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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 112 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 112/ मन्त्र 2
    ऋषिः - सुकक्षः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-११२
    42

    यद्वा॑ प्रवृद्ध सत्पते॒ न म॑रा॒ इति॒ मन्य॑से। उ॒तो तत्स॒त्यमित्तव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । वा॒ । प्र॒ऽवृ॒द्ध॒ । स॒त्ऽप॒ते॒ । न । म॒रै॒ । इति॑ । मन्य॑से ॥ स॒तो इति॑ । तत् । स॒त्यम् । इत् । तव॑ ॥११२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यद्वा प्रवृद्ध सत्पते न मरा इति मन्यसे। उतो तत्सत्यमित्तव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । वा । प्रऽवृद्ध । सत्ऽपते । न । मरै । इति । मन्यसे ॥ सतो इति । तत् । सत्यम् । इत् । तव ॥११२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 112; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्य के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रवृद्ध) हे बढ़े हुए (सत्पते) सत्पुरुषों के रक्षक ! [पुरुष] (वा) और (यत्) जो (इति) ऐसा (मन्यसे) तू मानता है−(न मरै) मैं न मरूँ, (उतो) सो (तत्) वह (तव) तेरा [वचन] (सत्यम्) सत्य (इत्) ही [होवे] ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्न करके सत्पुरुषों की रक्षा करते हुए धर्म में प्रवृत्त रहकर अपना नाम बनाये रक्खें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(यत्) यदि (वा) च (प्रवृद्ध) प्रवर्धमान (सत्पते) सतां पालक (न) निषेधे (मरै) अहं म्रिये (इति) एवम् (मन्यसे) बुध्यसे (उतो) अपि च (तत्) वचनम् (सत्यम्) यथार्थम् (इत्) एव (तव) ॥

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    विषय

    अमरत्व का ज्ञान

    पदार्थ

    १. हे (प्रवृद्ध) = ज्ञान के दृष्टिकोण से वृद्धि को प्राप्त हुए-हुए (सत्पते) = उत्तम कर्मों के रक्षक जीव । (यद् वा) = जब निश्चय से 'न मरा'-'मैं मरता नहीं। मैं तो अमर हूँ' (इति मन्यसे) = इसप्रकार तू जानता है तो (उत उ) = निश्चय से (तव) = तेरा (तत्) = वह अपने को अजरामर जानना (सत्यम् इत्) = सत्य ही है। २. अपने अमरत्व को पहचानना ही वास्तिवक सत्य को पाना है।

    भावार्थ

    हम आने अमरत्व को पहचानकर शरीरादि से ऊपर उठें। यही ज्ञान हमें प्राकृतिक भोगों की तुच्छता को स्पष्ट करता हुआ उनके बन्धन में पड़ने से बचाएगा।

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    भाषार्थ

    (प्रवृद्ध) हे पुराण पुरुष या सद्गुणों में बढ़े हुए! (सत्पते) हे सच्चेरक्षक! (यद् वा) ज्ञानी लोगों द्वारा जो आप (मन्यसे) माने जाते हैं कि आप (न मरा) मरते नहीं कि आप अजर अमर हैं, (उत उ तत्) वह तो (तव) आपके सम्बन्ध में (सत्यम् इत्) सत्य ही है।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indi a Devata

    Meaning

    Indra, O mind, O soul, ever rising as the world expands, protector of truth and reality, if you believe and say in all faith that “I shall not die”, then it shall be true, an inviolable reality.

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    Translation

    O Protector of all existences, as you think, I shall never die, O mighty one so this your thought is true indeeed.

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    Translation

    O Protector of all existences, as you think, I shall never die, O mighty one so this your thought is true indeed.

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    Translation

    O Mighty Lord, king or soul, whatever means of joy and happiness are created in the highest state of bliss or near at hand in this world, Thou hast access to all these.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(यत्) यदि (वा) च (प्रवृद्ध) प्रवर्धमान (सत्पते) सतां पालक (न) निषेधे (मरै) अहं म्रिये (इति) एवम् (मन्यसे) बुध्यसे (उतो) अपि च (तत्) वचनम् (सत्यम्) यथार्थम् (इत्) एव (तव) ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    মনুষ্যকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (প্রবৃদ্ধ) হে প্রবর্ধমান/প্রবৃদ্ধ (সৎপতে) সৎপুরুষদের রক্ষক! [পুরুষ] (বা) এবং (যৎ) যে (ইতি) এরূপ (মন্যসে) তুমি বোধ করো যে- (ন মরৈ) আমি মরব না, (উতো) সুতরাং (তৎ) তা (তব) তোমার [বচন] (সত্যম্) সত্যই (ইৎ) [হোক] ॥২॥

    भावार्थ

    মানুষ প্রচেষ্টা দ্বারা সৎপুরুষদের রক্ষা করে ধর্মে প্রবৃত্ত থেকে নিজের নাম রেখে যাক ॥২॥

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    भाषार्थ

    (প্রবৃদ্ধ) হে পুরাণ পুরুষ বা সদ্গুণ বর্ধিত! (সৎপতে) হে সত্যরক্ষক! (যদ্ বা) জ্ঞানী লোকেদের দ্বারা যে আপনি (মন্যসে) মান্য হন যে, আপনি (ন মরা) অমর, (উত উ তৎ) তা তো (তব) আপনার বিষয়ে (সত্যম্ ইৎ) সত্যই।

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