अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - वनस्पतिः, यक्ष्मनाशनम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - दीर्घायु प्राप्ति सूक्त
66
अधी॑ती॒रध्य॑गाद॒यमधि॑ जीवपु॒रा अ॑गन्। श॒तं ह्य॑स्य भि॒षजः॑ स॒हस्र॑मु॒त वी॒रुधः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअधि॑ऽइती: । अधि॑ । अ॒गा॒त् । अ॒यम् । अधि॑ । जी॒व॒ऽपु॒रा: । अ॒ग॒त् । श॒तम् । हि । अ॒स्य॒ । भि॒षज॑: । स॒हस्र॑म् । उ॒त । वी॒रुध॑: ॥९.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अधीतीरध्यगादयमधि जीवपुरा अगन्। शतं ह्यस्य भिषजः सहस्रमुत वीरुधः ॥
स्वर रहित पद पाठअधिऽइती: । अधि । अगात् । अयम् । अधि । जीवऽपुरा: । अगत् । शतम् । हि । अस्य । भिषज: । सहस्रम् । उत । वीरुध: ॥९.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मनुष्य अपने आप को ऊँचा करे।
पदार्थ
(अयम्) इस पुरुष ने (अधीतीः) अध्ययन योग्य शास्त्रों को (अधि+अगात्) अध्ययन किया है और (जीवपुराः) प्राणियों के पुरों वा नगरों को (अधि अगन्) जान लिया है। (हि) क्योंकि (अस्य) इस [पुरुष] के (शतम्) सौ [बहुत से] (भिषजः) वैद्य, (उत) और (सहस्रम्) सहस्र [बहुत से] (वीरुधः) औषध हैं ॥३॥
भावार्थ
मनुष्य वेदादि शास्त्रों के अध्ययन, मनुष्यों में निवास, विद्वानों के सत्सङ्ग और पदार्थों के गुणों का बोध करने से संसार में उन्नति करते हैं ॥३॥
टिप्पणी
३–अधीतीः। अधि+इङ् अध्ययने, यद्वा, इक् स्मरणे–क्तिन्। अध्येतव्यान् वेदान्। स्मर्तव्यान् पदार्थान्। अधि+अगात्। इणो गा लुङि। पा० २।४।४५। तत्रैव वार्त्तिकम्। इण्वदिक इति वक्तव्यम्। इति इक् स्मरणे–लुङि गादेशः। अस्मार्षीत्। स्मृतवान्। जीवपुराः। ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५।४।७४। इति पुर् इत्यस्य अकारः समासान्तः। जीवानां पुरः पुराणि नगराणि पत्तनानि अधि+अगन्। गमेर्लुङि। मो नो धातोः। पा० ८।२।६४। इति नत्वम्। अध्यगमत्। अज्ञासीत्। हि। यस्मात् कारणात्। शतम्, सहस्रम्। अपरिमिताः। भिषजः। बिभेति रोगो यस्मादिति भिषक्। भियः षुग्घ्रस्वश्च। उ० १।१३८। इति ञिभी भये–अजि। षुगागमो ह्रस्वश्च। वैद्याः। वीरुधः। अ० २।७।१। ओषधयः ॥
विषय
मस्तिष्क व शरीर का स्वास्थ्य।
पदार्थ
