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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 17 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 17/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - जगती सूक्तम् - सूक्त-१७
    66

    गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म्। व॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गोभि॑: । त॒रे॒म॒ । अम॑तिम् । दु॒:ऽएवा॑म् । यवे॑न । क्षुध॑म् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । विश्वा॑म् ॥ व॒यम् । राज॑ऽभि: । प्र॒थ॒मा: । धना॑नि । अ॒स्माके॑न । वृ॒जने॑न । ज॒ये॒म॒ ॥१७.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम्। वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गोभि: । तरेम । अमतिम् । दु:ऽएवाम् । यवेन । क्षुधम् । पुरुऽहूत । विश्वाम् ॥ वयम् । राजऽभि: । प्रथमा: । धनानि । अस्माकेन । वृजनेन । जयेम ॥१७.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 17; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (पुरुहूत) हे बहुतों से बुलाये गये ! [राजन्] (गोभिः) विद्याओं से (दुरेवाम्) दुर्गतिवाली (अमतिम्) कुमति [वा कङ्गाली] को और (यवेन) अन्न से (विश्वाम्) सब (क्षुधम्) भूख को (तरेम) हम हटावें। (वयम्) हम (राजभिः) राजाओं के साथ (प्रथमाः) प्रथम श्रेणीवाले होकर (धनानि) अनेक धनों को (अस्माकेन) अपने (वृजनेन) बल से (जयेम) जीतें ॥१०॥

    भावार्थ

    मनुष्य प्रयत्न करके विद्याओं द्वारा कुमति और निर्धनता हटाकर भोजन पदार्थ प्राप्त करें और अपने भुजबल से महाधनी होकर राजाओं के साथ प्रथम श्रेणीवाले होवें ॥१०॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आचुका है-अ० ७।०।७। और मन्त्र १०, ११ आगे हैं-२०।८९।१०, ११ तथा २०।९४।१०, ११ ॥ १०-अय मन्त्रो भेदेन आगतः-अ० ७।०।७ (गोभि) विद्याभिः (तरेम) अभिभवेम (अमतिम्) म० ३। दुर्बुद्धिम्। दारिद्र्यम् (यवेन) अन्नेन (क्षुधम्) बुभुक्षाम् (पुरुहूत) हे बहुभिराहूत (विश्वाम्) सर्वाम् (वयम्) (राजभिः) नृपैः (प्रथमाः) मुख्याः (धनानि) (अस्माकेन) अ० ४।३३।३। आस्माकेन। आत्मीयेन (वृजनेन) बलेन (जयेम) जयेन प्राप्नुयाम ॥

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    विषय

    गोदुग्ध से दुर्गति व दुर्मति का दूरीकरण

    पदार्थ

    १. (गोभिः) = गोदुग्धादि से हम (अमतिम्) = बुद्धिहीनता व (दुरेवाम्) = दुर्गति को (सरेम) = पार कर जाएँ। गोदुग्ध का सेवन हमें दुर्गति व दुर्मति से दूर करे। हे (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जानेवाले प्रभो! हम (यवेन) = जौ के सेवन से (विश्वाम्) = सब (क्षुधम्) = भूख को दूर कर पाएँ। २. (वयम्) = हम (राजभिः) = जीवन को दीस व नियमित बनाने के द्वारा [राज़ दीप्ती, राज्-regulate] (प्रथमा:) = शक्तियों का विस्तार करनेवाले होते हुए (अस्माकेन वृजनेन) = अपने बल के द्वारा (धनानि जयेम) = जीवन धनों का विजय करनेवाले हों।

    भावार्थ

    गोदुग्ध का सेवन हमें दुर्मति व दुर्गति से बचाए। जौ के द्वारा हम क्षुधा का निवारण करें। जीवन को दीप्त व नियमित बनाकर शक्तियों का विस्तार करते हुए धनों का विजय करें।

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    भाषार्थ

    (गोभिः) वेदवाणियों द्वारा हम (दुरेवाम्) दुष्परिणामी (अमतिम्) कुमति को (तरेम) दूर करें। तथा गौओं के सात्विक दूध द्वारा मति को हीनता को दूर करें। और (यवेन) जौ आदि सात्विक अन्नों द्वारा (विश्वां क्षुधम्) सब प्रकार की क्षुधा को दूर करें। तथा (वयम्) हम उपासक (राजभिः) योगिराजों की सहायता द्वारा, तथा (अस्माकेन वृजनेन) निज शक्तियों द्वारा (प्रथमा धनानि) श्रेष्ठ आध्यात्मिक-धनों पर (जयेम) विजय पायें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में अभ्यासियों के लिए वेदस्वाध्याय तथा सात्विक खान-पान का विधान किया है।]

