अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 133/ मन्त्र 5
श्लक्ष्णा॑यां॒ श्लक्ष्णि॑कायां॒ श्लक्ष्ण॑मे॒वाव॑ गूहसि। न वै॑ कुमारि॒ तत्तथा॒ यथा॑ कुमारि॒ मन्य॑से ॥
स्वर सहित पद पाठश्लक्ष्णा॑या॒म् । श्लक्ष्णि॑काया॒म् । श्लक्ष्ण॑म् । ए॒व । अव॑ । गूहसि । न । वै । कु॒मारि॒ । तत् । तथा॒ । यथा॑ । कुमारि॒ । मन्य॑से ॥१३३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
श्लक्ष्णायां श्लक्ष्णिकायां श्लक्ष्णमेवाव गूहसि। न वै कुमारि तत्तथा यथा कुमारि मन्यसे ॥
स्वर रहित पद पाठश्लक्ष्णायाम् । श्लक्ष्णिकायाम् । श्लक्ष्णम् । एव । अव । गूहसि । न । वै । कुमारि । तत् । तथा । यथा । कुमारि । मन्यसे ॥१३३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
स्त्रियों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(श्लक्ष्णायाम्) चिकनी [कोमल] और (श्लक्ष्णिकायाम्) मनोहर वाणी में (श्लक्ष्णम्) स्नेह [प्रेम] को (एव) निश्चय करके (अव) शुद्धि के साथ (गूहसि) तू गुहा [हृदय] में रखती है। (कुमारि) हे कुमारी ! ......... [म० १] ॥॥
भावार्थ
स्त्री आदि मधुर मनोहर वाणी से शुद्ध प्रेम के साथ उपदेश करें, स्त्री आदि ............. [म० १] ॥॥
टिप्पणी
मनु महाराज ने कहा है-मनुस्मृति अध्याय २ श्लोक १९ ॥ अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम्। वाक् चैव मधुरा श्लक्ष्णा प्रयोज्या धर्ममिच्छता ॥ (भूतानाम्) प्राणियों की (अहिंसया एव) अहिंसा [दुःख न देने] से ही (श्रेयः) कल्याणकारी (अनुशासनम्) शासन वा उपदेश (कार्यम्) करना चाहिये। (च) और (धर्मम् इच्छता) धर्म चाहनेवाले करके (वाक् एव) वाणी भी (मधुरा) मधुर, (श्लक्ष्णा) मनोहर (प्रयोज्या) बोलनी चाहिये ॥ −(श्लक्ष्णायाम्) श्लिषेरच्चोपधायाः। उ० ३।१९। श्लिष आलिङ्गने संसर्गे च-क्स्न, इकारस्य अकारः। चिक्कणायाम्। कोमलायाम् (श्लक्ष्णिकायाम्) श्लक्ष्ण-कन् स्वार्थे, टाप् अत इत्त्वम्। मनोहरायां वाचि-यथा मनु २।१९। (श्लक्ष्णम्) स्नेहम्। प्रेमभावम् (एव) अवधारणे (अव) शुद्धौ। शुद्धया (गूहसि) गुह संवरणे। गुहायां हृदये स्थापयसि। अन्यत्-म० १ ॥
विषय
श्लक्ष्णा Vs श्लक्ष्णिका
पदार्थ
१. दो प्रकार की चित्तवृत्तियाँ हैं-एक 'श्लक्ष्णा' [Honest, candid, Beautiful, charming] छल-छिद्र-शून्य उदार चित्तवृत्ति हैं जो वस्तुतः सुन्दर हैं। दूसरी 'श्लक्ष्णिका' [कुत्सिते-कन्]-श्लक्ष्णा से विपरीत कुत्सित छल-छिद्रपूर्ण चित्तवृत्ति है। हे कुमारि! तू इस बात का ध्यान करना कि (श्लक्ष्णायां श्लक्षिणकायाम्) = इन श्लक्ष्णा और श्लक्ष्णिका चित्तवृत्तियों में तु (श्लक्ष्णाम् एव) = छल-छिद्रशून्य सुन्दर चित्तवृत्ति को ही (अवगूहसि) = [गह-Hug]-आलिंगन करती है। हमें संसार में उत्तम चित्तवृत्ति को ही अपनाना चाहिए। संसार की चमक-दमक में फँसकर कुटिलता की ओर न झुक जाना चाहिए। ३. हे कुमारि! तू यह समझ ले कि (वै) = निश्चय से (तत तथा न) = यह संसार वैसा नहीं है, हे कुमारि! (यथा मन्यसे) = जैसा तु इसको समझ रही है। छल-छिद्र से प्राप्त ऐश्वर्य अन्ततः कल्याण देनेवाले नहीं।
भावार्थ
हम संसार में छल-छिद्र से शून्य, उदार चित्तवृत्तिवाले बनें । संसार के स्वरूप को ठीक से समझने का यत्न करें।
भाषार्थ
(श्लक्ष्णायाम्) सुकुमार-मातृशक्ति में, तथा (श्लक्ष्णिकायाम्) अतिसुकुमार-मातृशक्ति में, हे परमेश्वरीय मातृशक्ति! तू (श्लक्ष्णम् एव) सुकुमार-भावों को ही (अवगूहसि) छिपाए रखती है। (कुमारि) हे कुमारी! (वै) निश्चय से (तत्) वह तेरा कथन या मानना (न तथा) तथ्य नहीं है, (यथा) जैसे कि तू (कुमारि) हे कुमारी! (मन्यसे) मानती है।
टिप्पणी
[कुमारी पुनः परमेश्वरीय-मातृशक्ति को युक्तिरूप में उपस्थित करती है। वह ख्याल करती है कि सांसारिक मातृशक्ति में, हे परमेश्वरीय मातृशक्ति! तूने सुकुमार-भावनाओं का प्रदान किया है, जिनके द्वारा उनका दयार्द्र-हृदय बच्चों के कष्ट-निवारण में सदा तत्पर रहता है। हे परमेश्वर! आप भी जगन्माता हैं, तब आपका भी तो हृदय अपनी सन्तानों के कष्ट-निवारण में तत्पर होना चाहिए। तब सन्तानों के रजस् और तमस् की निवृत्ति भी आपकी स्वाभाविक मातृ-दया द्वारा अवश्य हो जाएगी। श्लक्ष्णिका=अनुकम्पायां “कः”, (अष्टा০ ५.३.७६)। अनुकम्पा द्वारा मातृ-शक्ति की अतिसुकुमारता का द्योतन किया है।]
इंग्लिश (4)
Subject
Kumari
Meaning
In the reduced as well as in the refined fluctuations you only hide and retain their latencies in the subtlest form. Release and freedom, innocent maiden, is not possible the way you think and believe.