१. (हि) = निश्चय से (अस्य) = इस ग्राहीरोग के (शतं भिषज:) = सैकड़ों वैद्य हैं (उत) = और (सहस्त्रम्) = हजारों (वीरुधः) = [विरुन्धन्ति विनाशयन्ति रोगान] रोगनाशक औषध है, अर्थात् यह ग्राहीरोग ऐसा भयंकर व डरने योग्य नहीं। (अयम्) = यह व्यक्ति स्वस्थ होकर (अधीति:) = अध्ययन करने योग्य सब वस्तुओं का (अध्यगात्) = स्मरण करने लगा है और (जीवपुरा:) = जीवितों के नगरों में (अधि अगन्) = आने-जाने लगा है, अर्थात् इसके सब व्यवहार साधारणतया ठीक से होने लगे हैं। २. रोग की अवस्था में व्याकुलता के कारण यह कुछ भी नहीं कर पा रहा था। अब इसका मस्तिष्क ब शरीर दोनों ठीक से कार्य करने लगे हैं। मस्तिक के ठीक हो जाने के कारण यह ठीक से पढ़ने-लिखने लगा है और शरीर के स्वस्थ हो जाने से यह नगरों में आने-जाने लगा हैं।
भावार्थ
ग्राहीरोग के औषधों व चिकित्सकों की कमी नहीं। यह रोगी ठीक होकर मस्तिष्क व शरीर से ठीक रूप में कार्यों को करने लगा हैं।
भाषार्थ
(अयम्) इस रोगी ने (अधीतीः) स्मर्तव्य विषयों को (अध्यगात्) स्मरण कर लिया है, और (जीवपुराः) जीवितों के पुरों को ( अधि अगन् ) प्राप्त हो गया है । (अस्य ) इस रोगी के, ( हि) निश्चय से, ( शतम् भिषज: ) सैकड़ों चिकित्सक हैं, (उत) तथा (सहस्रम्) हजारों (वीरुधः) ओषधियाँ हैं।] [अगन्= मो नो धातोः (अष्टा० ८।२।६४) इति नत्वम् (सायण)।]
विषय
आत्मज्ञान का उपदेश ।
भावार्थ
(अयम्) यह जीव (अधीतीः) नाना गतियों, योनियों और अवस्थाओं को (अधि अगात्) प्राप्त होता है और ( जीवपुरा ) नाना प्राणधारी ‘पुर’ देहों को भी (अधि अगन्) प्राप्त होता है । (अस्य) इस जीव के ( भिषजः ) भव-बन्धन की चिकित्सा करने हारे भी (शतं) सैकड़ों गुरु हैं और ( वीरुधः ) जिस प्रकार दुखी पुरुष के रोग के दूर करने के लिये सैकड़ों वनलताएं हैं उसी प्रकार जन्म मृत्यु के रोग को नाश करने के लिये ब्रह्मोपदेश करने हारी वल्लियां (उत) भी (सहस्रम्) सैकड़ों हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। वनस्पतिर्यक्ष्मनाशनो देवता । मन्त्रोक्तदेवतास्तुतिः। १ विराट् प्रस्तारपंक्तिः। २-५ अनुष्टुभः। पञ्चर्चं सूक्तम् ।
इंग्लिश (4)
Subject
Rheumatism
Meaning
He has mastered what he wanted to study and attain. He has obtained what humans normally desire. He has gone round the cities, hundreds are the physicians he knows, hundreds the remedies, herbs and medicines.
Translation
He has obtained the thing worth obtaining .He has got all the necessities of life. A hundred are his healers and a thousand his medicinal herbs. :
Translation
The patient returned to consciousness rejoins the body which is an abode of the soul. As there are hundreds of physicians and thousands of herbs of the disease.
