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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 27 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 27/ मन्त्र 6
    ऋषिः - गोषूक्त्यश्वसूक्तिनौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२७
    66

    वा॑वृधा॒नस्य॑ ते व॒यं विश्वा॒ धना॑नि जि॒ग्युषः॑। ऊ॒तिमि॒न्द्रा वृ॑णीमहे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒वृ॒धा॒नस्य॑ । ते॒ । व॒यम् । विश्वा॑ । धना॑नि । जि॒ग्युष॑: ॥ ऊ॒तिम् । इ॒न्द्र॒ । आ । वृ॒णी॒म॒हे॒ ॥२७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वावृधानस्य ते वयं विश्वा धनानि जिग्युषः। ऊतिमिन्द्रा वृणीमहे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ववृधानस्य । ते । वयम् । विश्वा । धनानि । जिग्युष: ॥ ऊतिम् । इन्द्र । आ । वृणीमहे ॥२७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 27; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (वावृधानस्य) बढ़ते हुए और (विश्वा) सब (धनानि) धनों को (जिग्युषः) जीत चुकनेवाले (ते) तेरी (ऊतिम्) रक्षा को (वयम्) हम (आ) सब ओर से (वृणीमहे) माँगते हैं ॥६॥

    भावार्थ

    जब राजा पराक्रमी और धनी होता है, तब प्रजागण सुरक्षित रहकर उस राज्य की वृद्धि चाहते हैं ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−(वावृधानस्य) वर्धमानस्य (ते) तव (वयम्) प्रजाजनाः (विश्वा) सर्वाणि (धनानि) (जिग्युषः) जि जये-क्वसु। जितवतः (ऊतिम्) रक्षाम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (आ) समन्तात् (वृणीमहे) याचामहे ॥

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    विषय

    प्रभु से रक्षा की पात्रता

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार यज्ञों द्वारा हमारे अन्दर (वावृधानस्य) = निरन्तर बढ़ते हुए, हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! (वयम्) = हम (विश्वा धनानि) = सम्पूर्ण धनों को (जिग्युषः) = जीतनेवाले (ते) = आपके (ऊतिम्) = रक्षण को (आवृणीमहे) = सर्वथा वरते हैं। २. हमारी यही कामना होती है कि हम प्रभु की रक्षा के पात्र हों।

    भावार्थ

    हम यज्ञों द्वारा प्रभु का अपने में वर्धन करें और इसप्रकार प्रभु द्वारा रक्षणीय हों। अगले सूक्त में भी 'गोधूक्ति व अश्वसूक्ति' ही ऋषि हैं -

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    भाषार्थ

    (इन्द्र) हे परमेश्वर! (वावृधानस्य) संसार की वृद्धि करते हुए, तथा (विश्वा धनानि) संसार के सभी प्रकार के धनों पर (जिग्युषः) विजय पाए हुए (ते) आपके (वयम्) हम उपासक, आपसे (ऊतिम्) सुरक्षा का (आवृणीमहे) वर मांगते हैं।

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    विषय

    धनाढ्यों के प्रति राजा का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) इन्द्र ऐश्वर्यवन् ! (विश्वा) समस्त (धनानि) धनों को (जिग्युषः) विजय करनेहारे और (वावृधानस्य) नित्य वृद्धिशील तेरी (ऊतिम्) रक्षा की हम (वृणीमहे) प्रार्थना, याचना करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोषूक्त्यश्वसूक्तिना वृषी। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। षडृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Self-integration

    Meaning

    Indra, we pray for your power and protection, the lord whose glory rises with the expansive universe and who rule over the entire wealth and power of the worlds of existence.

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    Translation

    O Almighty God, l claim your succour as you are the lord over all the wealths and ever-increasing power.

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    Translation

    O Almighty God, I claim your succour as you are the lord over all the wealth’s and ever-increasing power.

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    Translation

    O Mighty God, king or electricity, we pray for the protection and safety, from Thee, the Enhancer and conqueror of all the riches of the world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(वावृधानस्य) वर्धमानस्य (ते) तव (वयम्) प्रजाजनाः (विश्वा) सर्वाणि (धनानि) (जिग्युषः) जि जये-क्वसु। जितवतः (ऊतिम्) रक्षाम् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (आ) समन्तात् (वृणीमहे) याचामहे ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    রাজলক্ষণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে ইন্দ্র ! [পরম্ ঐশ্বর্যবান্ রাজন্](বাবৃধানস্য) বর্ধমান এবং (বিশ্বা) সকল (ধনানি) ধনসমূহের (জিগ্যুষঃ) বিজেতা/বিজয়ী (তে) তোমার (ঊতিম্) রক্ষাকে (বয়ম্) আমি (আ) সকল দিকে (বৃণীমহে) কামনা/যাচনা করি ॥৬॥

    भावार्थ

    যখন রাজা পরাক্রমী ও ধনী হয়, তখন প্রজাগণ সুরক্ষিত থেকে সেই রাজ্যের বৃদ্ধি কামনা করেন ॥৬॥

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    भाषार्थ

    (ইন্দ্র) হে পরমেশ্বর! (বাবৃধানস্য) সংসারের বৃদ্ধিকারী, তথা (বিশ্বা ধনানি) সংসারের সকল প্রকারের ধন-সম্পদের ওপর (জিগ্যুষঃ) বিজয় প্রাপ্ত (তে) আপনার (বয়ম্) আমরা উপাসক, আপনার প্রতি (ঊতিম্) সুরক্ষার (আবৃণীমহে) বর/আশীর্বাদ কামনা/প্রার্থনা করি।

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