अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 8
ऋषिः - बृहद्दिवोऽथर्वा
देवता - इन्द्रः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त-१०७
39
त्वया॑ व॒यं शा॑शद्महे॒ रणे॑षु प्र॒पश्य॑न्तो यु॒धेन्या॑नि॒ भूरि॑। चो॒दया॑मि त॒ आयु॑धा॒ वचो॑भिः॒ सं ते॑ शिशामि॒ ब्रह्म॑णा॒ वयां॑सि ॥
स्वर सहित पद पाठत्वया॑ । व॒यम् । शा॒श॒द्म॒हे॒ । रणे॑षु । प्र॒ऽपश्य॑न्त: । यु॒धेन्या॑नि । भूरि॑ ॥ चो॒दया॑मि । ते॒ । आयु॑धा । वच॑:ऽभि: । सम् । ते॒ । शि॒शा॒मि॒ । ब्रह्म॑णा । वयां॑सि ॥१०७.८॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वया वयं शाशद्महे रणेषु प्रपश्यन्तो युधेन्यानि भूरि। चोदयामि त आयुधा वचोभिः सं ते शिशामि ब्रह्मणा वयांसि ॥
स्वर रहित पद पाठत्वया । वयम् । शाशद्महे । रणेषु । प्रऽपश्यन्त: । युधेन्यानि । भूरि ॥ चोदयामि । ते । आयुधा । वच:ऽभि: । सम् । ते । शिशामि । ब्रह्मणा । वयांसि ॥१०७.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
१-१२ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(भूरि) बहुत से (युधेन्यानि) युद्धों को (प्रपश्यन्तः) देखते हुए (वयम्) हम लोग (त्वया) तेरे साथ (रणेषु) रणक्षेत्रों में [शत्रुओं को] (शाशद्महे) मार गिराते हैं। (ते) तेरे (वचोभिः) वचनों से (आयुधा) अपने शस्त्रों को (चोदयामि) मैं आगे बढ़ाता हूँ और (ते) तेरे (ब्रह्मणा) ब्रह्मज्ञान से (वयांसि) अपने जीवनों को (सम्) यथावत् (शिशामि) तीक्ष्ण करता हूँ ॥८॥
भावार्थ
शूर-वीर मनुष्य परमेश्वर में विश्वास करके पुरुषार्थपूर्वक बड़े-बड़े कार्य सिद्ध करते हैं ॥८॥
टिप्पणी
४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥
विषय
प्रभु की उपासना के द्वारा शत्रु-विजय
पदार्थ
१. हे प्रभो। (वयम्) = हम (रणेषु) = संग्रामों में त्वया आपके साथ (प्रपश्यन्त:) = अच्छी प्रकार से देखते हुए-ज्ञान को प्राप्त करते हुए (युधेन्यानि) = युद्ध करने योग्य 'काम, क्रोध, लोभ' आदि आसुरभावों को (भूरि) = खूब ही (शाशद्महे) = नष्ट करनेवाले हों। हमारे अन्दर छिपकर रहनेवाले काम-क्रोध आदि शत्रुओं को हम अवश्य विनष्ट करनेवाल हों। २. (ते) = आपसे दिये हुए (आयुधा) = 'इन्द्रिय, मन व बुद्धि रूप अस्त्रों को (वचोभि:) = आपके वेद में दिये गये वचनों [निर्देशों] के अनुसार (चोदयामि) = प्रेरित करता है। (ते ब्रह्मणा) = आपके इस वेदज्ञान व स्तवन से (वयांसि) = मैं अपने 'बाल्य, यौवन व वार्धक्य' में विभक्त जीवनों को (संशिशामि) = तीन करता हैं। मैं अपनी शक्ति व बुद्धि को तीन बनाता हूँ और इसप्रकार वासनारूप शत्रुओं को विनष्ट करनेवाला होता हूँ।
भावार्थ
प्रभु से मिलकर हम वासनारूप शत्रुओं को युद्ध में पराजित करें। इस युद्ध के लिए ज्ञान की वाणियों के द्वारा 'इन्द्रिय, मन व बुद्धि' रूप अस्त्रों को तीन करें।
भाषार्थ
हे परमेश्वर! (रणेषु) देवासुर-संग्रामों में, (युधेन्यानि) युद्ध करने योग्य (भूरि) प्रभूत आसुरी-वासनाओं को (प्र पश्यन्तः) देखते हुए (वयम्) हम, (त्वया) आपकी सहायता द्वारा (शाशद्महे) उनका विनाश करते हैं, और (वचोभिः) वैदिक वचनों के अनुसार (ते) आप द्वारा दर्शाए गये (आयुधा) आयुधों को (चोदयामि) प्रेरित करता हूँ, और (ते) आपके द्वारा दर्शाए (वयांसि) बाणों को (ब्रह्मणा) वेदोक्त विधि द्वारा (सं शिशामि) सम्यक् प्रकार से तेज करता हूँ।