Translation
This soul assumes different abodes, and different citadels of living beings. It has got hundreds of gurus as its spiritual physicians and thousands of sermons as its spiritual medicines. [1]
Footnote
[1] ‘Abodes’ means births 'citadels’ means bodies.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३–अधीतीः। अधि+इङ् अध्ययने, यद्वा, इक् स्मरणे–क्तिन्। अध्येतव्यान् वेदान्। स्मर्तव्यान् पदार्थान्। अधि+अगात्। इणो गा लुङि। पा० २।४।४५। तत्रैव वार्त्तिकम्। इण्वदिक इति वक्तव्यम्। इति इक् स्मरणे–लुङि गादेशः। अस्मार्षीत्। स्मृतवान्। जीवपुराः। ऋक्पूरब्धूःपथामानक्षे। पा० ५।४।७४। इति पुर् इत्यस्य अकारः समासान्तः। जीवानां पुरः पुराणि नगराणि पत्तनानि अधि+अगन्। गमेर्लुङि। मो नो धातोः। पा० ८।२।६४। इति नत्वम्। अध्यगमत्। अज्ञासीत्। हि। यस्मात् कारणात्। शतम्, सहस्रम्। अपरिमिताः। भिषजः। बिभेति रोगो यस्मादिति भिषक्। भियः षुग्घ्रस्वश्च। उ० १।१३८। इति ञिभी भये–अजि। षुगागमो ह्रस्वश्च। वैद्याः। वीरुधः। अ० २।७।१। ओषधयः ॥
बंगाली (3)
पदार्थ
(অয়ম্) এই পুরুষই (অধীতীঃ) অধ্যয়ন যোগ শাস্ত্রের (অধি+অগাত্) অধ্যয়ন করিয়াছে এবং (জীবপুরাঃ) প্রাণীর সমস্ত বা নগরকে (অধি+অগন্) জানিয়া লইয়াছে। (হি) কেননা (অস্য) এই [পুরুষের] (শতম্) শত [অনেকই] (ভিষজ) বৈদ্য (উত) এবং (সহস্রম্) সহস্র [অনেকই] (বীরুধঃ) ঔষধি আছে।
भावार्थ
এই পুরুষই অধ্যয়ন যোগ শাস্ত্রের অধ্যয়ন করিয়াছে এবং শ্রীশীর সমস্ত বা নগরকে জানিয়শিইয়াছে। কেননা এই [পুরুষের] শত [অনেকই] বৈদ্য এবং সহস্র [অনেকই] ঔষধি আছে।।
মনুষ্য বেদাদি শাস্ত্রের অধ্যয়ন, মনুষ্যের মধ্যে নিবাস বিদ্বানের সৎসঙ্গ এবং পদার্থের গুণের উপলব্ধি করাতে সংসারে উন্নতি করেন।।
मन्त्र (बांग्ला)
অধীতীরধ্যগাদয়মধি জীবপুরা অগন্ ৷শতং হাস্য ভিষজঃ সহস্রমুত বীরুধঃ।।
ऋषि | देवता | छन्द
ভৃগ্বঙ্গিরাঃ। বনষ্পতিঃ। অনুষ্টুপ্
भाषार्थ
(অয়ম্) এই রোগী (অধীতীঃ) স্মর্তব্য বিষয়সমূহকে (অধ্যগাৎ) স্মরণ করে নিয়েছে, এবং (জীবপুরাঃ) জীবিতদের লোকসমূহকে (অধি অগন্) প্রাপ্ত হয়েছে [রোগী সুস্থ হয়ে গেছে]। (অস্য) এই রোগীর, (হি) নিশ্চিতরূপে, (শতম্, ভিষজঃ) শতাধিক চিকিৎসক আছে, (উত) এবং (সহস্রম্) সহস্র (বীরুধঃ) ঔষধি আছে।
टिप्पणी
[অগন্= মো নো ধাতোঃ (অষ্টা০ ৮।২।৬৪), ইতি নত্বম্ (সায়ণ)।]
मन्त्र विषय
মনুষ্য আত্মানমুন্নয়েৎ
भाषार्थ
(অয়ম্) এই পুরুষ (অধীতীঃ) অধ্যয়ন যোগ্য শাস্ত্র-সমূহ (অধি+অগাৎ) অধ্যয়ন করেছে এবং (জীবপুরাঃ) প্রাণীদের পুর বা নগরীকে (অধি অগন্) জেনে নিয়েছে/জ্ঞাত হয়েছে। (হি) কারণ (অস্য) এই [পুরুষ] এর (শতম্) শত [অনেক] (ভিষজঃ) বৈদ্য, (উত) ও (সহস্রম্) সহস্র [অনেক] (বীরুধঃ) ঔষধ আছে ॥৩॥
भावार्थ
মনুষ্য বেদাদি শাস্ত্রের অধ্যয়ন, মনুষ্যদের মধ্যে নিবাস, বিদ্বানদের সৎসঙ্গ ও পদার্থের গুণের বোধ করার মাধ্যমে সংসারে উন্নতি করে/করুক ॥৩॥
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