Translation
As do the wife and husband, O Divine Power, You cover the subtle matter in the liminous subtle ones. O immature girl, it not so as you. O girl...fancy.
Translation
As do the wife and husband, O Divine Power, You cover the subtle matter in the luminous subtle ones. O immature girl, it not so as you. O girl...fancy.
Translation
Just as a loving husband embraces his charming and beloved wife, similarly does the almighty God, desirous of creation of the universe, embraces the Prakriti, which is also impelled by forces of cohesion and attraction, inherent in it. O virgin, .....it. (as above).
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
मनु महाराज ने कहा है-मनुस्मृति अध्याय २ श्लोक १९ ॥ अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम्। वाक् चैव मधुरा श्लक्ष्णा प्रयोज्या धर्ममिच्छता ॥ (भूतानाम्) प्राणियों की (अहिंसया एव) अहिंसा [दुःख न देने] से ही (श्रेयः) कल्याणकारी (अनुशासनम्) शासन वा उपदेश (कार्यम्) करना चाहिये। (च) और (धर्मम् इच्छता) धर्म चाहनेवाले करके (वाक् एव) वाणी भी (मधुरा) मधुर, (श्लक्ष्णा) मनोहर (प्रयोज्या) बोलनी चाहिये ॥ −(श्लक्ष्णायाम्) श्लिषेरच्चोपधायाः। उ० ३।१९। श्लिष आलिङ्गने संसर्गे च-क्स्न, इकारस्य अकारः। चिक्कणायाम्। कोमलायाम् (श्लक्ष्णिकायाम्) श्लक्ष्ण-कन् स्वार्थे, टाप् अत इत्त्वम्। मनोहरायां वाचि-यथा मनु २।१९। (श्लक्ष्णम्) स्नेहम्। प्रेमभावम् (एव) अवधारणे (अव) शुद्धौ। शुद्धया (गूहसि) गुह संवरणे। गुहायां हृदये स्थापयसि। अन्यत्-म० १ ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
স্ত্রীণাং কর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(শ্লক্ষ্ণায়াম্) মসৃণ [কোমল] এবং (শ্লক্ষ্ণিকায়াম্) মনোহর বাণীতে (শ্লক্ষ্ণম্) স্নেহকে [প্রেমকে] (এব) নিশ্চিতভাবে (অব) শুদ্ধতার সহিত (গূহসি) তুমি গুহায় [হৃদয়ে] স্থাপন করো। (কুমারি) হে কুমারী! ......... [ম০ ১] ॥৫॥
भावार्थ
স্ত্রী আদি মধুর মনোহর বাণী দ্বারা শুদ্ধ প্রেমের সহিত উপদেশ করুক, স্ত্রী আদি............. [ম০ ১] ॥৫॥ মনু মহারাজ বলেছেন-মনুস্মৃতি অধ্যায় ২ শ্লোক ১৯ ॥ অহিংসয়ৈব ভূতানাং কার্যং শ্রেয়োঽনুশাসনম্। বাক্ চৈব মধুরা শ্লক্ষ্ণা প্রয়োজ্যা ধর্মমিচ্ছতা ॥ (ভূতানাম্) প্রাণীদের (অহিংসয়া এব) অহিংসা দ্বারাই (শ্রেয়ঃ) কল্যাণকারী (অনুশাসনম্) শাসন বা উপদেশ (কার্যম্) করা উচিৎ। (চ) এবং (ধর্মম্ ইচ্ছতা) ধর্ম অভিলাষী করে (বাক্ এব) বাণীও (মধুরা) মধুর, (শ্লক্ষ্ণা) মনোহর (প্রয়োজ্যা) বলা উচিৎ ॥
भाषार्थ
(শ্লক্ষ্ণায়াম্) সুকুমার-মাতৃশক্তিতে, তথা (শ্লক্ষ্ণিকায়াম্) অতিসুকুমার-মাতৃশক্তিতে, হে পরমেশ্বরীয় মাতৃশক্তি! তুমি (শ্লক্ষ্ণম্ এব) সুকুমার-ভাবকেই (অবগূহসি) লুকিয়ে/সুপ্ত রাখো। (কুমারি) হে কুমারী! (বৈ) নিশ্চিতরূপে (তৎ) তা তোমার কথন বা মান্যতা (ন তথা) তথ্য নয়, (যথা) যেমন তুমি (কুমারি) হে কুমারী! (মন্যসে) মান্য করো।
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