consumption and release the patient.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १–उदगाताम्। उत्+इण् गतौ–लुङ्। इणो गा लुङि। पा० २।४।४५। इति गादेशः। उदितेऽभूताम्। भगवती। तदस्यास्त्यस्मिन्निति मतुप् पा० ५।२।९४। इति भग–मतुप् नित्ययोगे। मस्य वः। ततो ङीप्। सुपां सुलुक्पूर्वसवर्ण०। पा० ७।१।३९। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। भगवत्यौ। ऐश्वर्यवत्यौ। पूज्ये। विचृतौ। वि+चृती हिंसाग्रन्थनयोः–क्विप्। अन्धकाराद् विमोचयित्र्यौ। नाम। प्रसिद्धे। तारके। तरति तारयति वान्धकारात् तारका। तॄ–णिच्–ण्वुल्। टाप्। तारका ज्योतिषि। वा० पा० ७।३।४५। इति न अत इत्त्वम्। द्वे नक्षत्रे। ज्योतिषी। सूर्यचन्द्रौ। क्षेत्रियस्य। क्षेत्रियच् परक्षेत्रे चिकित्स्यः। पा० ५।२।९२। इति क्षेत्रियशब्दो निपात्यते परक्षेत्रे चिकित्स्य इत्यर्थे। यद्वा। क्षेत्र–घच् प्रत्ययः। परस्मिन् पुत्रपौत्रादिकस्य शरीरे प्रतीकार्यस्य महाप्रचण्डस्य रोगस्य। यद्वा। क्षेत्रे स्वकीये देहे वंशे वा जातस्य रोगस्य दोषस्य वा। विमुञ्चताम्। मुचेर्लोटि। शे मुचादीनाम्। पा० ७।१।५९। इति नुम्। विमोचयताम्। अधमम्। अधरशरीरस्थितम्। उत्तमम्। ऊर्ध्वभागे स्थितम्। पाशम्। पश बन्धे ग्रन्थे वा–घञ्। बन्धनम्। ग्रन्थिम् ॥

    बंगाली (1)

    पदार्थ

    (ভগবতী=০-তৌ) দুই ঐশ্বর্যযুক্ত (বিচূতৌ) [অন্ধকার হইতে] মুক্তকারী (নাম) প্রসিদ্ধ (তারকে) তারা [সূর্য এবং চন্দ্রমা] (উদগাতাম্) উদয় হয় তাহারা উভয় (ক্ষেত্রিয়স্য) শরীর বা বংশের দোষ বা রোগকে (অধমম্) নীচে এবং (উত্তমম্) উপরে (পাশম্) পাশে (বি+মুচ্যতাম্) নিক্ষেপ করেন।।

    भावार्थ

    দুই ঐশ্বর্যযুক্ত অন্ধকার হইতে মুক্তকারী প্রসিদ্ধ তারা, সূর্য এবং চন্দ্রমা উদয় হয়। তাহারা উভয় শরীর বা বংশের দোষ বা রোগকে নীচে এবং উপরে পাশে নিক্ষেপ করেন।।
    যেরূপ সূর্য এবং চন্দ্রমা সংসারে উদয় হইয়া নিজের উপর এবং নীচের অন্ধকারের নাশ করিয়া প্রকাশ করেন, এই প্রকার মনুষ্য নিজের ছোট এবং বড় মানসিক, শারিরীক এবং বংশীয় রোগ তথা দোষের নিবৃত করিয়া সুস্থ এবং প্রতাপী হউক।।

    मन्त्र (बांग्ला)

    উদগাতাং ভগবতী বিচূতৌ নাম তারকে। বি ক্ষৈত্রিয়স্য মুঞ্চতামধমং পাশমুত্তমম্।।

    ऋषि | देवता | छन्द

    ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। ক্ষেত্রিয় (য়ক্ষ্মকুণ্ঠাদি) নাশনম্। অনুষ্টুপ্

    Top