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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 107 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 5
    ऋषिः - बृहद्दिवोऽथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१०७
    52

    वा॑वृधा॒नः शव॑सा॒ भूर्यो॑जाः॒ शत्रु॑र्दा॒साय॑ भि॒यसं॑ दधाति। अव्य॑नच्च व्य॒नच्च॒ सस्नि॒ सं ते॑ नवन्त॒ प्रभृ॑ता॒ मदे॑षु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒वृ॒धा॒न: । शव॑सा । भूरि॑ऽओजा: । शत्रु॑: । दा॒साय॑ । भि॒यस॑म् । द॒धा॒ति॒ ॥ अवि॑ऽअनत् । च॒ । वि॒ऽअ॒नत् । च॒ । सस्नि॑ । सम् । ते॒ । न॒व॒न्त॒ । प्रभृ॑ता । मदे॑षु ॥१०७.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वावृधानः शवसा भूर्योजाः शत्रुर्दासाय भियसं दधाति। अव्यनच्च व्यनच्च सस्नि सं ते नवन्त प्रभृता मदेषु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ववृधान: । शवसा । भूरिऽओजा: । शत्रु: । दासाय । भियसम् । दधाति ॥ अविऽअनत् । च । विऽअनत् । च । सस्नि । सम् । ते । नवन्त । प्रभृता । मदेषु ॥१०७.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 107; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    १-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (शवसा) बल से (वावृधानः) बढ़ता हुआ, (भूर्योजाः) महाबली, (शत्रुः) हमारा शत्रु (दासाय) दानपात्र दास को (भियसम्) भय (दधाति) देता है। (अव्यनत्) गतिशून्य स्थावर (च) और (व्यनत्) गतिवाला जङ्गम जगत् (च) निश्चय करके [परमात्मा में] (सस्नि) लपेटा हुआ है, (प्रभृता) अच्छे प्रकार पुष्ट किये हुए प्राणी (मदेषु) आनन्दों में (ते) तेरी (सम् नवन्त) यथावत् स्तुति करते हैं ॥॥

    भावार्थ

    सर्वशक्तिमान् परमेश्वर समस्त जगत् में व्यापक होकर सबको धारण करता है। उसीकी महिमा को जानकर सब मनुष्य पुरुषार्थपूर्वक अपने विघ्नों को नाश करके प्रसन्न होवें ॥॥

    टिप्पणी

    ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

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    विषय

    'शक्ति-पुज' प्रभु

    पदार्थ

    १. वे प्रभु (शवसा वावृधान:) = बल से खूब बढ़े हुए हैं। (भूरि ओजा:) = अतिशयित ओजवाले हैं। (शत्रुः) = हमारी वासनाओं का शातन करनेवाले हैं। (दासाय) = [दसु उपक्षये] हमारी शक्तियों को क्षीण करनेवाले काम, क्रोध के लिए (भियसं दधाति) = भय को धारण करते हैं। जहाँ भी महादेव के नाम का उच्चारण होता हो वहाँ कामदेव आने से भयभीत होते ही हैं। २. वे प्रभु (अवयनत्) = श्वास [प्राण] न लेनेवाले स्थावर पदार्थों को (च) = तथा (व्यनत्) = विशेषरूप से प्राणों को धारण करनेवाले जंगम प्राणियों को (सस्नि) = शुद्ध करनेवाले हैं। (ते) = आपके (मदेषु) = आनन्दों में (प्रभृता) = धारण किये हुए सब प्राणी (संनवन्त) = म्यक् स्तवन करते हैं [नु स्तुती], अथवा आपकी ओर गतिवाले होते हैं [नव गती]।

    भावार्थ

    प्रभु अनन्त शक्तिवाले हैं। हमारे शत्रुओं को भयभीत करके हमसे दूर करते हैं। सबका शोधन करते हैं। उपासक प्रभु-प्राप्ति के आनन्द में निरन्तर प्रभु का स्तवन करते हैं।

