अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 26/ मन्त्र 5
यु॒ञ्जन्त्य॑स्य॒ काम्या॒ हरी॒ विप॑क्षसा॒ रथे॑। शोणा॑ धृ॒ष्णू नृ॒वाह॑सा ॥
स्वर सहित पद पाठयु॒ञ्जन्ति॑ । अ॒स्य॒ । काम्या॑ । ह॒री इति॑ । विऽप॑क्षसा । रथे॑ ॥ शोणा॑ । धृ॒ष्णू इति॑ । नृ॒ऽवाह॑सा ॥२६.५॥
स्वर रहित मन्त्र
युञ्जन्त्यस्य काम्या हरी विपक्षसा रथे। शोणा धृष्णू नृवाहसा ॥
स्वर रहित पद पाठयुञ्जन्ति । अस्य । काम्या । हरी इति । विऽपक्षसा । रथे ॥ शोणा । धृष्णू इति । नृऽवाहसा ॥२६.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (2)
विषय
४-६ परमेश्वर के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(अस्य) इस [परमात्मा-म० ४] के (काम्या) चाहने योग्य, (विपक्षसा) विविध प्रकार ग्रहण करनेवाले, (शोणा) व्यापक, (धृष्णू) निर्भय, (नृवाहसा) नेताओं [दूसरों के चलानेवाले सूर्य आदि लोकों] के चलानेवाले (हरी) दोनों धारण आकर्षण गुणों को (रथे) रमणीय जगत् के बीच (युञ्जन्ति) वे [प्रकाशमान पदार्थ-म० ४] ध्यान में रखते हैं ॥॥
भावार्थ
जिस परमात्मा के धारण आकर्षण सामर्थ्य में सूर्य आदि पिण्ड ठहर कर अन्य लोकों और प्राणियों को चलाते हैं, मनुष्य उन सब पदार्थों से उपकार लेकर उस ईश्वर को धन्यवाद दें ॥॥
टिप्पणी
−(युञ्जन्ति) समाधौ कुर्वन्ति तानि रोचनानि-म० ४ (अस्य) परमेश्वरस्य-म० ४ (काम्या) कमु कान्तौ-ण्यत्। सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। इत्यत्र सर्वत्र विभक्तेराकारः। कमनीयौ (हरी) हरणशीलौ धारणाकर्षणगुणौ (विपक्षसा) पक्ष परिग्रहे-असुन्। विविधग्रहणशीलौ (रथे) रमणीये जगति (शोणा) शोणृ वर्णगत्योः-घञ्। व्यापकौ। (धृष्णू) ञिधृषा प्रागल्भ्ये-क्नु। धर्षकौ। निर्भयौ (नृवाहसा) वहिहाधाञ्भ्यश्छन्दसि। उ० ४।२२१। वह प्रापणे-असुन् णित्। नॄणां नेतॄणां सूर्यादिलोकानां गमयितारौ ॥
Vishay
…
Padartha
…
Bhavartha
…
English (1)
Subject
Self-integration
Meaning
Scholars of science dedicated to Indra study and meditate on the lord’s omnipotence of light, fire and wind, and harness the energy like two horses to a chariot, both beautiful, equal and complementary as positive¬ negative currents, fiery red, powerful and carriers of people.
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