अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 143/ मन्त्र 5
ऋषिः - पुरमीढाजमीढौ
देवता - अश्विनौ
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - सूक्त १४३
47
आ नो॑ यातं दि॒वो अच्छा॑ पृथि॒व्या हि॑र॒ण्यये॑न सु॒वृता॒ रथे॑न। मा वा॑म॒न्ये नि य॑मन्देव॒यन्तः॒ सं यद्द॒दे नाभिः॑ पू॒र्व्या वा॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । न॒: । या॒त॒म् । दि॒व: । अच्छ॑ । पृ॒थि॒व्या: । हि॒र॒ण्यये॑न । सु॒ऽवृता॑ । रथे॑न ॥ मा । वा॒म् । अ॒न्ये । नि । य॒म॒न् । दे॒व॒यन्त॑: । सम् । यत् । द॒दे । नाभि॑: । पू॒र्व्या । वा॒म् ॥१४३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो यातं दिवो अच्छा पृथिव्या हिरण्ययेन सुवृता रथेन। मा वामन्ये नि यमन्देवयन्तः सं यद्ददे नाभिः पूर्व्या वाम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । न: । यातम् । दिव: । अच्छ । पृथिव्या: । हिरण्ययेन । सुऽवृता । रथेन ॥ मा । वाम् । अन्ये । नि । यमन् । देवयन्त: । सम् । यत् । ददे । नाभि: । पूर्व्या । वाम् ॥१४३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
१-७; ९ राजा और मन्त्री के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे राजा और मन्त्री !] (दिवः) आकाश से और (पृथिव्याः) भूमि से (हिरण्ययेन) ज्योति रखनेवाले [अग्नि आदि प्रकाशबल से चलनेवाले], (सुवृता) शीघ्र घूमनेवाले [चलनेवाले] (रथेन) रमणीय रथ [विमान आदि वाहन] द्वारा (अच्छ) अच्छे प्रकार (नः) हमको (आ यातम्) दोनों प्राप्त होओ, (अन्ये) अन्य (देवयन्तः) पीड़ा देते हुए लोग (वाम्) तुम दोनों को (मा नि यमन्) न रोकें, (यत्) क्योंकि (पूर्व्या) पुरानी (नाभिः) बन्धुता ने (वाम्) तुम दोनों को (संददे) बाँधा है ॥॥
भावार्थ
राजा और मन्त्री आकाश और पृथिवी पर चलनेवाले यान-विमानों द्वारा शत्रुओं से बे-रोक होकर प्रजा की रक्षा करें ॥॥
टिप्पणी
−(आ) (नः) अस्मान् (यातम्) प्राप्नुतम् (दिवः) आकाशात् (अच्छ) सांहितिको दीर्घः। सम्यक् (पृथिव्याः) भूमेः सकाशात् (हिरण्ययेन) म० ४। (सुवृता) सुवर्तशीलेन। शीघ्रगामिना (रथेन) विमानादियानेन (वाम्) युवाम् (अन्ये) इतरे (मा नि यमन्) न निगृहन्तु (देवयन्तः) दिव अर्दने=पीडने चुरादिः-शतृ। पीडयन्तो जनाः (यत्) यतः (सं ददे) ददातेर्लिट्। सन्दानं बन्धनम्, बन्धे कृतवती (नाभिः) नहो भश्च। उ० ४।१२६। णह बन्धने-इञ्, हस्य भः। बन्धनम् (पूर्व्यः) पूर्व्यं पुराणनाम-निघ० ३।२७। प्राचीना (वाम्) युवाम् ॥
विषय
'हिरण्यय-सुवृत्' रथ
पदार्थ
१. हे प्राणापानो ! (दिवः पृथिव्याः अच्छा) = द्युलोक व पृथिवीलोक का लक्ष्य करके, अर्थात् मस्तिष्क व शरीर का ध्यान करके (न:) = हमारे लिए आप (हिरण्ययेन) = ज्योतिर्मय (सुवृता) = [सुष्टु वर्तते]-बिलकुल ठीक-ठाक, अर्थात् सर्वांगपूर्ण (रथेन) = शरीर-रथ से (आयातम्) = प्राप्त होओ। प्राणापान की साधना ही इस शरीर-रथ को सुन्दर बनाती है। २. (अन्ये) = दूसरे (देवयन्तः) = धूत आदि क्रीड़ाओं को करते हुए लोग (वाम्) = आपको (मा नियमन्) = रोकनेवाले न हों, अर्थात् हम अन्य व्यवहारों में उलझकर आपकी साधना को कभी भूल न जाएँ। (यत्) = चूँकि (वाम्) = आपका तो (पूर्व्या) = सर्वमुख्य-सर्वप्रथम (नाभिः) = सम्बन्ध [नह बन्धने] (सं ददे) = मुझे आपके साथ बाँधता है। मेरा सर्वोत्तम सम्बन्ध आपके साथ ही तो है। आत्मा के साथ प्राणों का दृढ़ सम्बन्ध है।