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    भाषार्थ

    (शवसा) अपने बल के कारण (वावृधानः) सब से बढ़ा हुआ, (भूर्योजाः) अति-ओजस्वी परमेश्वर, (शत्रुः) पापों का विनाश करता, और (दासाय) अन्यों का क्षय करनेवाले व्यक्ति के लिए (भियसम्) भय (दधाति) उपस्थित करता है। वह (अव्यनत्) अप्राणि जगत् (च) और (व्यनत्) प्राणिजगत् को (सस्निः) शुद्ध करता है। हे परमेश्वर! (मदेषु) आप द्वारा दिये गये आनन्दों और तृप्तियों में (प्रभृताः) परिपुष्ट हुए प्राणी, (सम्) मिलकर, (ते) आपकी (नवन्त) स्तुतियाँ करते हैं।

    टिप्पणी

    [अव्यनत्=अ+वि+अन् (प्राणने)+शतृ। सस्निः=स्ना शौचे। नवन्त=नू स्तुतौ। शत्रुः=शातयति।]

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    विषय

    परमेश्वर।

    भावार्थ

    (४-१२) ये ९ मन्त्र देखो अथर्व० का० ५। २। १-९॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१-३ वत्सः, ४-१२ बृहद्दिवोऽथर्वा, १३-१४ ब्रह्मा, १५ कुत्सः। देवता—१-१२ इन्द्र, १३-१५ सूर्यः। छन्दः—१-३ गायत्री, ४-१२,१४,१५ त्रिष्टुप, १३ आर्षीपङ्क्ति॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    Growing mighty in strength, immensely lustrous, destroyer of negativities, Indra strikes fear into the heart of forces which cause damage to life and the environment. Bountiful purifier and sustainer of the breathing and non-breathing world, all the people and powers which receive sustenance from you join to do honour to you in their joy and celebration of life.

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    Translation

    Ever being mature with his strength and possessing ample vigour the Almighty God as the smiter (shatru) of cloud strikes fear into Dasa, the cloud causing drought or famine. He contains in Him all that moves and that do not, move. O Lord, all guarded and supported by you praise you at Yajnas.

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    Translation

    Ever being mature with his strength and possessing ample vigor the Almighty. God as the smiter (shatru) of cloud strikes fear into Dasa, the cloud causing drought or famine. He contains in Him all that moves and that do not move. O Lord, all guarded and supported by you praise you at Yajna.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    ১-১২ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শবসা) বল দ্বারা (ববৃধানঃ) বর্ধিত, (ভূর্যোজাঃ) মহাবলী, (শত্রুঃ) আমাদের শত্রু (দাসায়) দানপাত্র দাস কে (ভিয়সম্) ভয় (দধাতি) প্রদান করে। (অব্যনৎ) গতিশূন্য, স্থাবর, (চ)(ব্যনৎ) গতিসম্পন্ন জঙ্গম জগৎ (চ) নিশ্চিতরূপে [পরমাত্মার মধ্যে] (সস্নি) সন্নিবিষ্ট আছে, (প্রভৃতা) উত্তমরূপে পুষ্ট করা প্রাণী (মদেষু) আনন্দে (তে) তোমার (সম্ নবন্ত= ০- ন্তে) যথাবৎ স্তুতি করে ॥৫॥

    भावार्थ

    সর্ব শক্তিমান্ পরমেশ্বর সমস্ত জগতে ব্যাপক হয়ে সবকিছুকে ধারণ করেন। উনার মহিমা জ্ঞাত হয়ে সকল মনুষ্য পুরুষার্থপূর্বক নিজের বিঘ্নের নাশ করে প্রসন্ন হোক ॥৫॥

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    भाषार्थ

    (শবসা) নিজ বলের কারণে (বাবৃধানঃ) সবথেকে বর্ধিত, (ভূর্যোজাঃ) অতি-ওজস্বী পরমেশ্বর, (শত্রুঃ) পাপের বিনাশ করেন, এবং (দাসায়) অন্যদের ক্ষয়কারী ব্যক্তির জন্য (ভিয়সম্) ভয় (দধাতি) উপস্থিত করেন। তিনি (অব্যনৎ) অপ্রাণী জগৎ (চ) এবং (ব্যনৎ) প্রাণীজগৎকে (সস্নিঃ) শুদ্ধ করেন। হে পরমেশ্বর! (মদেষু) আপনার দ্বারা প্রদত্ত আনন্দ এবং তৃপ্তিতে (প্রভৃতাঃ) পরিপুষ্ট প্রাণী, (সম্) মিলে, (তে) আপনার (নবন্ত) স্তুতি করে।

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