Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 107 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 6
    ऋषिः - बृहद्दिवोऽथर्वा देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-१०७
    32

    त्वे क्रतु॒मपि॑ पृञ्चन्ति॒ भूरि॒ द्विर्यदे॒ते त्रिर्भ॑व॒न्त्यूमाः॑। स्वा॒दोः स्वादी॑यः स्वा॒दुना॑ सृजा॒ सम॒दः सु मधु॒ मधु॑ना॒भि यो॑धीः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वे इति॑ । क्रतु॑म् । अपि॑ । पृ॒ञ्च॒न्ति । भूरि॑ । द्वि:। यत् । ए॒ते । त्रि: । भ‍व॑न्ति । ऊमा॑: ॥ स्वा॒दो । स्वादी॑य: । स्वा॒दुना॑ । सृ॒ज॒ । सम् । अ॒द: । सु । मधु॑ । मधु॑ना । अ॒भि । यो॒धी॒: ॥१०७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वे क्रतुमपि पृञ्चन्ति भूरि द्विर्यदेते त्रिर्भवन्त्यूमाः। स्वादोः स्वादीयः स्वादुना सृजा समदः सु मधु मधुनाभि योधीः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वे इति । क्रतुम् । अपि । पृञ्चन्ति । भूरि । द्वि:। यत् । एते । त्रि: । भ‍वन्ति । ऊमा: ॥ स्वादो । स्वादीय: । स्वादुना । सृज । सम् । अद: । सु । मधु । मधुना । अभि । योधी: ॥१०७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 107; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (1)

    विषय

    १-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] (त्वे अपि) तुझमें ही (क्रतुम्) अपनी बुद्धि को (भूरि) बहुत प्रकार से [सब प्राणी] (पृञ्चन्ति) जोड़ते हैं, (एते) यह सब (ऊमाः) रक्षक प्राणी (द्विः) दो बार [स्त्री-पुरुष रूप से] (त्रिः) तीन-बार [स्थान, नाम और जन्म रूप से] (भवन्ति) रहते हैं। (यत्) क्योंकि (स्वादोः) स्वादु से (स्वादीयः) अधिक स्वादु मोक्ष सुख को (स्वादुना) स्वादु [सांसारिक सुख] के साथ (सम् सृज) संयुक्त कर, (अदः) उस (मधु) मधुर [मोक्ष सुख] को (मधुना) मधुर [सांसारिक] ज्ञान के साथ (सु) भले प्रकार (अभि) सब ओर से (योधीः) तूने पहुँचाया है ॥६॥

    भावार्थ

    लिङ्गरहित आत्मा कभी स्त्री कभी पुरुष होकर अपने कर्मानुसार मनुष्य आदि शरीर, नाम और जाति भोगता है। सब प्राणी परमेश्वर की महिमा जानकर सांसारिक व्यवहार द्वारा मोक्ष सुख प्राप्त करें, जैसे कि पूर्वज ऋषियों ने वेद द्वारा प्राप्त किया है ॥६॥

    टिप्पणी

    ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Subject

    Agni Devata

    Meaning

    And they all, celebrants of divinity, surrender all actions and prayers to you when they join in couples and grow to three in the family. O lord sweeter than sweetness itself, join the sweets of life with honey and with divine sweetness and bliss create life overflowing with love and ecstasy.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O Almighty Divinity. All concentrate their mental vigour on you. These your protective forces multiply them twice and thrice. O Lord, you blend what is sweeter to sweet with greater sweetness and you bring to emancipated souls this happiness augmented with blessedness.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top