भावार्थ
प्राणसाधना से ही हमारा मस्तिष्क हिरण्यय [ज्योतिर्मय] बनता है तथा शरीर सुवृत्-पूर्ण स्वस्थ होता है।
भाषार्थ
हे अश्वियो! (हिरण्ययेन) सुवर्ण की सी चमकवाले, (सुवृता) अच्छे प्रकार मार्ग पर चलनेवाले (रथेन) रथ के द्वारा, (नः अच्छा) हम प्रजाजनों के अभिमुख, (दिवः) अन्तरिक्षमार्ग से, तथा (पृथिव्याः) पृथिवी के मार्ग से (आ यातम्) आया कीजिए। (देवयन्तः अन्ये) आप-देवों की कामनावाले अन्य प्रजाजन, अर्थात् आपके अन्य श्रद्धालु प्रजाजन, (वाम्) आप दोनों को, (मा नियमन्) मध्य मार्ग में न रोक़ लें, (यत्) क्योंकि (वाम्) आप-दोनों का (पूर्व्या) पूर्व काल से चला आया (नाभिः) सम्बन्ध आप दोनों को (संददे) प्रेम के कारण बांध सकता है, रोक सकता है।
टिप्पणी
[अन्ये—जिस स्थान में जाने का वचन आपने पहिले से दे रखा है, उस स्थान में आप समय पर पहुंचिए। आपके मार्ग में रहनेवाले अन्य प्रजाजन आपको बीच में न रोक लें। उनके द्वारा आपको रोकना प्रेमसम्बन्ध के कारण सम्भावित हो जाता है। नाभिः=नह बन्धने। संददे=संदानम् (रस्सी=प्रेमरस्सी)।
विषय
विद्वानों के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (अश्विना) अश्वियो ! एक रथ में संयुक्त अश्वों के समान एकत्र एक कार्य में नियुक्त विद्वान् पुरुषो ! तुम दोनों (दिवः) आकाशमार्ग से और (पृथिव्याः) पृथिवीमार्ग से भी (सुवृता) अच्छी प्रकार चलने वाले (रथेन) रथ से (नः आयातम्) हमें प्राप्त होओ। (यत्) जब कि (पूर्व्या नाभिः) पूर्व का कोई बांधने वाला कारण (संददे) बांधता हो तो (अन्ये) दूसरे लोग (देवयन्तः) आप विद्वानों की परिचर्या करने के इच्छुक होकर भी (वाम्) तुम दोनों को (मा नियमन्) न बांधे। जब दूसरे से कोई वचन हो जाय तो वे उसको निभाने के लिये औरों से उसी समय न बंधे, प्रत्युत पूर्व स्वीकृत कार्य को यथासमय करने के लिये शीघ्र यान द्वारा समय पर पहुंचे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-७ पुरुमीढाजमीढावृषी। त्रिष्टुभः। ८ मधुमती। वामदेव ऋषिः। ९ मेधातिथि मेध्यातिथी ऋषिः॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prajapati
Meaning
Come well and soon to us by the paths of heaven and earth, riding your well structured chariot of gold. Let not others detain you, nor divert you from the natural life link which the forefathers and teachers of old gave you in pursuit of Divinity.
Translation
O King and minister, you come to us with the swift car deviced with light or electricity etc. from land and from space. The other torturing forces may not hinder you as you are fastened with old bond of brother-hood.