टिप्पणी
[वयांसि=इषवः—“अथापीषुनामेह भवति” (निरु০ २.२.६)। आयुुधा, वयांसि=आध्यात्मिक-आयुध और आध्यात्मिक-बाण; यथा—यम, नियम, प्रत्याहार, ध्यान, ईश्वर-प्राणिधान। तथा असङ्ग-शस्त्र (गीता १५.३)। तथा “तीक्ष्णेषवो ब्राह्मणा हेतिमन्तः০” (अथर्व০ ५.१८.९)।]
विषय
परमेश्वर।
भावार्थ
(४-१२) ये ९ मन्त्र देखो अथर्व० का० ५। २। १-९॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—१-३ वत्सः, ४-१२ बृहद्दिवोऽथर्वा, १३-१४ ब्रह्मा, १५ कुत्सः। देवता—१-१२ इन्द्र, १३-१५ सूर्यः। छन्दः—१-३ गायत्री, ४-१२,१४,१५ त्रिष्टुप, १३ आर्षीपङ्क्ति॥
इंग्लिश (4)
Subject
Agni Devata
Meaning
With your divine inspiration, well knowing the weapons of war, we fight out the enemies of life in the battles of humanity. I strengthen and calibrate the arms and ammunitions for battle by your divine words, and by the same divine formula, I sharpen the target efficacy of the arrows and missiles of defence and offence.
Translation
O Almighty God, we realising great fury of wars smite down the enemies in balles with you. Through your advice I impel my arms. I make my living swift and sharp with your knowledge.
Translation
O Almighty God, we realizing great fury of wars smite down the enemies in balles with you. Through your advice I impel my arms. I make my living swift and sharp with your knowledge.
Translation
See Atharva, 5.2. 6
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४-१२−एते मन्त्रा व्याख्याताः-अथ० ।२।१-९ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১-১২ পরমেশ্বরগুণোপদেশঃ
भाषार्थ
(ভূরি) অনেক (যুধেন্যানি) যুদ্ধ (প্রপশ্যন্তঃ) দর্শন করে (বয়ম্) আমরা (ত্বয়া) তোমার সাথে (রণেষু) রণক্ষেত্রে [শত্রুদের] (শাশদ্মহে) হনন করি। (তে) তোমার (বচোভিঃ) বচনের দ্বারা (আয়ুধা) নিজের শস্ত্র-সমূহকে (চোদয়ামি) সামনে প্রেরণ করি এবং (তে) তোমার (ব্রহ্মণা) ব্রহ্মজ্ঞান দ্বারা (বয়াংসি) নিজের জীবনকে (সম্) যথাবৎ (শিশামি) তীক্ষ্ণ করি ॥৮॥
भावार्थ
বীর মনুষ্য পরমেশ্বরের প্রতি বিশ্বাস করে পুরুষার্থপূর্বক মহৎ-মহৎ কার্য সিদ্ধ করে ॥৮॥
भाषार्थ
হে পরমেশ্বর! (রণেষু) দেবাসুর-সংগ্রামে, (যুধেন্যানি) যুদ্ধ করার যোগ্য (ভূরি) প্রভূত আসুরিক-বাসনাকে (প্র পশ্যন্তঃ) দেখে (বয়ম্) আমরা, (ত্বয়া) আপনার সহায়তা দ্বারা (শাশদ্মহে) উহার বিনাশ করি, এবং (বচোভিঃ) বৈদিক বচন অনুসারে (তে) আপনার দ্বারা প্রদর্শিত (আয়ুধা) আয়ুধ (চোদয়ামি) প্রেরিত করি, এবং (তে) আপনার দ্বারা প্রদর্শিত (বয়াংসি) বাণকে (ব্রহ্মণা) বেদোক্ত বিধি দ্বারা (সং শিশামি) সম্যক্ প্রকারে তীক্ষ্ণ করি।
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal