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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 19/ मन्त्र 4
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१९
    72

    पु॑रुष्टु॒तस्य॒ धाम॑भिः श॒तेन॑ महयामसि। इन्द्र॑स्य चर्षणी॒धृतः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रु॒ऽस्तु॒तस्य॑ । धाम॑ऽभि: । श॒तेन॑ । म॒ह॒या॒म॒सि॒ । इन्द्र॑स्य । च॒र्ष॒णि॒ऽधृत॑: ॥१९.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरुष्टुतस्य धामभिः शतेन महयामसि। इन्द्रस्य चर्षणीधृतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरुऽस्तुतस्य । धामऽभि: । शतेन । महयामसि । इन्द्रस्य । चर्षणिऽधृत: ॥१९.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 19; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतेन) असंख्य (धामभिः) प्रभावों से (पुरुष्टुतस्य) बहुतों करके बड़ाई किये गये और (चर्षणीधृतः) मनुष्यों के पोषण करनेवाले (इन्द्रस्य) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजा] का (महयामसि) हम सत्कार करते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    राजा और प्रजा परस्पर उन्नति करके सुख बढ़ावें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(पुरुष्टुतस्य) बहुभिः स्तुतस्य (धामभिः) धारणसामर्थ्यैः। प्रभावैः (शतेन) असख्यैः (महयामसि) पूजनं सत्कारं कुर्मः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (चर्षणीधृतः) चर्षणीनां मनुष्याणां धारकस्य पोषकस्य ॥

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    विषय

    शतेन धामभिः

    पदार्थ

    १. (पुरुष्टुतस्य) = [पुरु स्तुतं यस्य] पालक व पूरक है स्तवन जिनका उन पुरुष्टुत प्रभु का हम (महयामसि) = पूजन करते हैं, जिससे शतेन (धामभिः) = शतवर्षपर्यन्त स्थिर रहनेवाले तेजों को हम प्राप्त कर सकें। इन तेजों के हेतु से ही हम प्रभु का पूजन करते हैं। २. (इन्द्रस्य) = सर्वशक्तिमान् (चर्षणीधृत:) = सब मनुष्यों का धारण करनेवाले प्रभु के पूजन से हम आजीवन तेजस्वी बने रहेंगे।

    भावार्थ

    प्रभु का पूजन हमें शतवर्ष के जीवन में तेजस्वी बनाए रखता है।

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    भाषार्थ

    (पुरुष्टुतस्य) बहुत नामों द्वारा स्तुति पाए, (चर्षणीधृतः) तथा समग्र प्रजा का धारण-पोषण करनेवाले, (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (शतेन) सैकड़ों (धामभिः) नामों द्वारा (महयामसि) उसकी महिमा का हम स्तवन करते हैं।

    टिप्पणी

    [धामभिः=नामभिः। यथा “धामानि त्रयाणि भवन्ति स्थानानि नामानि जन्मानि” (निरु০ ९.३.२८)।]

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    विषय

    परमेश्वर और राजा की शरणप्राप्ति।

    भावार्थ

    (पुरुस्तुतस्य) प्रजाओं द्वारा स्तुति किये जाने वाले (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् का (शतेन धामभिः) धारण सामर्थ्यों से (चर्षणीघृतः) समस्त मनुष्यों को धारण पोषण करने हारे प्रभु को हम (महयामः) हम पूजा करें और ऐसे राजा का हम आदर सत्कार करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। सप्तर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    We exhort and exalt Indra, universally admired ruler of the world and sustainer of his people, by hundredfold celebrations of his names, attributes and brilliant exploits of heroism.

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    Translation

    Let us strive to achieve glory through the hundred powers of Almighty God who is worshipped by many and who is the supporter of mankind.

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    Translation

    Let us strive to achieve glory through the hundred powers of Almighty God who is worshipped by many and who is the supporter of mankind.

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    Translation

    We. the devotees, enhance the glory of the most Adorable God, Who nourishes and supports all the people by His hundreds of sustaining powers and shelters.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(पुरुष्टुतस्य) बहुभिः स्तुतस्य (धामभिः) धारणसामर्थ्यैः। प्रभावैः (शतेन) असख्यैः (महयामसि) पूजनं सत्कारं कुर्मः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यवतो राज्ञः (चर्षणीधृतः) चर्षणीनां मनुष्याणां धारकस्य पोषकस्य ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজপ্রজাগুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (শতেন) অসংখ্য (ধামভিঃ) প্রভাব দ্বারা (পুরুষ্টুতস্য) অনেকের দ্বারা প্রশংসিত এবং (চর্ষণীধৃতঃ) মনুষ্যদের পোষণকারী (ইন্দ্রস্য) ইন্দ্র [ঐশ্বর্যবান রাজা] এর (মহয়ামসি) আমরা সৎকার করি।।৪।।

    भावार्थ

    রাজা ও প্রজা পরস্পরের উন্নতি করে সুখ বৃদ্ধি করুক।।৪।।

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    भाषार्थ

    (পুরুষ্টুতস্য) বহু/বিবিধ নাম দ্বারা স্তুতি প্রাপ্ত, (চর্ষণীধৃতঃ) তথা সমগ্র প্রজাদের ধারণ-পোষণকারী, (ইন্দ্রস্য) পরমেশ্বরের (শতেন) শত (ধামভিঃ) নাম দ্বারা (মহয়ামসি) উনার মহিমার আমরা স্তবন/স্তুতি করি।

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