Translation
O King and minister, you come to us with the swift car deviced with light or electricity etc. from land and from space. The other torturing forces may not hinder you as you are fastened with old bond of brother-hood.
Translation
O king or commander, or both units of energy, come to us from the heavens as well as from the earth through an aeroplane of golden color or of iron, which is well regulated and is of high speed. Let not those, whowant to show respect to you impede you in the way or any other preplanned machinations of the enemy hinder your advance.
Footnote
‘Agmilhasa’ does not refer to a family of special name but it is an epithet for the rich possessing plenty of edibles like ghee (clarified butter) etc., and wealth of gold etc.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
−(आ) (नः) अस्मान् (यातम्) प्राप्नुतम् (दिवः) आकाशात् (अच्छ) सांहितिको दीर्घः। सम्यक् (पृथिव्याः) भूमेः सकाशात् (हिरण्ययेन) म० ४। (सुवृता) सुवर्तशीलेन। शीघ्रगामिना (रथेन) विमानादियानेन (वाम्) युवाम् (अन्ये) इतरे (मा नि यमन्) न निगृहन्तु (देवयन्तः) दिव अर्दने=पीडने चुरादिः-शतृ। पीडयन्तो जनाः (यत्) यतः (सं ददे) ददातेर्लिट्। सन्दानं बन्धनम्, बन्धे कृतवती (नाभिः) नहो भश्च। उ० ४।१२६। णह बन्धने-इञ्, हस्य भः। बन्धनम् (पूर्व्यः) पूर्व्यं पुराणनाम-निघ० ३।२७। प्राचीना (वाम्) युवाम् ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
১-৭; ৯ রাজামাত্যকৃত্যোপদেশঃ
भाषार्थ
[হে রাজা এবং মন্ত্রী!] (দিবঃ) আকাশে এবং (পৃথিব্যাঃ) ভূমিতে (হিরণ্যযেন) জ্যোতি ধারক [অগ্নি আদি প্রকাশবল দ্বারা গমনকারী], (সুবৃতা) শীঘ্রগামী (রথেন) রমণীয় রথ [বিমান আদি বাহন] দ্বারা (অচ্ছ) ভালভাবে (নঃ) আমাদের (আ যাতম্) উভয়ই প্রাপ্ত হও, (অন্যে) অন্য (দেবয়ন্তঃ) পীড়াদায়ী লোক (বাম্) তোমদের উভয়কে (মা নি যমন্) যেন না বাধা দেয়, (যৎ) কারণ (পূর্ব্যা) পুরাতন (নাভিঃ) বন্ধুত্বে (বাম্) তোমাদের উভয়কে (সন্দদে) বন্ধন করেছে ॥৫॥
भावार्थ
রাজা এবং মন্ত্রী আকাশ এবং পৃথিবীতে যান-বিমানের দ্বারা শত্রুদের থেকে বাধাগ্রস্ত না হয়ে প্রজাদের রক্ষা করুক ॥৫॥
भाषार्थ
হে অশ্বিদ্বয়! (হিরণ্যযেন) সুবর্ণ সদৃশ শোভায়মান, (সুবৃতা) ভালোভাবে মার্গে গমনশীল (রথেন) রথের দ্বারা, (নঃ অচ্ছা) আমাদের প্রজাদের অভিমুখে, (দিবঃ) অন্তরিক্ষমার্গ থেকে, তথা (পৃথিব্যাঃ) পৃথিবীর মার্গ থেকে (আ যাতম্) আসুন। (দেবয়ন্তঃ অন্যে) [আপনাদের] দেবতাদের কামনাকারী অন্য প্রজাগণ, অর্থাৎ আপনার অন্য শ্রদ্ধালু প্রজাগণ, (বাম্) আপনাদের, (মা নিয়মন্) মধ্য মার্গে যেন না নিরোধ করে, (যৎ) কারণ (বাম্) আপনাদের (পূর্ব্যা) পূর্ব কাল থেকে অব্যাহত (নাভিঃ) সম্বন্ধ আপনাদের (সন্দদে) প্রেমের কারণে আবদ্ধ করতে পারে, নিরোধ করতে পারে।
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