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    विषय

    परमेश्वरोपासना

    भावार्थ

    हे (पुरुहूत) समस्त प्रजाओं से आदृत ! सत्कारपूर्वक बुलाये जाने योग्य ! (वयम्) हम लोग (गोभिः) गौ आदि पशुओं और उत्तम भूमियों से (अमतिम्) दरिद्रता को (तरेम) दूर करें। और (गोभिः) वेद वाणियों द्वारा (अमतिं) अज्ञान को (तरेम) पार करें। और (वयम्) हम (प्रथमाः) अति श्रेष्ठ होकर (अस्माकेन वृजनेन) अपने निजू शत्रुवारक बल से पुष्ट होकर अपने (राजभिः) राजाओं सहित (धनानि जयेम) ऐश्वयों को विजय करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १-१० कृष्ण ऋषिः। १२ वसिष्ठः। इन्द्रो देवता। १-१० जगत्यः। ११,१२ त्रिष्टुभौ। द्वादशर्चं सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indr a Devata

    Meaning

    Let us dispel the darkness of ignorance with the communication of universal knowledge, let us remove the world’s hunger with food production, let us reclaim our original wealth of knowledge, power and prosperity with our innate lights and enlightened actions. Let us dispel the darkness of ignorance with the communi¬ cation of universal knowledge, let us remove the world’s hunger with food production, let us reclaim our original wealth of knowledge, power and prosperity with our innate lights and enlightened actions.

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    Translation

    May we overcome all troublesome indigence or ignorance with cows or with vedic speeches, may we overcome hunger with corn and may we first in rank, allied with princes acquire possessions with our own exertion.

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    Translation

    May we overcome all troublesome indigence or ignorance with cows or with vedic speeches, may we overcome hunger with corn and may we first in rank, allied with princes acquire possessions with our own exertion.

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    Translation

    O much-invoked God, may be put down painful poverty by the help of our cattle and lands and remove all kinds of hunger by food-grains. We, the first in rank, allied with kings, may win riches and wealth by our power of repulsing the foes.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र कुछ भेद से ऊपर आचुका है-अ० ७।०।७। और मन्त्र १०, ११ आगे हैं-२०।८९।१०, ११ तथा २०।९४।१०, ११ ॥ १०-अय मन्त्रो भेदेन आगतः-अ० ७।०।७ (गोभि) विद्याभिः (तरेम) अभिभवेम (अमतिम्) म० ३। दुर्बुद्धिम्। दारिद्र्यम् (यवेन) अन्नेन (क्षुधम्) बुभुक्षाम् (पुरुहूत) हे बहुभिराहूत (विश्वाम्) सर्वाम् (वयम्) (राजभिः) नृपैः (प्रथमाः) मुख्याः (धनानि) (अस्माकेन) अ० ४।३३।३। आस्माकेन। आत्मीयेन (वृजनेन) बलेन (जयेम) जयेन प्राप्नुयाम ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাকর্তব্যোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (পুরুহূত) হে বহুজন দ্বারা আমন্ত্রিত! [রাজন্] (গোভিঃ) বিদ্যা দ্বারা (দুরেবাম্) দূর্গতির (অমতিম্) কুমতি [বা দারিদ্র্য]কে এবং (যবেন) অন্ন দ্বারা (বিশ্বাম্) সকল (ক্ষুধম্) ক্ষুধাকে (তরেম) আমরা দূর করবো/করি। (বয়ম্) আমরা (রাজভিঃ) রাজাদের সহিত (প্রথমাঃ) প্রথম শ্রেণীভুক্ত হয়ে (ধনানি) প্রচুর ধনসম্পদ (অস্মাকেন) নিজ (বৃজনেন) বল দ্বারা (জয়েম) জয় করি।।১০।।

    भावार्थ

    মনুষ্য প্রচেষ্টাপূর্বক বিদ্যা দ্বারা কুমতি ও নির্ধনতা দূর করে ভোজন পদার্থ প্রাপ্ত করুক এবং নিজ বাহুবল দ্বারা মহাধনী হয়ে রাজাদের সাথে প্রথম শ্রেণীভুক্ত হবে/হোক।।১০।। এই মন্ত্র কিছু ভেদপূর্বক আছে-অ০ ৭।০।৭। এবং মন্ত্র ১০, ১১ আছে-২০।৮৯।১০, ১১ তথা ২০।৯৪।১০, ১১।

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    भाषार्थ

    (গোভিঃ) বেদবাণী দ্বারা আমরা (দুরেবাম্) দুষ্পরিণামী (অমতিম্) কুমতি/কুবুদ্ধি (তরেম) দূর করি। তথা গাভীর সাত্ত্বিক দুধ দ্বারা কুমতি/কুবুদ্ধি দূর করি। এবং (যবেন) যব আদি সাত্ত্বিক অন্ন দ্বারা (বিশ্বাং ক্ষুধম্) সকল প্রকারের ক্ষুধা দূর করি। তথা (বয়ম্) আমরা উপাসকরা যেন (রাজভিঃ) যোগীরাজদের সহায়তা দ্বারা, তথা (অস্মাকেন বৃজনেন) নিজ শক্তি দ্বারা (প্রথমা ধনানি) শ্রেষ্ঠ আধ্যাত্মিক-ধনের ওপর (জয়েম) বিজয় প্রাপ্ত করি।

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